168. मर्यादित जीवन

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

हमारे जीवन में मर्यादा का बहुत ही ऊंचा स्थान है। अगर हम यह कहें कि मर्यादित जीवन ही मनुष्य जीवन है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। मर्यादा जीवन रूपी नदी के तट के समान है, जिसको तोड़ने से अपने ही नहीं बल्कि दूसरों के जीवन में भी सैलाब आ जाता है। मर्यादा जीवन की आचार संहिता है, जिसका पालन करते रहने से कोई भी मनुष्य आसानी से जीवन के परम उद्देश्य को प्राप्त कर सकता है।

मर्यादा मानव जीवन का आधार है, जिस पर खड़े किए गए जीवन के प्रसाद को सांसारिक झंझावतों से कोई खतरा नहीं होता। मर्यादा जीवन का संविधान भी है, जिसके सम्मान से समाज का रूप सौंदर्य निखरता है। मर्यादा जीवन जीने का विधान है, जिस पर चलकर जीवन की मंजिल बहुत आसान हो जाती है। मर्यादा लक्ष्मण रेखा के समान है, इसका उल्लंघन, माता सीता की तरह किसी भी मनुष्य के जीवन में केवल अशांति और दुख का कारण बनता है।

मनुष्य कई बार अहंकार वश अपने जीवन की मर्यादा को तोड़ देता है। अगर गौर किया जाए तो मनुष्य की अधिकांश समस्याओं के मूल में उसका अहंकारी स्वभाव ही है। वह अपने धन, कुल, जाति और भोतिक साधनों पर अहंकार करता है। वह प्रत्येक क्षण अधिकाधिक संचित करने तथा बनाए रखने के लिए लालायित रहता है। हालांकि मनुष्य के अहंकार का सबसे बड़ा कारण उसका ज्ञान है और ज्ञान पर अहंकार करना सबसे बड़ी मूर्खता है क्योंकि ज्ञान का प्रकाश ही ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र मार्ग है और यही सत्य है।

आज के समय मनुष्य का ज्ञान जो पर्वत जैसा दिखाई देता था, वह राई के दाने के बराबर हो गया है क्योंकि आज कोरोनावायरस की चपेट में पूरा विश्व है और वही मनुष्य है, जिसे अपने ज्ञान पर अहंकार था। वह न तो कोई स्टिक दवा ढूंढ पाया है और न बचाव का कोई ठोस उपाय। यह सही समय है कि मनुष्य अपने ज्ञान और कौशल पर अहंकार करना हमेशा के लिए त्याग दें क्योंकि जब मनुष्य अपने ज्ञान पर अहंकार का त्याग करेगा तभी उसे ईश्वर की कृपा से सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होगी। ईश्वर तो ज्ञान का सागर है‌। उसी ने सृष्टि का सृजन किया है और वही उसे चलाने की विधी जानता है। अगर दुःख देता है तो उपहार स्वरूप सुख भी प्रदान कर सकता है।

अगर वह कष्ट देता है तो उससे उभारता भी वही है। ईश्वर अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर रहा है। किसी को रोगियों की भीड़ में भी निरोग रखे हुए हैं और किसी को चिकित्सकों की भीड़ से भी ले जा रहा है। इससे ज्यादा वह अपनी मोजुदगी कैसे दिखा सकता है? मनुष्य को अपने ज्ञान का इतना अहंकार हो गया था कि— वह ईश्वर के अस्तित्व को ही नकारने लगा था।

आज अपने चारों तरफ दृष्टि दौड़ा कर देखो मनुष्य तो घर में दुबका बैठा है और पक्षी स्वतंत्र आकाश में निर्भय होकर उड़ रहे हैं। ऐसे में करें तो आखिर क्या करें? मनुष्य यह समझने में विफल है। यह संकट कैसे आया और कहां से आया, यह मात्र ईश्वर ही जानता है। हमारे हाथ में तो बस इतना ही है, ईश्वर की इच्छा और योजना को समझें और उसके अनुरूप जीवन को डालें।

आज हम जिस समस्या से जूझ रहे हैं, यह मनुष्य के मर्यादा को तोड़ने के कारण ही आई है। आज पूरे विश्व को जिस महामारी का संकट झेलना पड़ रहा है, वह सब मनुष्य की गलती का ही परिणाम है। अगर कुछ लोग प्रकृति विरुद्ध आचरण न करते तो आज हमें इस महामारी की चपेट में नहीं आना पड़ता। कुछ लोगों की नासमझी के कारण आज पूरे विश्व पर खतरा मंडरा रहा है।

मनुष्य के व्यक्तित्व की ऊंचाई का निर्धारण उसके मर्यादित आचरण से ही होता है। इसके अलावा उसे मापने का कोई पैमाना नहीं है। इसलिए मनुष्य को मर्यादा रखनी चाहिए। रामायण में तुलसीदास ने भगवान श्री राम के मर्यादा पुरुषोत्तम चरित्र को साकार किया है जो युगों- युगों तक लोगों को मर्यादा का पाठ पढ़ाता रहेगा। श्रीराम का प्रत्येक आचरण मर्यादा की सर्वोत्कृष्ट परिभाषा है।

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