21. आत्मचिंतन

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

आज पूरा विश्व कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए “त्राहिमाम-त्राहिमाम” कर रहा है। क्योंकि इसके संक्रमण के फैलाव को रोकने की चुनौती विश्व समुदाय के सामने हैं। ऐसे में एक्सपर्ट की मानें तो स्वयं को एकांत में रखना है, ताकि इस वायरस के संक्रमण से स्वयं को बचाया जा सके। आज लगभग पूरा विश्व लोक डाउन है, जिसकी वजह से हमारे पास समय की कोई कमी नहीं है। ऐसे में हमें समय का सदुपयोग करते हुए आत्मचिंतन करना चाहिए। इससे हमें सकारात्मकता मिलेगी और हम इन जटिल परिस्थितियों में भी अपने आपको तनाव और अवसाद का शिकार होने से बचाएंगे। आज आपके पास समय की कोई कमी नहीं है, इसलिए इस बहुमूल्य समय का सदुपयोग अपने व्यक्तित्व को निखारने और अपने रिश्तेदारों, दोस्तों और परिवार के सदस्यों को प्रोत्साहित करते हुए उन्हें भी आत्मचिंतन करने के लिए प्रेरित करें। इस तरह आप एकांत में रहते हुए भी अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने में सफल होंगे। आत्मचिंतन करते हुए आप अपने जीवन में घटित हुई घटनाओं को समरण कीजिए। अगर आपको किसी काम में सफलता प्राप्त हुई है, तो उसके कारण का पता कीजिए और असफलता प्राप्त हुई है, तो भी उसके कारण का पता कीजिए। कहने का अभिप्राय यह है कि हमें जीवन में सुखद और दुखद दोनों अभिव्यक्तियों से गुजरना पड़ता है। अक्सर लोग कहते हैं कि दुखद अनुभूतियों को कहीं गहराई में दफन कर देना चाहिए, ताकि हमें उनका एहसास न हो। लेकिन मेरा यह मानना है कि सुखद की बजाय दुखद अनुभूतियों को फिल्टर करने की ज्यादा जरूरत है, क्योंकि हमें उनका स्थाई समाधान चाहिए। दोनों ही हमें संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करते हैं और हमारे व्यक्तित्व को निखारने में सहायक सिद्ध होते हैं।

अगर जिंदगी में सुख ही सुख हो तो हमें दुख का सामना करने की शक्ति कहां से आएगी। इसलिए आत्मचिंतन करते हुए अगर आपके जीवन में कोई दुर्घटना हुई हो और वह आपकी परेशानी का कारण बनती हो, तो अपनी मानसिक ताकत को पहचानते हुए अपने अंदर ऊर्जा का संचार कीजिए और उसके प्रति अपनी सद्भावना व्यक्त करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दीजिए। आपके मन का बोझ हल्का हो जाएगा। आप बिल्कुल तरोताजा महसूस करेंगे। क्योंकि कहीं गहराई में दफन की हुई दुखद अनुभूतियां हमारे अवचेतन मन में सक्रिय रहती हैं। हम इनको कितना ही दबाने की या छुपाने की कोशिश करें, समय-समय पर हमारे जीवन में हलचल मचा ही देती हैं और हम इन से भागने की जितनी भी कोशिश करें ये हमारा पीछा तब तक नहीं छोड़ती, जब तक हम निडरता से इनका सामना  न करें। हमारे अवचेतन मन में जन्म-जन्मांतर के संस्कार भरे हुए हैं। इसमें दबी हुई दुखद अनुभूतियों के साथ-साथ हमारी आशाएं और इच्छाएं भी रहती हैं। जिन्हें हम किसी कारणवश पूरी नहीं कर पाए। लेकिन समय के साथ हम इन्हें मन से लुप्त हुई मान लेते हैं। इसी कारण हम सपनों में इन्हें अक्सर देखते रहते हैं।

जीवन में हुई भूलों और समय-समय पर होने वाली बेचैनी का कारण यह दुखद अनुभूतियां ही होती है। अक्सर हम दोस्तों से, परिवार वालों से या कोई जानने वाला है, उससे यह कहते हुए सुनते हैं, कि आज बहुत बेचैनी हो रही है, मन बड़ा उदास है, किसी अनहोनी की आशंका है, यह सब कुछ हमारे दुखद अनुभूतियों के कारण ही होता है। क्योंकि हम उनका सामना करने से घबराते हैं। इसलिए हमारे मन में अंतर्द्वंद चलता रहता है। आपने अपने बड़े-बूढ़ों से सुना होगा कि मुख, हृदय का दर्पण होता है। सारी जाग्रत या प्रसुप्त अनुभूतियां हमारे अवचेतन मन में बीज रूप में विद्यमान रहती हैं। यह भौतिक शास्त्र का सिद्धांत है कि उर्जा कभी नष्ट नहीं होती। जब हमारी कामनाओं की पूर्ति हो जाती है, तो उनकी शक्ति भी शांत हो जाती है। परंतु जब हम उनको बलपूर्वक कुचलते हैं तो वे चित की गहराई में चली जाती हैं और उनकी शक्ति रूपांतरित होकर व्यक्त होने की चेष्टा करती है तथा रुकावट एवं शक्ति के अनुपात में हमारी मानसिक शांति को विकृत कर नाना प्रकार के उपद्रवों के रूप में प्रकट होती है। ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति की बुद्धि कार्य करती है। जो व्यक्ति अपनी दुखद अनुभूतियों को स्वीकार करके आत्मचिंतन के द्वारा बाहर निकल आता है, वह हमेशा सुखी रहता है क्योंकि उसको कोई भी बात या घटना उजागर होने का डर नहीं रहता। लेकिन जो निर्दयतापूर्वक इनको कुचलने में लगे रहते हैं, वे अशांत रहकर अपने लिए खुद की समस्या उत्पन्न करते रहते हैं और हर समय द्वन्द्व की स्थिति में होते हैं।

अगर किसी के साथ ऐसा कुछ हो रहा है, तो यह सही समय है -आत्मचिंतन कर अपनी गलती सुधारने का, क्योंकि ऐसा समय हमारी जिंदगी में पुन: आए, इसकी तो कोई भी कल्पना नहीं करेगा। इसलिए आत्मचिंतन के द्वारा अपनी गलतियों को सुधारिये, किसी के साथ अनबन है, तो उससे बात कीजिए, कोई गलती हुई है, तो बड़प्पन दिखाते हुए माफी मांगीए, अपने रिश्तों को मन में बसाइए न कि समाज में या ऐसा कोई भी कार्य जो करना चाहते थे, लेकिन किसी कारणवश कर नहीं पाए या करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए, उसको पून: करने की कोशिश मत कीजिए बल्कि पुरे आत्मविश्वास और समर्पण के साथ उसको सफलतापूर्वक करने का दायित्व उठाइए। फिर आप देखना कि कोई भी जटिलता आपके मार्ग में बाधक नहीं बनेगी। हम अक्सर सोचते हैं कि इस कार्य को और बेहतर तरीके से कर सकते हैं, तो सोचिए मत बल्कि करिए और आतमचिंतन का रास्ता अपनाकर अपनी जिंदगी को और बेहतर बनाइए, क्योंकि मनुष्य अपने आप को जितना जानता है और समझता है उतना कोई और नहीं समझ सकता। वह अपने गुण व अवगुण से भली-भांति परिचित होता है। इसीलिए कोरोनावायरस की वजह से जो कठिनाइयां, जटिलताएं हमारे जीवन में आई हैं, उनका शोक मनाने की बजाय आत्मचिंतन में ध्यान लगाएं। ताकि अंत समय में यह अफसोस ना रहे कि समय की कमी के कारण हम यह नहीं कर पाए। क्योंकि अंत समय में सभी को यह अफसोस रहता है कि- हमें थोड़ा और समय मिला होता तो हम यह भी कर सकते थे। हमारे को जो प्रकृति ने समय दिया है, उसका भरपूर फायदा उठाइये और कोरोना वायरस जैसी त्रासदी का बगैर डर या भय के डटकर सामना कीजिए।

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