श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में जिसे देखो, वह संन्यास लेने की बातें करता रहता है। सब कुछ छोड़ कर पर्वतों, पहाड़ों, जंगलों या गुफाओं में बैठकर साधना करना चाहता है। वह यही सोचता है कि घर परिवार से दूर रहकर ही सन्यास लिया जा सकता है। वह भूल जाता है घर परिवार से दूर भागने से सन्यास प्राप्त नहीं होगा क्योंकि सन्यास आंतरिक क्रांति है। यह अंतर में ही घटित होती है। यहां से भाग कर एकांत में रहकर साधना करना बहुत आसान है। असली संन्यासी तो वही है जो समाज के बीच रहकर साधना करता है। साधना के रास्ते में आने वाली चुनौतियों को स्वीकार करते हुए अपनी यात्रा पर आगे बढ़ता है।
साधना संसार के मध्य रहने से ही है। मेरा ऐसा मानना है कि जितनी सुविधा लोगों के बीच संसार में रहते हुए बदलने की है, उतनी हिमालय पर नहीं है। क्योंकि यहां पर प्रतिपल अवसर ही अवसर हैं। चुनौतियां हैं, हर समय मुसीबतों से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि प्रत्येक क्षण संघर्ष है। प्रत्येक व्यक्ति जिसे तुम मिलते हो, तुम्हारे भीतर मन के किसी कोने में रोशनी कर देता है। अगर तुम लोगों से नहीं मिलोगे तो बहुत- सी ऐसी बातें जो तुम्हारे संबंध में हैं, पता ही नहीं चलेंगी।
अगर कोई गाली देने वाला, अपमान करने वाला मिलेगा ही नहीं तो तुम्हें कैसे पता लगेगा कि तुम्हारे अंदर क्रोध की भावना है ही नहीं यानी तुम अक्रोधी हो। गाली देने वाला मिलेगा तभी तो तुम्हें अपने अंदर के क्रोध का पता चलेगा। गाली देने वाला तुम्हारे आत्मदर्शन में सहायता करेगा। वह तुम्हारे जीवन के एक पहलू को रोशन करेगा। उसने तुम्हें बताया कि तुम्हारे भीतर क्रोध है तो तुम उस क्रोध के साथ किस तरह का व्यवहार करोगे यानी उस क्रोध को शांत करने के लिए कौन-कौन से उपाय करोगे।
अगर तुम घर परिवार छोड़कर पर्वतों, पहाड़ों, जंगलों या गुफाओं में चले गए तो वहां पर कौन तुम को क्रोध दिलवाएगा? वहां पर कौन ऐसा होगा जो जो तुम्हें, तुम्हारे बारे में ही बतलाएगा। वहां न कोई गाली देने वाला मिलेगा और न कोई सम्मान करने वाला, न कोई धन का प्रलोभन देगा। जब कोई मिलेगा ही नहीं तो तुम्हें आत्मदर्शन का अवसर कैसे प्राप्त होगा? अगर तुम्हें आत्मदर्शन करना है तो साधना संसार में ही रहकर करो। कांटो के बीच में रहते हुए जिस दिन तुम चलना सीख लोगे और तुम्हें कांटे भी नहीं चुभेंगें, बस उसी दिन समझ लेना कि अब तुम साधना के योग्य हो गए।
ईश्वर से संबंध स्थापित करना है तो संसार से मत भागो। भगोड़ों और कायरों से ईश्वर का संबंध नहीं बनता। क्योंकि प्रज्ञा का जन्म प्रतिपल जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करने से होता है। संसार में रहते हुए आपको हजारों बार गाली दी जाएंगी। आप बार-बार साधना के पथ से पथभ्रष्ट होंगे। बार-बार अपना रास्ता बदलेंगे लेकिन फिर हिम्मत करके उठ खड़े होंगे। लोगों की बेसिर पैर की बातों को सुनकर बार-बार क्रोधित हो जाओगे। हजार बार के अनुभव से तुम्हें समझ में आ जाएगा कि अपने को जलाना व्यर्थ है। गाली कोई दूसरा दे रहा है तो दंड अपने को देना व्यर्थ है। एक दिन तो अवश्य ऐसा आएगा कि कोई दूसरा गाली देगा और तुम्हें क्रोध नहीं आएगा। उसी दिन तुम्हारे भीतर का एक कांटा फूल बन जाएगा। उस दिन तुम्हें जो शांति मिलेगी कोई पर्वत, जंगल या गुफा नहीं दे सकता।
अरबपति हेनरी फोर्ड अपने बच्चों को सड़क पर जूता पॉलिश करने के लिए भेजता था। उसका कहना था कि अपना जेब खर्च स्वयं कमाओ।
यह बात जब पड़ोसियों को पता चली तो उन्होंने कहा— यह तुम क्या करवा रहे हो। यह बच्चों के साथ ज्यादती है।
तब हेनरी ने कहा कि— मैंने खुद जूते पॉलिश करके पैसे कमाए हैं। अगर आज मैं इन्हें बहुत सुरक्षा देता हूं तो ये अपने जीवन में कोई संघर्ष नहीं करेंगे। आज जितना संघर्ष करेंगे, उतने ही मजबूत बनेंगे।
सन्यास महान संघर्ष है— जागरण का। जहां चुनौती है, वहीं अवसर है, अपने आप को निखारने के। वहां से भागना मतलब चुनौतियों से भागना।
Jai Shree Shyam Sundar Maharaj Ji