श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
महर्षि पतंजलि के ग्रंथ “योगदर्शन” के 27वें सूत्र में कहा गया है—”तस्य वाचक प्रणव:” ईश्वर शब्द का बोध करने वाला शब्द ॐ है।
*यजुर्वेद 40/17 में कहा गया है—”ओम स्वयं ब्रह्म” अर्थात् ॐ ही सर्वत्र व्यापक परम ब्रह्म है।
*आइंस्टीन भी यही कह कर गए हैं कि—ब्रह्मांड फैल रहा है।
*आइंस्टीन से पूर्व भगवान महावीर ने कहा था— महावीर से पूर्व वेदों में इसका वर्णन है। महावीर ने वेदों में पढ़कर नहीं कहा, उन्होंने तो ध्यान की अतल गहराइयों में उतरकर देखा,अनुभव किया, तब कहा।
*”ओम सतनाम कर्ता पुरख, निर्भाऊ निर्वेर अकालमूरत” अर्थात् ओउ्म सतनाम जपने वाला पुरुष निर्भय, बैर- रहित एवं अकाल- पुरुष’ के सदृश हो जाता है।
*ॐ ब्रह्मांड का नाद है, एवं मनुष्य के अंतर में स्थित ईश्वर का प्रतीक है।
- छान्दोग्योपनिषद् में ऋषियों ने कहा है—ॐ इत्येतत् अक्षर: अर्थात् ॐ अविनाशा, अव्यय एवं क्षरण रहित है।
- अध्यात्म जगत्— अध्यात्म में ॐ का विशेष महत्व है।वेद शास्त्रों में भी ओम के कई चमत्कारिक प्रभावों का उल्लेख मिलता है। ॐ को बोलते वक्त ओ पर ज्यादा जोर दिया जाता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं, क्योंकि इसका प्रारंभ है,अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि होने के कारण अनवरत गुंजायमान रहती है।
तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई ऐसी ध्वनि है, जो लगातार सुनाई देती रहती है। जब ध्यान लगाते हैं तो अंदर भी सुनाई देती हैै और बाहर भी। हमारे चारों तरफ वह ध्वनि अनवरत प्रवाहित होती रहती है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा, शांति महसूस करती हैं, तो उन्होंने उस ध्वनि का नाम दिया —ॐ।
साधारण मनुष्य उसे सुन नहीं सकता, लेकिन जो आध्यात्म में विश्वास करता है और ॐ का उच्चारण करता रहता है, उसके आस-पास सकारात्मक उर्जा का विकास होने लगता है। वह उस ध्वनि को सुन तो नहीं पाता, पर महसूस कर सकता है। क्योंकि उसे अपने आसपास सुकून भरा अहसास होता है, जिससे उसका मन हमेशा अच्छा रहता है और उसका जीवन खुशियों से सराबोर हो जाता है। उस ध्वनि को सुनने के लिए या उसका पूरा लाभ उठाने के लिए तो उसे अध्यात्म जगत् की गहराइयों में जाना होगा, क्योंकि तभी वह पूर्णतः मौन धारण कर पाएगा और ध्यान की अवस्था को प्राप्त करेगा। यह सत्य है कि जिसने भी उस ध्वनि को सुना, वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगा। परमात्मा से जुड़ने का साधारण- सा तरीका है— ॐ का उच्चारण करते रहना।
*ॐ का वैज्ञानिक महत्व—आधुनिक युग में जब विज्ञान प्रत्येक वस्तु, विचार और तत्वों का मूल्यांकन करता है तो, इस प्रक्रिया में धर्म के अनेक विश्वास और सिद्धांत धराशाई हो जाते हैं। विज्ञान भी सनातन सत्य को पकड़ने में पूरी तरह कामयाब नहीं हुआ है,किंतु वेदांत में जिस सनातन धर्म की सत्यता की महिमा का वर्णन किया है, विज्ञान धीरे-धीरे उससे सहमत होता नजर आ रहा है। आज के समय में वैज्ञानिकों ने भी शोध के माध्यम से ॐ के चमत्कारिक प्रभाव की पुष्टि की है। पाश्चात्य देशों में भारतीय वेद पुराण और हजारों वर्ष पुरानी भारतीय संस्कृति और परंपरा काफी चर्चाओं और विचार-विमर्श का केंद्र रहे हैं। दूसरी और वर्तमान की वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रेरणास्रोत भारतीय शास्त्र और वेद ही रहे हैं। हालांकि स्पष्ट रूप से इसे स्वीकार करने से भी वैज्ञानिक बचते रहे हैं। - कुछ समय पहले यूरोपियन स्पेस एजेंसी और नासा की संयुक्त प्रयोगशाला सोहो ने संयुक्त रूप से सूर्य से निकलने वाली ध्वनि का अध्ययन किया। काफी समय की रिसर्च के पश्चात वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ये ध्वनि हिंदू धर्म के ॐ की भांति है।
- ॐ की शक्ति परमाणु बम से हजारों गुना शक्तिशाली है। इसकी शक्ति को पहचानने पर कुछ भी असंभव नहीं रह जाता। कुछ समय पूर्व रूस के ध्वनि विशेषज्ञों ने अपनी रिसर्च में दावा किया था कि— यदि ॐ का उच्चारण विशेष फ्रीक्वेंसी के तहत किया जाए तो सिर्फ कांच ही नहीं, अपितु पत्थर की दीवार में भी दरार उत्पन्न हो सकती है।
हमें यह भान होना चाहिए कि हम 21वीं सदी में हैं। विज्ञान अब बहुत अधिक प्रगति कर चुका है। गायत्री मंत्र में ॐ को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि— हमारे पृथ्वी मंडल, ग्रह मंडल एवं अंतरिक्ष में स्थित आकाशगंगाओं की गतिशीलता से उत्पन्न सामूहिक ध्वनियां ही ॐ की दिव्य ध्वनि है। अब यह केवल कल्पना नहीं बल्कि वास्तविकता है। विभिन्न ग्रहों की ध्वनियों को नासा के वैज्ञानिकों ने रिकॉर्ड किया है, जिन्हें planet sounds के नाम से इंटरनेट पर सुना जा सकता है।
विभिन्न ग्रहों की गतिशीलता से उत्पन्न ध्वनियां ही हमें निरंतर इस बात का अहसास कराती हैं कि— प्रत्येक ग्रह अपनी धुरी पर एवं सूर्य के चारों ओर एक निश्चित गति से निरंतर चक्कर लगाते रहते हैं। जिनसे ये अनंत ब्रह्मांड, अनंत काल से गतिशील हैं। जिससे सृष्टि का जीवन चक्र बिना किसी अवरोध के निरंतर चलता रहता है। भौतिक नियमों के अंतर्गत पृथ्वी की गतिशीलता से दिन-रात एवं ऋतु में परिवर्तन आदि होता रहता है। ग्रहों की गतिशीलता से उत्पन्न ये ध्वनि तरंगें जो समस्त ब्रह्मांड में सदा व्याप्त रहती हैं, सृष्टि की निरंतरता का हमें बोध कराती हैं तथा इन्हीं से सृष्टि का निर्माण एवं सृजन होता है।
विभिन्न ग्रहों से आ रही विभिन्न ध्वनियों को ध्यान की पूर्ण अवस्था में जब मन पूरी तरह एकाग्र होकर विचार शून्य हो जाता है, तब इन ध्वनियों को सुना जा सकता है। क्योंकि यह तो विज्ञान का सामान्य नियम है कि—कोई भी ध्वनि स्वत: उत्पन्न नहीं हो सकती। जहां हलचल होगी वहीं ध्वनि उत्पन्न होगी। अनेक संत महात्माओं ने भी ॐ के ध्वन्यात्मक स्वरूप को ही ब्रह्म माना है तथा ॐ को शब्द ब्रह्म भी कहा है। ऋग्वेद के “नाद बिंदु” उपनिषद में आंतरिक और आत्मिक मंडलों में शब्द की ध्वनि को समुद्र की लहरों, बादल, ढोल, पानी के झरनों, घंटे जैसी आवाज के रूप में सुने जाने का वर्णन है। “हठयोग प्रदीपका” में भंवरे की गुंजार, घुंगरू, शंख, घंटी, खड़ताल, मुरली, मृदंग, बांसुरी और शेर की गरज जैसी ध्वनियों का वर्णन है। स्वामी शिवानंद ने अपनी पुस्तक “जप योग” में लिखा है— ध्यान के किसी सुविधाजनक आसन में बैठ जाओ। अंगूठे से कानों को बंद कर लो। विभिन्न प्रकार की आवाजें जैसे बांसुरी, वार्यालन, नक्कारा, शंख, घंटी आदि की आवाजें सुनाई पड़ेगीं। इन ध्वनियों या नाद को ब्रह्मांड के बाहर शून्य से आता हुआ कहा गया है, किंतु वास्तव में यह विभिन्न ग्रहों की गतिशीलता से उत्पन्न ध्वनियां हैं। चूंकि प्रत्येक ग्रह का आकार, गति तथा पृथ्वी से दूरी भिन्न-भिन्न होती है। ये ध्वनियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं।
*तंत्र योग में ॐ का महत्व—तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व होता है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप प्रदान किया गया है। जैसे —कं, खं, गं, घं आदि।
इसी तरह श्रीं, कलीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं। इनको बीज मंत्र भी बोला जाता है। सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालु, दांत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि से शरीर के सभी चक्र और हारमोन स्राव करने वाली सभी ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं। जो एक सकारात्मक उर्जा उत्पन्न करने का कारण बनती हैं।