ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः
शब्द व्यक्ति के व्यक्तित्व का आईना होते हैं।शब्दों की शक्ति से ही मनुष्य के व्यक्तित्व में निखार आता है।अगर हम कोई भी संकल्प लेने से पहले शब्दों की ताकत का भी संज्ञान लें, तो हमारा कार्य समय से पहले ही पूरा हो जाता है। बार-बार संकल्पों को लेकर निराशा के भाव से पीड़ित लोग अक्सर कठोर रणनीति अपना लेते हैं। इस कारण वह स्वयं के शत्रु बन जाते हैं। ये स्वजनित शत्रु संकल्पों की सिद्धि में और अवरोध ही उत्पन्न करते हैं। ऐसे में इस प्रकार की परिस्थितियों से बचने के लिए कठोर बनने की बजाय शब्दों का प्रयोग कर लचीला बनना सीखें। यह स्मरण रखें कि सकारात्मक और रचनात्मक नीति हर विपरीत परिस्थिति को सहज बनाकर हमारी राह आसान बना देती है। यह बेहद कारगर नीति है। सकारात्मक शब्दों की ताकत को आज विश्व के कोने-कोने में महसूस किया जा रहा है।
ऊंची आवाज रखने से अच्छा है कि तुम्हारे शब्दों में वजन होना चाहिए।
स्वामी विवेकानंद
अर्थात शब्दों में इतनी शक्ति हो कि दूसरा उसे आराम से सुन और समझ ले। और इसका उदाहरण उन्होंने खुद शिकागो सम्मेलन में अपने प्रथम भाषण में ही दे दिया था। प्रथम दिन स्वामी जी को शून्य में बोलने का अवसर दिया गया था, क्योंकि उनका कोई समर्थक नहीं था, उन्हें कोई जानता नहीं था, किंतु उसके बाद सम्मेलन में, जो उनके दस-बारह भाषण हुए, वे भाषण भी उन्होंने प्रतिदिन सभा के अंत में ही दिए, क्योंकि सारी जनता उन्हीं का भाषण सुनने को अंत तक बैठी रहती थी। यह स्वामी जी के शब्दों की शक्ति ही थी। इसलिए वे हमेशा कहते थे कि- सकारात्मक सोच और ऊंचे विचारों के साथ-साथ शब्दों की शक्ति को भी पहचानों। अक्सर हम देखते हैं कि अनेक विवाद केवल शब्दों के हेर-फेर से पनपते हैं और हैरानी की बात यह है कि तमाम विवादों का अंत भी केवल समझदारी भरे शब्दों का चयन करके ही किया जा सकता है। समझदारी भरे कुछ शब्द अपने सामने रखिए। अपने जीवन में उनका प्रयोग करने की आदत डालिए। धीरे-धीरे ये नये शब्द कुछ ही समय में आपकी किस्मत और व्यक्तित्व को बदल देंगें और आप एक चमत्कारी व्यक्तित्व के स्वामी बनकर उभरेंगे।
जीवन की लंबी यात्रा में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। सफलता-असफलता से भी हमें रूबरू होना पड़ता है। इसमें कुछ भी अस्वाभाविक नहीं है। ऐसे में सकारात्मक सोच की रणनीति में यदि लचीले शब्द डाल दिए जाएं तो फिर भंगुर लोहा भी टूट जाता है। फ्रांस के विचारक ज्यां पाल सार्त्र ने अपनी आत्मकथा का नाम ही शब्द रखा। उनका कहना है कि हम जन्म से लेकर मृत्यु तक शब्दों के संसार में ही जिया करते हैं। विचार, स्मृतियां, कल्पनाएं और स्वपन ये सभी शब्द ही तो हैं। शब्द हमारे संसार में, बाहरी जीवन से जुड़ा है। भले ही शब्दों की यात्रा हमारे जीवन में बाहरी यात्रा है। लेकिन यह भीतर की यात्रा का पहला पड़ाव है। शब्दों से ही तो मानवीय जीवन में विचारों का सृजन होता है। सकारात्मक सोच और शब्दों के तालमेल से ही उसमें इच्छा शक्ति जागृत होती है। कोई भी प्राकृतिक-मानवीय आपदा भी ऐसे व्यक्ति को तोड़ नहीं सकती। इसलिए अपने शब्दों पर गौर करें और उन्हें बदलने का प्रयत्न करें। यदि लोग आपके शब्दों से नाराज हो जाते हैं, आपके काम बिगड़ जाते हैं, तो तुरंत लचीले शब्दों को अपने जीवन में लाने का प्रयत्न करें। सफलता पाने का मूल मंत्र भी शब्दों की गहराई में ही छिपा हुआ है। हर स्थिति में मतभेद से कार्य बिगड़ जाते हैं, इसलिए मतभेद की बजाय सहमति एवं मन मिलाने का प्रयत्न करें। प्रतिरोध की बजाय खुले दिमाग वाला बनने का प्रयास करें। फिर क्यों न आज ही से सकारात्मक और लचीले शब्दों का प्रयोग करना शुरू किया जाए, ताकि जीवन रूपी यात्रा में ये शब्द आपकी जिंदगी को सही राह पर ले जाएं, और आपको प्रारंभ में ही सफलता रूपी फल का स्वाद चखने को मिले।
जय बाबा की
मामी जी बहुत अच्छा है जो इसको अपनाता उसे कोई परेशानी नहीं होगी
Right hai G