09. आडंबर

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

आज के समाज में आडंबर एक गंभीर बीमारी का रूप ले चुका है। आडंबर छुआछूत की बीमारी की तरह हमारे चारों ओर के वातावरण में अपनी जड़ स्थापित कर चुका है। प्रत्येक मनुष्य इससे प्रभावित होकर एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगा हुआ है। वह एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में अपने आप को भिन्न-भिन्न रूप में पेश करने की कोशिश करता है। दूसरों को नीचा गिराने का कोई मौका नहीं चूकता।वह अपने कपड़े , गहने, गाड़ी- बंगले, यहां तक की वार्तालाप में भी हर वक्त ताना मारना, आम बात समझता है। हम धन दौलत से मनुष्य की अमीरी को देखते हैं। हम यह भूल जाते हैं कि, जिसके पास संस्कारों की धन-दौलत है और जिसने काम- क्रोध आदि विकारों पर विजय प्राप्त कर ली है अगर उससे बात करने का मौका मिल जाए तो, वह हर वक्त भगवान की महिमा का गुणगान करेगा। जिसे अमीर लोग उसका दिखावा बोलेंगे। जबकि वे यह भूल जाते हैं कि, दिखावा वह नहीं बल्कि वे खुद कर रहे हैं। बाहरी सुंदरता कुछ समय के लिए मोहित कर सकती है, लेकिन आंतरिक सुंदरता हमेशा के लिए सुंदर रहती है।जो व्यक्ति ज्यादा छलावे की बात करता है, वह यह भूल जाता है,कि उसे छलावा ही वापस मिलेगा। क्योंकि इस संसार का यह सिद्धांत है, कि जैसा बोओगे वैसा काटोगे। अगर आप प्यार दोगे तो प्यार वापस मिलेगा, खुशी बाटोगे तो खुशी मिलेगी। इसलिए बाहरी दिखावा करने वाले को जब दिखावा वापस मिलता है, तो बहुत दुख होता है।

इसी को दर्शाने के लिए एक कथा स्मरण हो आई है ।एक गुरुजी और एक शिष्य की – वह गुरु जी अपने शिष्यों को सुधारने के लिए बहुत कठिन दिनचर्या और कठोर नियम रखता था। उनके सबसे अच्छे और प्रिय शिष्य ने उनका अनुसरण करना चाहा। वह गुरु जी की तरह बिस्तर छोड़ कर जमीन पर सोने लगा ।सादा खाना शुरु कर दिया ।उसने सफेद वस्त्र पहनने शुरू कर दिए। गुरुजी को शिष्य का बदला हुआ रूप देखकर हैरानी हुई ।उसने शिष्य से इसका कारण जानना चाहा, तो शिष्य ने कहा- मैं कठोर दिनचर्या का अभ्यास कर रहा हूं ।मेरे सफेद कपड़े मेरे सुध ज्ञान की खोज को दर्शाते हैं। शाकाहारी भोजन से मेरे शरीर में सात्विकता बढ़ती है ,और सुख सुविधा से दूर रहने पर मैं आध्यात्मिक पथ की तरफ बढ़ता हूं। गुरुजी शिष्य की बात सुनकर मुस्कुराए, और उसे खेतों की तरफ ले गए। खेत में घोड़ा घास चर रहा था। गुरुजी ने कहा तुम खेत में घास चर रहे इस घोड़े को देख रहे हो, यह श्वेत रंग का है। यह केवल घास फूस खाता है, और अस्तबल में जमीन पर सोता है। क्या तुम्हें इस घोड़े में जरा- सा भी ज्ञान और सात्विकता दिखाई देती है। तुम्हारी बात माने तो यह घोड़ा आगे चलकर बड़ा गुरु बन सकता है। यह सब गुरुजी की बातें सुन कर शिष्य को अपनी गलती पर पछतावा हुआ और गुरु जी के चरणो में नतमस्तक हो गया।

ऊपरी व बाहरी दिखावा अंहकार को बढ़ाता है। इसलिए दिखावे के बजाय हमें अपने लक्ष्य वअपने अच्छे कर्म पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। क्योंकि सारा अंहकार जीते जी तक का है ।इस दुनिया में रहते हुए संसार हमारे लिए जितने मजेदार काम करता है ,उसमें से एक यह है कि- हमारे अहंकार को थपेड़े देकर उसे पोषित करता है ।क्योंकि आडंबर का मूल स्रोत अंहकार ही है ।अपने अंहकार को शांत करने के लिए ही वह आडंबर का सहारा लेता है ।मनुष्य खुद उतना अंहकारी नहीं होता जितना दूसरे उसे बना देते हैं ।ऐसी -ऐसी गलत-फहमियां पालते हैं कि, अहंकार स्वत: जाग जाता है। अच्छे-अच्छे लोह पुरुष भी अंतिम समय में चिता पर जल गए। दुनिया जिनकी ताकत, क्षमता और व्यक्तित्व का लोहा मानती थी, आखरी सांस के बाद उनका शरीर, जिसमें कई लोह तत्वों की कहानियां थी, धू-धू कर जल गया। बड़े-बड़े सूरमा इस अहंकार रूपी दानव ने निगल लिए। दुनिया के सिकंदरो का हिसाब लगाने निकले तो मिट्टी पल भर में दे देगी। फिर अंहकार किस बात का।

अंहकार मिटाना हो, उसको गलाना हो, तो भक्ति कीजिए। भक्ति की विशेषता होती है कि वह अंहकार को भुला देती है। हालांकि यहां सावधानी की आवश्यकता होती है। अगर सावधानी नहीं रखी जाए तो भक्ति खुद अंहकार बन जाती है और अहंकार आया तो फिर भक्ति भी आडंबर बन जाती है। इसलिए कोशिश यह की जाए कि किसी भी स्थिति में अंहकार न आए। हर परिस्थिति में निरंकारी बने रहने की कला बड़ी आसान है। आपका संबंध किसी भी धर्म से हो, सभी में भक्त होने की सुविधा आसानी से मिल जाती है, क्योंकि भक्त का मतलब होता है, भगवान के भरोसे का जीवन। भक्त आलसी नहीं होता। बस परम -शक्ति के भरोसे जीवन बिताता है और यहीं से अंहकार मिटता है। एक बार अहंकार खत्म तो समझो आडंबर खत्म। 

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