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श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः
एकांतवास से अभिप्राय है- निर्जन स्थान में रहना, अकेले में रहना, सबसे अलग रहना। जो मनुष्य अध्यात्म में विश्वास करते हैं, उनके लिए एकांतवास एक महत्वपूर्ण समय होता है। लेकिन मैं आज के समय की बात कर रही हूं ।जब भारत सहित पूरा विश्व एक अदृश्य संकट से गुजर रहा है। आज दुनिया का हर देश, हर धर्म, जाति, गरीब-अमीर कोरोना वायरस के कहर से डरा हुआ है और सहमा हुआ है। जिन सड़कों-गलियों में रात को भी सरपट गाड़ियां दौड़ती रहती थी, उन पर दिन में भी सन्नाटा पसरा हुआ है। इस महामारी के आगे विज्ञान भी बौना नजर आ रहा है। क्योंकि फिलहाल इसका कोई इलाज नहीं है। संकट बहुत ही भयावह है, जो अति सूक्ष्म विषाणु है। जो एक राक्षस की भांति पूरी मानवता को निगल जाने के लिए आतुर है। इसे फिलहाल मारा नहीं जा सकता, तो इसके प्रभाव से कैसे बचा जाए।
यहीं हमारे धर्म ग्रंथ में हमें राह दिखाते हैं- उनमें भी नर और नारायण ने एकांतवास के उदाहरण प्रस्तुत किए हैं। एक उदाहरण श्रीमद्भागवत में आता है, जब भगवान श्री कृष्ण स्वयं युद्ध के क्षेत्र से भाग कर एकांतवास में चले गए थे। क्योंकि उसका जिस दैत्य से सामना होना था, उसका श्री कृष्ण के पास कोई समाधान नहीं था, अर्थात जब आपदा समझ से परे हो जाए, तो एकांतवास में जाना ही उसका समाधान होता है। दरअसल बात उस समय की है, जब मगध नरेश जरासंध मथुरा पर बार-बार आक्रमण कर रहा था, लेकिन वह मथुरा को जीत नहीं पा रहा था। ऐसे में जरासंध का क्रोधित होना स्वाभाविक था। वह मथुरा पर जीत हासिल करने के लिए नए-नए पैंतरे अपनाता था, कभी किसी राक्षस को लेकर आता, तो कभी छद्म-युद्ध करता था। मथुरा पर विजय प्राप्त करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था, क्योंकि यह उसके लिए मान-अपमान का विषय था। लेकिन लगातार 17 बार आक्रमण करने के बावजूद भी वह मथुरा पर विजय प्राप्त नहीं कर पाया था। वह मथुरा पर हर हाल में जीत दर्ज करना चाहता था। इसलिए उसने कालयवन को साथ लेकर युद्ध करने की रणनीति तैयार की, क्योंकि कालयवन एक अजेय योद्धा था। उसको शिव का वरदान प्राप्त था। किसी भी अस्त्र-शस्त्र से उसको मारा नहीं जा सकता था। जब श्रीकृष्ण को यह पता चला कि अबकी बार जरासंध के साथ कालयवन भी है, तो उसने अपनी रणनीति बदल ली। कालयवन श्री कृष्ण के सामने पहुंचकर युद्ध के लिए ललकारने लगा। तब श्री कृष्ण वहां से भाग निकले। जब श्री कृष्ण भाग रहे थे, तब कालयवन भी उनके पीछे-पीछे भागने लगा, भागते-भागते श्री कृष्ण एक कन्दरा में चले गए। जहां पर राजा मुचकुंद निद्रासन में था मुचकुंद को देवराज इंद्र का वरदान था, कि जो भी व्यक्ति उसे निद्रा से जगाएगा तो, उसकी दृष्टि पड़ते ही वह भस्म हो जाएगा। श्री कृष्ण ने कन्दरा में पहुंचकर मुचकुंद पर अपना पितांबर डाल दिया और वहीं छिप गया। पीछा करता हुआ कालयवन जब कंदरा में पहुंचा, तो उसने पितांबर देखकर उसे श्री कृष्ण समझा और उस पर प्रहार कर दिया। जिससे राजा मुचकुंद की निंद्रा टूट गई। जागते ही उसकी दृष्टि कालयवन पर पड़ी और वह क्षण भर में ही भस्म हो गया। ऐसा ही एक उदाहरण महाभारत में मिलता है, जब पांडवों को दुर्योधन के द्वारा लाक्षागृह में जलाने की योजना बनाई गई। जब लाक्षागृह की सुरंग से निकलकर पांडव बाहर आ गए, तो श्री कृष्ण के कहने पर वे एकांतवास में चले गए। तब विदुर, भीष्म पितामह और श्री कृष्ण ही जानते थे, कि पांडव सुरक्षित हैं। इसलिए वह यह जाहिर नहीं होने देना चाहते थे। इसे एक संकट की घड़ी मानकर श्री कृष्ण ने उन्हें एकांतवास में चले जाने की ही सलाह दी, जिससे वे कुछ समय आराम करने के बाद इस संकट से बाहर निकलने के रास्ते ढूंढ सकें, क्योंकि जब संकट के बादल गहरे हों तो एकांतवास ही एक रास्ता बचता है।
उक्त प्रसंगों को यदि हम वर्तमान परिपप्रेक्ष्य के अनुसार चिंतन करें तो पाएंगे कि, कोरोनावायरस भी उस कालयवन की भांति है, जो इस समय बहुत ही तेजी से अपने पांव फैला रहा है, जिसके संक्रमण को काबू करना मुश्किल हो रहा है। किंतु इसे राजा मुचकुंद की तरह एकांतवास द्वारा अथवा कृष्ण की तरह रणनीतिक रूप से छुपकर खत्म किया जा सकता है। अदृश्य रूप में प्रकट हुए इस दुश्मन का सामना हम अस्त्र-शस्त्रों से नहीं कर सकते। हमें भी अपनी-अपनी गुफाओं अर्थात घरों में छुप कर बैठना होगा। हमें धैर्य से काम लेना होगा। भय का वातावरण नहीं बनने देना होगा। “एक छोटी सी चींटी भी विशाल हाथी को मार सकती है” इस कहावत पर बहुत ज्यादा विश्वास नहीं किया जाता रहा है। किंतु मानव-जाति के लिए यह एक दुखद बात जरूर है, पर सत्य तो यही है कि एक छोटा सा वायरस भी इतना खतरनाक है, जिससे पूरी दुनिया हिल गई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि प्रकृति मानव जाति से बेहद नाराज है। शायद समझा रही है कि हे मानव अभी भी मौका है, संभल जा, मेरे खिलाफ जाना छोड़ दे। हमारे बड़े-बूढ़े अक्सर कहते थे कि- जब खतरा अदृश्य हो तो हमें छुप कर बैठ जाना चाहिए और तब तक बाहर नहीं निकलना चाहिए जब तक वह पूरी तरह टल न जाए। इसलिए हमें अपने बड़े-बूढ़ों के गूढ़ रहस्य को समझते हुए एकांतवास में चला जाना चाहिए। स्वयं श्रीकृष्ण से भी हमें यही संदेश मिलता है।