श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
चिंता अर्थात् पागल बना देने वाला एक ही विचार या वह तीव्र विचार जो चाहने पर भी मस्तिष्क से दूर न हो सके अर्थात् जिस विचार को हम अपने दिमाग से निकाल ही न पाएं। यह एक ऐसी हथौड़ी है जो मस्तिष्क के सूक्ष्म एवं सुकोमल तंतुजाल को कुचलकर हमारी कार्यकारिणी शक्ति को नष्ट कर देती है।
हमारे मस्तिष्क के स्नायु तंत्र इतने सूक्ष्म होते हैं कि उनको केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है लेकिन चिंता इन्हीं विचार तंतुओं पर अपना आधिपत्य स्थापित करती है और यदि हम उन्हें तुरंत बाहर न निकाल पाएं तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि हम उन विचारों को दूर करने में असमर्थ हो जाते हैं।
चिंता से मस्तिष्क का एक अंश घायल हो जाता है क्योंकि मस्तिष्क के सभी सैल परस्पर घनिष्ठ संबंध रखते हैं। इसलिए इस प्रक्रिया का दुष्प्रभाव समस्त चिंतन प्रक्रिया पर पड़ता है। तन्तुओं का संयोजन नष्ट हो जाने के कारण, क्रमबद्ध चिंतन की शक्ति क्षीण हो जाती है।
अगर यह कहा जाए कि— आज के समय चिंता करना पिछड़ेपन की निशानी है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब वाष्प इंजन का आविष्कार हुआ, तब 90% शक्ति बेकार चली जाती थी, केवल 10% ही उपयोग में आती थी। धीरे- धीरे इंजन में सुधार किया गया और आज ऐसा बिजली का इंजन बन चुका है जो 90% शक्ति का उपयोग करता है, केवल 10% शक्ति बेकार जाती है।
कुछ मनुष्य वाष्प इंजन की तरह होते हैं, जो अपनी शक्तियों का 90% भाग चिंता में, दुख तकलीफों में, शिकायतों में, जीवन की कठिनाइयों में व्यर्थ गंवा देते हैं। परंतु जो समझदार हैं, वे अपनी सारी शक्ति को कार्य में बदल डालते हैं। वे जी- जान लगाकर सिर्फ अपने कार्य पर फोकस करते हैं और अपनी मेहनत के बलबूते शिखर पर पहुंचते हैं। इससे उनका जीवन चमचमा उठता है।
जिसे जीने की कला की सच्ची शिक्षा मिल चुकी है,वे अपनी शक्तियों को चिंता में नही गवाएंगे बल्कि वे तो चिंतन करेंगे और अपने जीवन की कठोर डगर को सरल बनाएंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि— चिंता की यह प्रक्रिया जीवन की मशीन को तोड़ने फोड़ने के सिवा और कोई कार्य नहीं करती।
दुख, तकलीफ, दुर्घटनाएं जीवन को अंधकारमय नहीं बनाते लेकिन मनुष्य मामूली-सी चिंता से तिल- तिल कर क्षीण होता जाता है, जिससे उसके जीवन से सुखचैन खत्म हो जाता है। चिंता करने से उसके मस्तिष्क पर दबाव पड़ने लगता है लेकिन फिर भी जिस कार्य के लिए चिंता करता है, वह कार्य जरा- सा भी आगे नहीं बढ़ता।
मनुष्य को काम की अधिकता नहीं मारती बल्कि चिंता मारती है। काम तो शरीर को स्वस्थ रखने की एक वस्तु है। आपने स्वयं देखा भी होगा कि किसी मनुष्य की शक्ति से अधिक काम उससे नहीं करवाया जा सकता। लेकिन चिंता तो मनुष्य की शक्तियों की तेज धार को कुंद कर देती है।
डॉक्टर जैकोबी जो अमेरिका के मस्तिष्क चिकित्सकों में सर्वश्रेष्ठ डॉक्टरों में एक हैं, उनका भी यही कहना है कि— मस्तिष्क की चिकित्सा संबंधी खोजों से यही सिद्ध हुआ है कि— चिंता वास्तव में मनुष्य को मार डालती है। चिंता के घातक प्रभाव के बारे में ही नहीं बल्कि उसके मारने के ढंग क्या हैं, इस बात का भी पता लग चुका है। मस्तिष्क का विशेष अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक डॉक्टरों का समान रुप से विश्वास है कि— सैकड़ों मौतें, जिनके लिए अन्य कारण बताए जाते हैं, केवल चिंता के कारण ही होती हैं या यूं समझ लीजिए कि मस्तिष्क संस्थान के अंशों पर चिंता ऐसे घाव कर डालती है, जिनका निदान करना कठिन होता है।
जिस प्रकार एक स्थान पर पानी की बूंद लगातार पड़ती रहने से गड्ढा हो जाता है, ठीक उसी प्रकार एक ही बात का विचार करते रहने से, एक ही बात एकाग्र होकर सोचते रहने से, मस्तिष्क के सैल नष्ट हो जाते हैं।
एक स्वस्थ मस्तिष्क कभी-कभी होने वाली चिंता को तो सहन कर लेता है लेकिन बार-बार किसी एक ही विचार पर जोर देने से मस्तिष्क में होने वाले घाव का मुकाबला नहीं कर पाता। चिंता मस्तिष्क पर वैसे ही वार करती है, जैसे मस्तिष्क को खोल कर उसके ऊपर एक छोटी-सी हथौड़ी की निरंतर चोट की जा रही हो, जिसका परिणाम अंत में यही होता है कि मस्तिष्क के तंतु विकृत होकर अपनी कार्य शक्ति को खो बैठते हैं।
वर्तमान के संकट में शायद ही कभी किसी को ज्यादा परेशानी होती होगी। परंतु आने वाले संकटों की आशंका और चिंता से अवश्य होती है। जो बहुत दूर तक सोचते रहते हैं, चिंता करते रहते हैं, उनका मस्तिष्क थक जाता है। वह काम करना कम कर देता है। ऐसे मनुष्य किसी पहाड़ी के पास पहुंचने से पहले ही उस पर चढ़ाई करना शुरू कर देते हैं।
आज की उन्नति में वे चिंता द्वारा जानबूझकर एक दीवार खड़ी कर देते हैं। वे बन्धन में बंधकर जीवन बिताते हैं। ऐसे मनुष्य जीवन जीते नहीं बल्कि उसे बोझ समझते हुए व्यतीत करते हैं। हो सकता है, भूतकाल में उनका जीवन संघर्षों में बिता हो, परंतु वह समय निकल चुका है। अब उनके बारे में सोच कर चिंता करने से क्या फायदा?
अनदेखी मुसीबतों की चिंता करने की अपेक्षा क्यों न अपने वर्तमान समय का आनंद लिया जाए। क्यों न अपने जीवन में आने वाले सुखों पर विचार कर आनंदित हुआ जाए? क्यों नित्य व्यर्थ की चिंता द्वारा गड्ढे खोदकर अपने आप को दयनिय अवस्था में पहुंचाते रहते हैं? क्यों हम अपनी तुलना दूसरों से करते रहते हैं?
यह विश्व कैसा है, इसको देखने का नजरिया सबका अपना-अपना है। यह विश्व एक दर्पण के समान है। इसमें जैसा हमारा चेहरा होगा, वैसा ही प्रतिबिंब दिखाई देगा। यदि चिंता से भरपूर मनहूस चेहरा बनाए रखेंगे तो यह विश्व हमें आनंदहीन दिखाई देगा और यदि हम चिंता विहिन चेहरा रखेंगे तो हमारे चारों तरफ आनंद ही आनंद होगा। हमें हर समय खुशियां प्राप्त होती रहेंगी। अब यह आपके हाथ में है कि— आप क्या चाहते हैं?
Jai Radhe Radhe Shyam Meri jaan mera shree shyam