कलयुग के राजा - बाबा खाटू श्याम
“कलयुग के राजा – बाबा खाटू श्याम” किताब में बाबा श्याम से संबंधित रहस्यों को उजागर किया गया है।
बाबा के जीवन के संबंध में बहुत-सी भ्रांतियां हैं। कोई बाबा की माता श्री का नाम मोरवी बताता है तो कोई अहलवती। कहीं पर बाबा को भीम का पौत्र कहा गया है, तो कहीं पर उनका पुत्र बताया गया है। किसी का कहना है कि बाबा का शीश हरियाणा के कुरुक्षेत्र जिले से राजस्थान के खाटू नगर में रूपमति नदी में तो कोई सरस्वती नदी में बह कर आया बताता है।
क्या बाबा का कोई भी भक्त यह स्वीकार कर पाएगा कि— जिसे “कलयुग का राजा” होने की उपाधि श्री हरि विष्णु द्वारा प्रदान की गई हो, उसके शीश को किसी नदी में बहा दिया जाएगा। जिस योद्धा के शीश को दान में मांगने के लिए श्री विष्णु के अवतार श्री कृष्ण को अपना भेष बदलना पड़ा, क्या उसके शीश को किसी नदी में बहाना, उस योद्धा का अपमान नहीं होगा?
उस योद्धा के शीश की ऐसी दुर्गति क्या कोई भक्त बर्दास्त कर पाएगा? ऐसे बहुत सारे प्रश्न थे जो मेरे भी मन-मस्तिष्क में कौंधते थे। इस किताब के माध्यम से इन सभी रहस्यों से पर्दा उठाया गया है।
इसके अलावा भी बाबा की शिक्षा-दीक्षा, जिस समय बाबा ने शीश का दान किया, उस समय बाबा की आयु कितनी थी आदि बहुत सारे रहस्यों को उजागर किया गया है।
अंतर आत्मा की आवाज़
प्रत्येक जीव के अंतःकरण में एक आत्मा रूपी ज्योति विद्यमान है। जो हमारे सभी कर्मों की जन्म-जन्मांतर की साक्षी है। हमारे अंतःकरण में विद्यमान इसी आत्मा रूपी ज्योति को हम अंतर-आत्मा कहते हैं।
दरअसल जीव सदियों से आवागमन के चक्कर में फंसा हुआ है। उसकी आत्मा पर पूर्व जन्म के प्रारब्ध एवं कुसंस्कार परत-दर-परत आच्छादित रहते हैं। इसी कारण वह अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने में असफल रहता है।
देखा जाए तो ईश्वर और जीव का संबंध लोहे और चुंबक की तरह है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि— जिस प्रकार चुंबक, लोहे को अपनी ओर खींचता है, ठीक उसी प्रकार ईश्वर, मनुष्य को अपनी तरफ क्यों नहीं आकर्षित करता? यदि लोहे पर बहुत अधिक कीचड़ लिपटा हो, तब चुंबक उसे आकर्षित नहीं कर सकता। ऐसे ही जीव है, इस धरा पर जन्म लेने के पश्चात् जीव माया रूपी कीचड़ में अत्यधिक लिपट जाता है। तब उस पर ईश्वर के आकर्षण का असर नहीं हो पाता। जिस प्रकार कीचड़ को जल से धो डालने पर चुंबक, लोहे को अपनी ओर खींचने लगता है, ठीक उसी प्रकार जब मनुष्य ध्यान, साधना और पश्चाताप के आंसुओं से माया के कीचड़ को धो डालता है, तब वह तेजी से ईश्वर की ओर खिंचता चला जाता है। तब उसका अपनी अंतरात्मा में विद्यमान आत्मा रूपी ज्योति से साक्षात्कार हो जाता है।
अंतरात्मा की आवाज नाम की ट्रस्ट के सभी सदस्य ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार करते हुए यह मानते हैं कि— हमारी जिंदगी में जो भी घटित होता है, वह उस ईश्वरीय शक्ति के बगैर संभव नहीं है। उसके अस्तित्व को स्वीकार करते हुए ट्रस्ट के सदस्यों ने संतो और आचार्यों द्वारा निरूपित किए गए, ज्ञान के अनुभव रूपी मोतियों को अपने विचारों में पिरोने की भरपूर कोशिश की है।
ट्रस्ट का मुख्य उद्देश्य केवल इतना है कि— आज के इस भौतिक संसार में सकारात्मकता के बीजों का रोपण कर सकें क्योंकि आज के इस वैश्वीकरण युग में भारतीय सभ्यता, संस्कार, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार और व्यवहार पर पश्चिमी सभ्यता ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है। इस गला-काट प्रतिस्पर्धा में अपने आप को स्थापित करने के लिए मनुष्य दिन-रात संघर्ष कर रहा है। जिससे वह अवसाद और तनाव का शिकार होकर अपने इस बहुमूल्य जीवन को विनाश की तरफ अग्रसर कर रहा है। इसलिए हमने विचार किया कि— हमारे ऋषि-मुनियों ने युगों से जो ज्ञान रूपी मोती हमारे लिए संग्रहित किए हैं, उनमें से कुछ मोती चुन-चुन कर अपने अनुभव और विचारों के अनुसार प्रेषित कर सकें।
ट्रस्ट का नाम अंतरात्मा की आवाज रखने का मुख्य उद्देश्य यही है कि— ज्यादा से ज्यादा मनुष्यों को अपनी सनातन संस्कृति से रूबरू करवाते हुए अध्यात्म के पथ पर अग्रसर करना, जिससे वे अपने अंतःकरण में विराजमान आत्मा से साक्षात्कार कर सकें ताकि वे आसानी से अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन सकें और अपने बहुमूल्य जीवन को सार्थक करते हुए जीवन रूपी यात्रा को सुगम और सुखमय बना सकें।