श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना। अध्यात्म में आत्मा को परमात्मा से जोड़ना योग है। पतंजलि के योग सूत्र के अनुसार चित वृत्तियों के नियमन को योग कहते हैं।
योग जीवन जीने की शैली है लेकिन लोग यही सोचते हैं कि प्राणायाम और आसन ही योग हैं। लेकिन ऐसा नहीं है। यह बहुत बड़ा आध्यात्मिक शास्त्र है। चित्त की प्रवृत्तियों का निरोध ही योग है।
प्रत्येक साधना परमात्मा से जोड़ती है। लेकिन योग साधना में अध्यात्मिक ज्ञान जुड़ा है। इस कारण यह सर्वोपरि है। इसमें कायाकल्प करने की शक्ति निहित है।
योग का सिद्धांत है कि जो स्वस्थ है, वह स्वस्थ बना रहे। अगर कोई बीमार हो जाए तो योग के द्वारा निवारण संभव है। योग में उपचारात्मक अवस्था सम्मिलित है। योग शरीर का शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक दृष्टि से विकास करता है। जीवन में असंतुलन की समस्या को ठीक करने में भी योग मार्गदर्शक है।
वेदों के अनुसार आचरण करना, वैदिक दिनचर्या को वहन करना और योग को अपने जीवन में शामिल कर स्वस्थ और संतुलित जीवन जीना ही योग का महत्व है। योग के आठ अंग हैं— यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि यह सभी एक- दूसरे से जुड़े हुए हैं। जब हम जीवन में प्रतिदिन इनका अभ्यास करना शुरू कर देंगे तो न केवल शारीरिक रूप से बल्कि आत्मिक रूप से भी मजबूत हो जाएंगे।
जो मनुष्य अनासक्त भाव से अपने सभी कर्म ईश्वर को समर्पित कर देता है, वही सच्चा योगी है क्योंकि ईश्वर को अर्पण करने वाला मनुष्य कोई भी दुष्कृत्य कर ही नहीं सकता। उसे सांसारिक प्रपंचों में आसक्ति भी नहीं होती। ईश्वर को समर्पित प्रत्येक कर्म, यज्ञ की पावन आहुतियां बन जाते हैं और समत्व बुद्धि को प्राप्त मानव कर्त्ताभिमान से मुक्त होकर परम योगी बन जाता है।
जब हम कोई भी कार्य बुद्धिमत्ता एवं कुशलता से करते हैं तो वह योग के प्रभाव से ही होता है। योग उनके लिए नहीं है जो सिर्फ खाने के बारे में सोचते रहते हैं या फिर स्वयं को भूखा रखने की कोशिश करते हैं। उनके लिए भी नहीं है जो अत्यधिक नींद लेते हैं या फिर जरूरत से अधिक जागते रहते हैं। योग उनके लिए है जो खानपान एवं आराम करने में संयम रखते हैं, जिनके सोने और उठने का समय निश्चित होता है।
सभी प्रकार की पीड़ा एवं दुखों को नष्ट करने की शक्ति योग में है। योगी किसी से डरता नहीं है क्योंकि वह योग के द्वारा स्वयं को पवित्र बना लेता है। सबसे अधिक भय तो मृत्यु का होता है। योगी को मालूम होता है कि वह अपने शरीर से अलग है। शरीर उसकी आत्मा का अस्थाई घर है। इसलिए उसे डर नहीं लगता। बीमारी तो शरीर में आती है। आत्मा तो अजर- अमर, अविनाशी है।
Jai radhe radhe shyam meri jaan mera shyam