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श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

मैं सुनीता रानी

मैं ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार करते हुए, यह मानती हूं कि- हमारी जिंदगी में जो भी घटित होता है, वह उस ईश्वरीय शक्ति के बगैर संभव नहीं है। उसके अस्तित्व को स्वीकार करते हुए मैंने अपने आज तक के जीवन में संतों और आचार्यों द्वारा निरूपित किए गए ज्ञान के अनुभव रूपी मोतियों को अपने विचारों में पिरोने की कोशिश की है। मेरा उद्देश्य केवल इतना है, कि- आज के इस भौतिक संसार में सकारात्मकता के बीजों का रोपण कर सकूं। क्योंकि आज के इस वैश्वीकरण युग में भारतीय सभ्यता,संस्कार, रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार ओर व्यवहार पर पश्चिमी सभ्यता ने अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है। इस गला काट प्रतिस्पर्धा में अपने आप को स्थापित करने के लिए मनुष्य दिन-रात संघर्ष कर रहा है। जिससे वह अवसाद और तनाव का शिकार होकर अपने इस बहुमूल्य जीवन को विनाश की तरफ अग्रसर कर रहा है। इसलिए मैंने विचार किया कि हमारे ऋषि-मुनियों ने युगों से जो ज्ञान रूपी मोती हमारे लिए संग्रहित किए हैं, उनमें से कुछ मोती चुन-चुन कर अपने अनुभवों और विचारों के अनुसार प्रेषित कर सकूं। मेरे इन विचारों से सहमत होकर अगर किसी को कुछ लाभ प्राप्त होता है, तो मैं अपने इस लक्ष्य में सफल महसूस करूंगी।

जय श्री श्याम  

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