Month: November 2021

234.वैज्ञानिकों ने स्वीकारा—आत्मा का अस्तित्व

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः भारतीय पौराणिक ग्रंथों में हजारों साल पहले ही शरीर की काया में विद्यमान आत्मा को अजर- अमर माना गया है। हमारे मनीषियों ने सृष्टि के आरंभ में ही आत्मा के अस्तित्व को स्वीकारा और इसके संबंध में अपने मत भी व्यक्त किए और फिर महाभारत युद्ध के दौरान …

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233. मोक्ष प्राप्ति के साधन

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः शास्त्रों में जीवन के चार उद्देश्य—धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष बताए गए हैं। सांसारिक बंधनों से मुक्ति ही मोक्ष का द्वार खोलती है। भारतीय दर्शन केवल मोक्ष की सैद्धांतिक चर्चा ही नहीं करता बल्कि उसके व्यावहारिक उपाय भी बताता है।न्याय दर्शन के अनुसार दुख का निवारण ही मुक्ति …

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232. सेवा भाव

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः ईश्वर चंद्र विद्यासागर के बचपन की एक घटना है। एक दिन एक गरीब व्यक्ति उनके घर पर आया और उनसे कुछ मांगने लगा।ईश्वर चंद्र दौड़ते हुए अपनी मां के पास गए और उनसे उस गरीब व्यक्ति की सहायता करने के लिए कहा।मां ने अपने बच्चे के अबोध मन …

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231. जीवन यात्रा

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः भगवद् गीता में कहा गया है कि— मानव जीवन को प्राप्त करना विजय नहीं है बल्कि जीवन में संघर्ष करते हुए विजय प्राप्त करना ही जीवन की सफलता है। मानव रूप में जन्म लेकर मनुष्य बहुत चिंतन मनन करता रहता है। जीवन को सुचारू रूप से चलायमान रखने …

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230. अपना मूल्य पहचानें

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मनुष्य की एक आदत है कि— वह कुछ कार्यों को तुरंत कर लेता है और कुछ को अगले दिन के लिए छोड़ देता है। लेकिन ज्यादातर वही कार्य अगले दिन पर छोड़े जाते हैं जो अधिक महत्वपूर्ण नहीं होते। क्योंकि मनुष्य अपनी सफलता का मूल्यांकन भौतिक वस्तुओं की …

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229. आध्यात्मिक पेंशन

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः आध्यात्मिक पेंशन से अभिप्राय है— आत्मिक शांति या आध्यात्मिक शांति।यह सिर्फ प्रभु भक्ति से ही प्राप्त हो सकती है। परंतु हमारे समाज में मनुष्य की यह विडंबना ही है कि वह अध्यात्मिक पेंशन को जानता ही नहीं। वह सिर्फ मौद्रिक पेंशन को ही जानता है। इसलिए अज्ञानी मनुष्य …

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228. सदैव सत्य बोलें

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मनीषी कहते हैं कि— “मनसा वाचा कर्मणा” यानी मन, वचन और कर्म से सत्य बोलना चाहिए।जो विचार मन में हों, वही वाणी में भी होने चाहिएं और उसी के अनुरूप ही मनुष्य का व्यवहार होना चाहिए। इसमें कोई संदेह नहीं कि मन, वचन और कर्म से अलग रहने …

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227. उत्साह

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः रामायण में महर्षि बाल्मीकि लिखते हैं— उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं है। उत्साही पुरुष के लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है।कहने का अर्थ यही है कि बलवान व्यक्तियों का सबसे कीमती आभूषण उनका उत्साह ही है। कभी पत्थरों से आग जलाने वाले मानव ने अब …

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