35. स्वयं की पहचान

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः उपनिषद के चार महावाक्यों में एक महावाक्य है- अहम ब्रह्मास्मि अर्थात “मैं ही ब्रह्म हूँ”। तात्पर्य यह है कि- इस मायावी संसार में मानव केवल ईश्वर की सबसे सुंदर कीर्ति ही नहीं है, बल्कि वह इस ब्रह्मांड में प्रत्यक्ष रूप से ब्रह्म्र का अंश है।ब्रह्म का स्वरूप  है। रामचरितमानस …

35. स्वयं की पहचान Read More »

34. मानव धर्म

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः मानव धर्म का आदर्श एवं इसकी पृष्ठभूमि अत्यंत ऊंची है, तथा इसके अनुसार जीवन जीने में मानव-जीवन की वास्तविकता निहित है। मानव धर्म, सभ्यता एवम संस्कृति की रीढ़ के सदृश है। इसके बिना सभ्यता एवं संस्कृति के विकास की कल्पना करना असंभव है। मानव धर्म की वास्तविकता एवं उपादेयता …

34. मानव धर्म Read More »

33. जन्म की सार्थकता

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः हर व्यक्ति में दिव्यता के कुछ अंश मौजूद होते हैं। उनमें कुछ विशेषताएं होती हैं। मनुष्य का यह प्रथम कार्य है कि वह उन विशेषताओं को खोज निकाले और अपने मानव रूपी जन्म को सार्थक करे। क्योंकि ईश्वर की संरचना में सर्वाधिक श्रेष्ठ स्थिति मनुष्य की है। मानव शरीर …

33. जन्म की सार्थकता Read More »

32. शब्दों की शक्ति

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः शब्द व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना होते हैं।शब्दों की शक्ति से ही मनुष्य के व्यक्तित्व में निखार आता है।अगर हम कोई भी संकल्प लेने से पहले शब्दों की ताकत का भी संज्ञान लें, तो हमारा कार्य समय से पहले ही पूरा हो जाता है। बार-बार संकल्पों को लेकर निराशा …

32. शब्दों की शक्ति Read More »

31. कर्म बड़ा या भाग्य

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः कर्म बड़ा या भाग्य, यह एक ऐसा प्रसन्न है, जिसके अंतिम निष्कर्ष पर एक मत से नहीं पहुंचा जा सकता। भाग्य के संदर्भ में बहुत पुराने दौर से दो परस्पर विरोधी विचार धाराएं रही  है। एक के अनुसार मनुष्य उस से बंधा हुआ है, जो उसके भाग्य में पहले …

31. कर्म बड़ा या भाग्य Read More »

30. एकांतवास

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः एकांतवास से अभिप्राय है- निर्जन स्थान में रहना, अकेले में रहना, सबसे अलग रहना। जो मनुष्य अध्यात्म में विश्वास करते हैं, उनके लिए एकांतवास एक महत्वपूर्ण समय होता है। लेकिन मैं आज के समय की बात कर रही हूं ।जब भारत सहित पूरा विश्व एक अदृश्य संकट से गुजर …

30. एकांतवास Read More »

29. धैर्य से करें देव साधना

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः ईश्वर ने यह दुर्लभ मानव जीवन चालाकियों, व्यर्थ चमचागिरी एवं छद्मपूर्ण कार्यों में नष्ट करने के लिए नहीं दिया है, अपीतु अपने पौरुष से दुर्लभ गुणों एवं शक्ति साधनों का सदुपयोग कर देव-साधना के माध्यम से स्वयं एवं मानव के कल्याण के लिए दिया है। देव साधना के प्रभाव …

29. धैर्य से करें देव साधना Read More »

28. धर्म और आध्यात्मिकता

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः धर्म और आध्यात्मिकता यह दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। क्योंकि जहां धर्म होगा, वहां अध्यात्म का होना अनिवार्य है और जहां अध्यात्म होगा, वहां धर्म अपने आप स्थापित हो जाता है। इसलिए ये दोनों शब्द एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। धर्म का अनुसरण तो सभी करते हैं। …

28. धर्म और आध्यात्मिकता Read More »

27. सत्य की खोज – शिक्षा

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः शिक्षा गुरु शिष्य की परंपरा से होते हुए बहुत लंबा सफर तय कर चुकी है। आज के समय में आप मोबाइल पर किसी को भी अपना गुरु बना सकते हैं और किसी से कुछ भी सीख सकते हैं। नई-नई तकनीकों ने हमें कहीं भी, कभी भी पढ़ने का मौका …

27. सत्य की खोज – शिक्षा Read More »

26. संघर्ष

ऊँश्री गणेशाय नम्ःश्री श्याम देवाय नम्ः अगर जीवन में संघर्ष न हो तो मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। बिना कड़ी मेहनत के जो सफलता पाई जाती है, वह महत्वहीन होती है। परिस्थितियों से जूझते हुए, कठिनाइयों से लड़ते हुए यदि हिम्मत ना हारी जाए, तो सफलता रूपी मंजिल जरूर मिलती है। …

26. संघर्ष Read More »

Shopping Cart