श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि— हे अर्जुन योग में स्थित होते हुए सभी कर्मों को करोगे तो सफलता अवश्य मिलेगी।
योग का अर्थ है— संतुलन या संयम अर्थात् आहार, विहार, वाणी, व्यवहार और विचार पर स्वयं का नियंत्रण होना चाहिए।
अगर हमारे आचरण में अनुशासन होगा तो हम जीवन में आने वाली समस्याओं का समाधान सरलता से कर सकते हैं।
“योगो भवति दु:खहा” यानी योग ही हमारी सारी समस्याओं का निदान है। योग और ध्यान जीवन के लिए रामबाण हैं। संजीवनी बूटी हैं।
वर्तमान संकट के दौरान अगर देखा जाए तो स्वस्थ और सुखी रहने का महत्वपूर्ण मंत्र है— योग और ध्यान।
योग करने से शरीर स्वस्थ रहता है और ध्यान करने से मन प्रसन्न हो जाता है। मनुष्य की सबसे बड़ी अभिलाषा भी यही है कि— जीवन सुखी एवं खुशहाल रहे।
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए योग का काफी महत्व है। यह ऊर्जा को बढ़ाता है। योग करने से हमारा शरीर हर प्रकार के वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाता है।
ऐसा देखा जाता है की चुनौतीपूर्ण समय में ज्यादातर मनुष्य, जीवन के सरल पहलुओं को भी संभालने में स्वयं को असमर्थ समझते हैं। एक भय का वातावरण बना रहता है क्योंकि मृत्यु की निकटता उन्हें पूरी तरह लाचार महसूस करवाती रहती है।
कोरोना जैसे वायरस का शारीरिक क्षति पहुंचाना एक अलग बात है लेकिन इसके संपर्क में आने के बाद जो मानसिक और भावनात्मक स्तर पर क्षति होती है, उसके बचाव के लिए हमें भरपूर ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता की आवश्यकता होती है। इसलिए ऐसे समय में हमें योग और ध्यान का सहारा लेना चाहिए।
मनुष्य दो तरह के कष्टों से गुजरता है— शारीरिक और मानसिक।
योग से आप शारीरिक कष्ट से मुक्ति पा सकते हैं और ध्यान से मानसिक पीड़ा को दूर किया जा सकता है क्योंकि ऐसे समय में शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाकर रखना पड़ता हैं।
योग के अनेक लाभ हैं लेकिन सबसे प्रमुख है— अच्छा स्वास्थ्य।
यह हमें तनाव मुक्त जीवन जीने की कला सिखाता है। यह सिर्फ व्यायाम नहीं है बल्कि हर एक परिस्थिति में हमें कुशलता से कर्म करना सिखाता है। तनावपूर्ण परिस्थितियों में रहते हुए भी मुस्कान बनाए रखना योग का उद्देश्य है। योगाभ्यास से आप सर्वोच्च सत्य ज्ञान के लिए तैयार हो जाते हैैं। दुखी हैं तो यह दुख से बाहर ले जाता है। बहुत बेचैन हैं तो योग आपके अंदर धैर्य लाता है।
यह तो सभी को पता है कि— हमारे कर्म ही हमारे सुख-दुख के कारण होते हैं। जब हमारे कर्म अच्छे होते हैं, तब हमें सुख मिलता है और जब हमारे कर्म बुरे होते हैं, तब हमें दुख की प्राप्ति होती है। जीवन में अधिक जिम्मेदार बनाने में योग महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। इसे ही कर्म योग कहा जाता है।
योग अधिक ऊर्जा और उत्साह पैदा करता है। यदि हमारे पास पर्याप्त उत्साह और ऊर्जा है तो निश्चित मानिए कि हम अधिक जिम्मेदारी लेंगे और कभी उनका भार महसूस नहीं होने देंगे।
योग की एक अन्य परिभाषा है कि— दृश्य से द्रष्टा भाव में आना यानी बहीर्मुखी से अंतर्मुखी बनना।
पहले भौतिक शरीर से अपने ध्यान को मन की ओर ले जाना। मन में उत्पन्न विचारों को साक्षी भाव से देखने से वह भी दर्शक बन जाते हैं। हम उस तत्व तक पहुंच जाते हैं जो सब कुछ देख रहा है। यही योग है और ध्यान की अवस्था भी है। जब भी हम ध्यान की अवस्था में पहुंचकर खुशी, उत्साह, परमानंद और सुख का अनुभव करते हैं तो जाने अनजाने में उस परमात्मा से संपर्क स्थापित करने में थोड़े बहुत सफल अवश्य हुए हैं। योग और ध्यान के माध्यम से हम उस परम तत्व का अनुभव सहजता से कर सकते हैं।
योग से हम आंतरिक सौंदर्य को निहारना सीख सकते हैं। जब हम आंतरिक सौंदर्य को निहारना सीख जाते हैं, तभी हमें बाहरी सौंदर्य का अहसास होता है जो योग और ध्यान में अपना समय निवेश करते हैं, उन्हें बाहरी दुनिया में भी अद्भुत सौंदर्य दिखाई देने लगता है।
हमारे चारों तरफ सौंदर्य बिखरा पड़ा है। खूबसूरत पेड़ हैं, सुहावने बादल हैं, प्रकृति ने हमें ऐसे सुंदर- सुंदर फूल दिए हैं, जिनको हम कभी देखते ही नहीं। ऐसा- ऐसा सौंदर्य भरा पड़ा है, जिसे हमने कभी देखने की कोशिश ही नहीं की। हम तो अपनी ही परेशानियों, समस्याओं, इच्छाओं और चिंताओं में जरूरत से ज्यादा व्यस्त रहते हैं। हमने कभी किसी सूर्योदय या सूर्यास्त को नहीं निहारा।
सच तो यह है कि हमने पहले कभी बाहरी सौंदर्य की कद्र ही नहीं की लेकिन जब हमारे अंदर आंतरिक सौंदर्य की उपस्थिति होती है तो हमें बाहरी सौंदर्य का भी एहसास होने लगता है। देखा जाए तो सौंदर्य वस्तुओं, तस्वीरों, कहीं किसी सूर्यास्त अथवा किसी सुंदर फूल पर निर्भर नहीं करता। उस सौंदर्य का आगमन तभी होता है जब अगाध प्रेम, करुणा हमारे भीतर मौजूद हो। जब हम अंदर से मजबूत होते हैं, तभी हमें बाहरी सौंदर्य अच्छा लगता है क्योंकि जब तक हम अंदर से खुश नहीं होंगे, तब तक हमें सौंदर्य का प्रगाढ़ अहसास नहीं होगा और जब तक अहसास नहीं होगा तब तक हमें सौंदर्य कभी दिखाई नहीं देगा क्योंकि जब तक इच्छा प्रबल नहीं होगी, तब तक सब झूठ लगता है। जब अंदर से आंतरिक सौंदर्य का एहसास होता है, तभी इच्छाएं पनपती हैं और तब जब इच्छा होती है, तब हमें प्रकृति की हर वस्तु सुंदर लगती है।
यह सब कुछ होता है योग और ध्यान से। इसलिए योग और ध्यान के माध्यम से स्वयं को तराशें। संकट के समय योग और ध्यान से ही हम जीवन को सुखी बना सकते हैं। यही एक मार्ग है जो हमें नीरोगता के पथ पर ले जाता है।
मैं यह बिल्कुल भी नहीं कह रही कि— आप योगी बनें। भले ही आप योगी न बने लेकिन इस संकट के समय सहयोगी और उपयोगी अवश्य बनें। अपनी चिंता को एक किनारे रख कर शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से अपने को उन्नत अवश्य करें।
स्वामी विवेकानंद—
योग वह विज्ञान है जो हमें चित्त की परिवर्तनशील अवस्था से निरुद्ध कर उसे वश में करने की शिक्षा देता है।
Jai shree Shyam 🙏 mera Shara mera Jai shree Shyam 🙏