श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
संसार में सभी तरह के मनुष्य निवास करते हैं, उनमें कोई सज्जन प्रवृत्ति का होता है तो कोई दुर्जन प्रवृत्ति का। संत महापुरुष उनको हमेशा एक ही दृष्टि से देखते हैं। समाज में सदैव यही उपदेश देते हैं की सबको एक- दूसरे के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। किसी के साथ छल कपट नहीं करना चाहिए, परंतु ऐसा अक्सर देखा जाता है कि सज्जन मनुष्य अपनी सज्जनता नहीं छोड़ते। उनके साथ चाहे कितना भी बुरा कर लो, वे अपना बिहेवियर चेंज नहीं करेंगे। इसके विपरीत दुर्जन मनुष्य भी अपनी दुर्जनता नहीं छोड़ते। उनके साथ कितना ही निर्मल व शालीन व्यवहार किया जाए, वे हमेशा बुरा ही सोचते हैं और बुरा ही करते हैं।
आज के समय हमारे चारों ओर दुर्जन व्यक्तियों की ही भरमार है। छल कपट करना, धोखा देना, मर्डर करना उनके लिए तो ऐसा है, जैसे हम सब्जी मंडी में गए और सब्जी खरीद कर ले आए। उनको किसी भी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। किंतु इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि हमारे साथ कोई अन्याय करें और हम स्वयं का बचाव भी न करे। अगर हमें कोई हानि पहुंचाए तो उस समय, अपनी सुरक्षा करना हमारा प्रथम कर्तव्य है और यही धर्म है। हमें बिना किसी को क्षति पहुंचाए, अपनी उन्नति की ओर अग्रसर रहना चाहिए।
एक बार स्वामी रामकृष्ण परमहंस से शिष्यों ने पूछा— गुरु जी! इस संसार में सज्जन अपना निर्वहन कैसे करें, तो स्वामी जी ने उनको एक बहुत ही सुंदर कथा सुनाई।
एक बार की बात है कि— कुछ ग्वाले गाय चराने के लिए जंगल में जाते थे। उस जंगल में एक भंयकर सांप रहता था। ग्वाले और उसके आसपास रहने वाले सभी मनुष्य सांप के विषय में अच्छी तरह जानते थे। उनको पता था की वह काफी जहरीला सांप है। अगर किसी को डस लेता तो उसकी मौत निश्चित है। इसलिए उस जंगल में, सांप के एरिया में कोई नहीं जाता था।
एक दिन एक साधु महात्मा वहां से गुजर रहे थे। ग्वालों ने उसको सांप के विषय में बताया। लेकिन साधु महात्मा ने ग्वालों की बात नहीं मानी और वह सांप के एरिया वाले रास्ते से जंगल में आगे बढ़ गया। ग्वाले भी उसके पीछे- पीछे चल पड़े। यह देखने के लिए की साधु महात्मा का क्या होगा?
धीरे-धीरे साधु महात्मा भी सांप के बिल के पास पहुंच गया। सांप भी उसको डसने के लिए तैयार था।
तभी ग्वालों ने देखा की साधु महात्मा ने एक मंत्र पढ़ा और सांप बिल्कुल एक केंचुए की तरह उनके चरणों में लेटने लगा।
ग्वालों ने यह भी देखा कि उस साधु महात्मा ने उस सांप को भी एक मंत्र दिया और कहा—यदि तुम नियमित रूप से इसका जाप करते रहोगे तो दुष्टता का तुम्हारा स्वभाव समाप्त हो जाएगा और तुम ईश्वर की प्राप्ति कर पाओगे।
सांप ने साधु महात्मा द्वारा दिया गया मंत्र ग्रहण कर लिया और नियमित रूप से उसका पाठ करने लगा। कुछ समय के बाद सांप के स्वभाव में बहुत बड़ा बदलाव आ गया। वह किसी को भी कुछ नहीं कहता था। आसपास रहने वाले सभी मनुष्यों को यह बात पता लग गई थी कि— साधु महात्मा द्वारा दिए गए मंत्र से सांप की दुष्टता खत्म हो गई। अब वह किसी को भी कुछ नहीं कहता, तो सभी उस जंगल से आने जाने लगे।
एक दिन सांप अपने बिल से निकलकर धूप सेंक रहा था। ग्वालों को शरारत सूझी कि— पत्थर मारकर देखते हैं की सांप हमें काटने के लिए दौड़ता है या नहीं और मजाक- मजाक में उन्होंने सांप पर काफी वार किए। पत्थरों की मार से सांप अत्यंत घायल हो गया। वह किसी तरह से उठा और अपने बिल में चला गया। अब वह दिन में अपने बिल से बाहर नहीं निकलता था, जिसके कारण वह प्रतिदिन दुर्बल होता जा रहा था।
एक वर्ष के बाद वही साधु महात्मा उसी जगह पर आए। उन्हें सांप को देखने की उत्सुकता थी। इसलिए वे उनके पास गए। सांप की ऐसी दुर्गति देख उन्होंने पूछा— यह सब कैसे हुआ?
सांप ने अपनी आपबीती सुनाई।
सांप की बात सुनकर साधु महात्मा ने कहा— मैंने तो तुम्हें काटने के लिए मना किया था, फुफकारने के लिए नहीं।
Jai shree shyam ji meri gindagi mera shree shyam ji jai jai shree shyam