Month: June 2021

172. जीवन परिवर्तनशील है

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जिस प्रकार प्रकृति में परिवर्तन होता है, कभी गर्मी होती है तो कभी सर्दी, उसी प्रकार जीवन में हर समय परिवर्तन होता रहता है जो निरंतर चलता रहता है। यह कभी नहीं रुकता। सारी सृष्टि परिवर्तनशील है। डार्विन का एक सिद्धांत है— “सर्वाइवल …

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171. कर्म योग

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः कर्म योग यानी कर्म के द्वारा ईश्वर के साथ योग अर्थात् कर्म करते हुए ईश्वर के साथ एकाकार हो जाना।अनासक्त होकर किए जाने पर प्राणायाम, ध्यान-धारणा आदि अष्टांग योग या राजयोग भी कर्म योग ही हैं।संसार में निवास करने वाले मनुष्य यदि अनासक्त होकर सिर्फ ईश्वर में भक्ति …

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170. आत्मबल की शक्ति

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः आज के समय समस्त विश्व वैश्विक महामारी के अत्यंत कष्टदायक दौर से गुजर रहा है। इस स्थिति के लिए हम स्वयं जिम्मेदार हैं क्योंकि हमने भौतिक संसाधनों के आकर्षण में आकर अपनी सनातन प्रवर्त्ति को तिलांजलि दे दी है। आज जब एक छोटे से अदृश्य वायरस ने चारों …

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169. साधक और योगक्षेम

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि— भगवान के स्वरूप की प्राप्ति का नाम योग है और भगवान प्राप्ति के निमित्त किए हुए साधन की रक्षा का नाम क्षेम है अर्थात् भगवत प्राप्ति हेतु किए गए प्रयासों को ही योगक्षेम की संज्ञा दी गई है। कहने का …

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168. मर्यादित जीवन

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः हमारे जीवन में मर्यादा का बहुत ही ऊंचा स्थान है। अगर हम यह कहें कि मर्यादित जीवन ही मनुष्य जीवन है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मर्यादा जीवन रूपी नदी के तट के समान है, जिसको तोड़ने से अपने ही नहीं बल्कि दूसरों के जीवन में भी सैलाब …

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167. मानव की परीक्षा

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः समस्त सृष्टि के संचालक ईश्वर, मानव की किसी न किसी रूप में जीवन पर्यंत परीक्षा लेते ही रहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि— वे मानव से अत्यंत स्नेह करते हैं। ईश्वर गुरु के समान हैं तो मनुष्य शिष्य के समान। अज्ञानता के पथ पर भटकते हुए अपने …

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166. चित्त की एकाग्रता

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः एक बार स्वामी विवेकानंद अपने गुुरु भाई के साथ देश भ्रमण पर गए हुए थे। स्वाध्याय, सत्संग एवं कठोर तप का सिलसिला अनवरत जारी था। जहां पर भी कहीं अच्छे ग्रंथ मिलते, वे उनको पढ़ना नहीं भुलते क्योंकि विवेकानंद पढ़ने के बहुत शौकीन थे। इसलिए पुस्तकालय से उन्हें …

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