ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः
अगर जीवन में संघर्ष न हो तो मनुष्य के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। बिना कड़ी मेहनत के जो सफलता पाई जाती है, वह महत्वहीन होती है। परिस्थितियों से जूझते हुए, कठिनाइयों से लड़ते हुए यदि हिम्मत ना हारी जाए, तो सफलता रूपी मंजिल जरूर मिलती है। चुनौतियों से लड़ते हुए, संघर्ष करते हुए व्यक्ति की जीवात्मा के ऊपर छाया हुआ अंधेरा छंटता है और जीवन प्रकाशमान होता है। आमतौर से अपने बचपन से ही हम ऐसे जुमले सुनते हुए बड़े होते हैं, कि जीवन संघर्ष का ही नाम है। बगैर संघर्ष किए जीवन रूपी नैया को पार लगाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। जब हम छोटे होते हैं, किशोर होते हैं, उन दिनों की सुनी गई तमाम बातें हमारे चेतन, अवचेतन में हमेशा रहती हैं और कहीं ना कहीं हमारी तमन्नाऐं भी उनसे प्रभावित होती हैं। बचपन में हम बड़े-बूढों से सुनते हैं, कि जितनी चादर हो उतने पैर फैलाने चाहिए। उनके कहने का अभिप्राय यह था कि हमें अपनी हैसियत के अनुसार कार्य करना चाहिए, ताकि किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। लेकिन मेरे विचार थोड़े से भिन्न हैं, जरा सोचिए चादर तो बढ़ाई जा सकती है, पर क्या चाह कर भी हम पैर बढ़ा सकते हैं। इसलिए अगर हमारे पास बड़े पैर हैं, लंबे पैर हैं तो हमें क्यों नहीं उनके हिसाब की चादर का इंतजाम करना चाहिए। हम अपने पैर ही क्योंं सिकोडें ? दरअसल सुनने में यह बात (उतने पैर फैलाइये, जितनी लम्बी चद्दर) भले ही व्यवहारिक और सजग रहने के लिए जरूरी लगती हो, लेकिन हकीकत में यह बहुत नकारात्मक बात है। जब हमारे जीवन में कुछ भी सरल नहीं है। यहाँ हर व्यक्ति को अपनी मंजिल को पाने के लिए संघर्ष का सहारा लेना ही पड़ता है। तो इस तरह की प्रतिबंधित सोच के बीच हम कभी भी बड़ा नहीं सोच सकते। हम हमेशा अपनी चादर से कम के बारे में सोचेंगे और ऐसे में अगर दुर्भाग्य से हमारे पैर बड़े हुए तो हमें उनके सिकोड़ने की कला में पारंगत होना पड़ेगा, जबकि यह चादर को बड़ा बनाने के मुकाबले कहीं ज्यादा पीड़ादायक है।
बावजूद इसके कोई भी उपदेशक हमसे यह नहीं कहता कि अपने पैरों से बड़ी चादर की व्यवस्था करें। एक बार जब हमारे अंदर इस तरह की आदत घर कर जाती है तो, फिर हम हमेशा पैर सिकोड़ने के बारे में सोचते रहते हैं। यहाँ तक कि सिकोड़ते-सिकोड़ते इतना सिकोड़ देते हैं कि अपना वजूद ही खो देते हैं। हालांकि जब जीवन में बुनियादी समस्याएं हों तो संघर्ष करने की इच्छाशक्ति को बनाए रखना थोड़ा कठिन होता है। क्योंकि ऐसे में लक्ष्य की प्राप्ति के साथ बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। इस तरह से जीवन का संघर्ष दोगुना हो जाता है। ऐसे में यदि व्यक्ति के अंदर आतंरिक बल है, प्रर्याप्त शारीरिक और मानसिक क्षमता है, तो दोगुने संघर्ष में भी कोई दिक्कत नहीं आती। इसके लिए सिर्फ जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, चाहत और लक्ष्य को पाने की मन में ललक होनी चाहिए। लेकिन भारतीय समाज में ही नहीं दुनिया के ज्यादातर समाज में नकारात्मकता मौजूद होती है। यही वजह है बिजनेस के क्षेत्र में सिर्फ 10% लोग सफल होते हैं। लेकिन अगर इस आंकड़े को इस प्रकार से देखा जाए की भरपूर उदारता के साथ कारोबार करने वाले लोग ज्यादा सफल होते हैं, तो पता चलेगा कि ज्यादातर लोग काम से नहीं, अपनी सोच से असफल होते हैं। दरअसल जो व्यक्ति हमेशा नकारात्मक सोचता है, वह हमेशा डरी-डरी मन: स्थिति में रहता है। उसका आत्मविश्वास हमेशा कमजोर रहता है। यही कारण है कि वह कभी उंचे ख्वाब नहीं देखता। कोई जोखिम नहीं लेता। संघर्ष करने की लगन ही व्यक्ति की लक्ष्य की ओर गति को थमने नहीं देती। आशा की किरण को टूटने नहीं देती, बल्कि उत्साह-उमंग को निरंतर बढ़ाती है। यही कारण है कि आज देश में अभावों के अंधेरों के बीच भी सफलता की रोशन राहें निकाल रही हैं।
सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति चुनौतियों को पसंद करता है। परिणाम स्वरूप वह किसी कार्य में हाथ आजमाने से नहीं चूकता। सहूलियतों के बीच जीवन जीकर मुकाम बनाना ही सब कुछ नहीं है, बल्कि अभावों के बीच जीवन जीना भी जरूरी है। तभी जीवन के सही मर्म का पता चलता है। वास्तव में सफलता प्राप्त करने के लिए जीवन में संघर्ष जरूरी है। इसके साथ ही चुनौती पसंद होना भी जरूरी है। खाब जब तक ऊंचे नहीं होंगे, तब तक उसे पाने की चाहत के चलते हम कठिन परिश्रम नहीं करेंगे, मेहनत करने से कतराते रहेंगे। इसलिए मेहनत, परिश्रम, अनुशासन, समय का सदुपयोग, इन सब गुणों को सीखने से पहले जरूरी है कि हम अपनी सोच बदलें। सकारात्मक बनें। अगर किसी काम में बार-बार असफलता मिल रही है तो उसके पीछे के कारण को जानें। स्नातक की उपाधि प्राप्त करने वाली पहली बधिर एवम् दृष्टिहीन अमेरिकी महिला हेलेन एडम्स केलर का कथन था- संघर्ष हमारे जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। यह हमें सहनशील और संवेदनशील बनाता है और साथ ही हमें यही सिखाता है कि भले ही यह संसार दुखों से भरा हुआ है, लेकिन उन दुखों पर काबू पाने के तरीके भी अनेकों हैं। इसी प्रकार जान डी लेते के अनुसार- संघर्ष की चाबी जीवन के सभी बंद दरवाजे खोल देती है और आगे बढ़ने के लिए नए रास्ते भी प्रशस्त करती है। इस तरह संघर्ष की तपन मनुष्य के जीवन को तपा कर कुंदन बना देती है। संघर्षशील व्यक्ति ही जीवन रूपी नैया को पार करने का माद्दा रखता है। सफलता की इमारत संघर्ष की नींव पर ही खड़ी होती है।
श्रेष्ठ होना कोई कार्य नही बल्कि यह हमारी एक आदत है जिसे हम बार बार करते है।
बहुत खूब जिस तरह से आपने चादर वाले वाक्य को नए नज़रिये से बताया है, वेसा बहुत कम लोग सोच पाते है क्युकी हमे बचपन से यही सिखाया जाता है की हमे अपनी चादर के अनुसार ही पैर पसारने चाहिये और हम चादर के अनुसार पसार्ते पसार्ते अपनी ज़रूरतओं और अपने वजूद को भी खो देते है।