श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
हिंदू धर्म के इलावा और भी कई धर्मों में स्वास्तिक का अपना विशेष महत्व है।
अन्य धर्मों में स्वास्तिक का महत्त्व।
बौद्ध धर्म में स्वास्तिक का महत्व— बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। बौद्ध मान्यता के अनुसार स्वास्तिक वनस्पति संपदा की उत्पत्ति का कारण है। यह भगवान बुद्ध के पदचिन्हों को दर्शाता है इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं स्वास्तिक भगवान बुध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।
जैन धर्म में स्वास्तिक—वैसे तो हिंदू धर्म में ही स्वास्तिक को सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त है लेकिन हिंदू धर्म से भी ऊपर यदि स्वास्तिक ने कहीं मान्यता हासिल की है तो वह है —जैन धर्म।
हिंदू धर्म से भी कहीं ज्यादा महत्व स्वस्तिक का जैन धर्म में है। जैन धर्म में यह सातवीं जैन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपारसनाथ के नाम से जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्टमंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं। जैन लेखों से संबंधित प्राचीन गुफाओं और मंदिरों की दीवारों पर भी यह स्वास्तिक प्रतीक अंकित मिला है।
हड़प्पा सभ्यता में स्वास्तिक—सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान स्वास्तिक प्रतीक चिन्ह मिला। ऐसा माना जाता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग भी सूर्य पूजा को महत्व देते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता—सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में ऐसे चिन्ह व अवशेष प्राप्त होते हैं जिससे यह प्रमाणित होता है कि—कई हजार वर्ष पूर्व मानव सभ्यता अपने भवनों में इस मंगलकारी चिन्ह का प्रयोग करती थी। सिंधु घाटी से प्राप्त मुद्रा और बर्तनों में स्वास्तिक का चिन्ह खुदा हुआ मिला है। उदयगिरि और खण्डगिरि की गुफा में भी स्वास्तिक के चिन्ह मिले हैं।
यहूदी और ईसाई धर्म—यहूदी और ईसाई धर्म में भी स्वास्तिक का महत्व है। ईसाई धर्म में स्वास्तिक क्रास के रूप में चिन्हित है। एक ओर जहां ईसा मसीह को सूली यानी स्वास्तिक के साथ दिखाया जाता है तो दूसरी और यह ईसाई कब्रों पर लगाया जाता है। स्वास्तिक को ईसाई धर्म में कुछ लोग पुनर्जन्म का प्रतीक भी मानते हैं।
पिरामिड का प्रतीक— स्वास्तिक—स्वास्तिक अपने आप में एक पिरामिड है। क्या आप यह जानते हैं ?नहीं तो एक कागज का स्वास्तिक बनाइए और फिर उसकी चारों भुजाओं को नीचे की ओर मोड़कर बीच से पकड़िए । ऐसा करने पर यह पिरामिड के आकार का दिखाई देगा।
ऐतिहासिक साक्ष्यों में स्वास्तिक का महत्व भरा पड़ा है। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिलालेखों, रामायण, हरिवंश पुराण, महाभारत आदि में इसका अनेक बार उल्लेख मिलता है।
Jai shree shyam meri jaan meri gindagi mera shree shyam h