श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
हमारा मन अस्थिर क्यों रहता है? क्या कभी इसके बारे में सोचा है? कभी जानने की कोशिश की है? इसके अनेक कारण हो सकते हैं? इसमें एक है हमारा बचपन जो हमारा अतीत है। जहां कुछ ऐसी घटनाएं होती हैं जिसका मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी जीवन की क्रूर त्रासदियां मन को विचलित करती रहती हैं। बचपन में किसी का कोई कड़वा अनुभव मन को इस कदर बेचैन कर देता है कि उसकी पीड़ा लंबे समय तक बनी रहती है, जिसके कारण दिमाग में ग्रंथियां बन जाती हैं। ऐसे में हम हर समय उसी के बारे में सोचते रहते हैं यानी खुद को लेकर सजग नहीं रह पाते। हमारे भीतर चल रहे संघर्षों के आगे घुटने टेक देते हैं।
यदि हम भूत और भविष्य की आशंकाओं से हटकर वर्तमान समय में जीना सीख जाएं तो जिंदगी ईश्वर के द्वारा प्रदान किया गया एक खूबसूरत उपहार है। आपने कभी महसूस किया होगा कि वर्तमान में रहने की बात पर अमल करना आसान नहीं होता। मन अतीत और वर्तमान के बीच कहीं द्वंद्व में फंसा रहता है, कभी यादों में तो कभी भविष्य की उस दुनिया के बारे में सोचता रहता है जिसका द्वार अभी खुला भी नहीं है। इस क्रम में हम अपनी उर्जा ही नहीं बल्कि एकाग्रता भू खो देते हैं। इसके बाद हमारा प्रत्येक कार्य अधूरा रह जाता है। हम कुंठित हो जाते हैं, तनाव और तमाम तरह के दबाव से दूर रहने के अलावा कोई विकल्प हमारे पास शेष नहीं रहता।
आपने देखा होगा कि जो मनुष्य धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं और अध्यात्म में विश्वास करते हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व ईश्वर को समर्पण कर दिया होता है, उनके चेहरों पर एक अलग तेज और संतोष दिखाई देता है। वे उलझन भरे विचारों से मुक्त होते हैं। इसलिए जीवन में आई बड़ी त्रासदियों से भी सहजता से निकल जाते हैं। जब हम वर्तमान में जीनें की बातें करते हैं तो अक्सर मनुष्य यही पूछते हैं कि यदि हम हर पल शांत रहने और उसका आनंद लेने के बारे में ही सोचते रहें तो हमारा काम कौन करेगा? जीवन में कुछ कर गुजरने की जो अभिलाषाएं हैं, आकांक्षाएं हैं, वह कैसे पूरी होंगी। अगर भविष्य के बारे में नहीं सोचेंगे, विचार नहीं करेंगे, योजना नहीं बनाएंगे तो कैसे काम चलेगा? यह सवाल आपके मन में भी है। शायद आप वर्तमान में जीने की बात को समझ नहीं पा रहे इसलिए ऐसा कह रहे हैं।
वर्तमान में जीनें से अभिप्राय यह बिल्कुल भी नहीं है कि आप भविष्य के बारे में न सोचें, उन पर विचार न करें या योजनाएं न बनाएं। वर्तमान में जीने से अभिप्राय सिर्फ इतना है कि आप अपने लक्ष्य व आकांक्षाओं के प्रति सतर्कता रखें। आप स्वयं को, परिवार को और रोजगार को किस रूप में और कहां देखना चाहते हैं, यह लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए। आपने बच्चों को अक्सर खेलते हुए देखा होगा। वे खेल में मस्त रहते हैं। उस समय उन्हें न तो भुख की चिंता होती है और न ही भविष्य की परवाह। उस समय गुस्सा करो, डांट भी दो तो अगले ही पल भूल जाते हैं। तितलियों को देखें, इस फूल से उस फूल पर इठलाती फिरती हैं, नुकसान नहीं करती बल्कि फूलों का निषेचन कर जाती हैं। उन्हें पता है कि प्रकृति का नियम अपने स्वरूप में जीना है, कोई किसी का नुकसान पहुंचाने के लिए यहां नहीं आता।
इस संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक जीव वर्तमान में रहता है। एक मनुष्य ही है जो भूत और भविष्य के चक्कर में आकर अपना वर्तमान खराब कर लेता है। कभी कबूतर को देखना। वह अपने लिए रखा दाना- पानी अपने समय से ही आकर खाता- पीता है। गाय जो धूप में खड़ी रहती है, अचानक अधिक धूप लगने पर वहीं किसी दूसरे छायादार पेड़ के पास चली जाती है। मनुष्य हो या पशु- पक्षी सबको इसका आभास है कि उसे क्या करना है? हम सब एक गति में चल रहे हैं। इसके विरुद्ध जाएंगे तो संतुलन बिगड़ जाता है। हमें जो समय मिला है यदि उसका सजगता से प्रयोग करें तो कुछ ही समय में बड़ा बदलाव दिखने लगेगा। वर्तमान में रहकर उन योजनाओं को साकार करें, जिनके प्रति हमने अपने लक्ष्य का निर्धारण किया है तो हम उस मुकाम तक पहुंच सकते हैं, जिसकी हम ने कल्पना भी नहीं की थी।