श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
जीवन में महानता प्राप्त करने के लिए किसी व्यक्ति के अस्तित्व को खत्म करने की आवश्यकता नहीं होती। न ही उसे अपमानित और नीचा दिखाने की आवश्यकता है, बल्कि व्यक्ति को अपने जीवन में ऐसे आध्यात्मिक, चारित्रिक और नैतिक गुणों का विकास करना चाहिए कि— सामने वाले को खुद का कद बौना प्रतीत होने लगे। इस प्रकार से हासिल महानता, सर्वश्रेष्ठ और ऐसा महान व्यक्ति कालजयी होता है।
इसका एक उदाहरण महात्मा बुद्ध हैं— बात उस समय की है,जब राजकुमार सिद्धार्थ, जंगलों, नदी- झीलों, मैदान-पहाड़ आदि की यात्रा कर रहे थे, तो मार्ग में आ रही प्राकृतिक कठिनाइयों व मानसिक अवरोधों से एकबारगी वे भी विचलित हो गए। यहां तक कि वे घर वापिस लौट जाने के बारे में भी विचार करने लगे। इसी उधेड़बुन में जब उन्होंने अपनी अब तक की यात्रा पर विचारपूर्ण दृष्टि डाली, तो उन्हें ये अहसास हुआ कि— रास्ते में आई हर शारीरिक या मानसिक कठिनाई ने उन्हें कुछ न कुछ सीख दी है। उन अनुभवों ने मानव के तौर पर उन्हें और अधिक परिपक्व बनाया है और फिर वे बुद्धत्व पाने की यात्रा के लिए अग्रसर हो गए।
तभी तो राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने भी कहा— “गंगा में धार तभी आती है, जब वह उबड़- खाबड़ रास्तों की यात्रा करती है।”
जीवन के कई पहलू और अवस्थाएं हैं और जीवन को पूर्ण रूप से ज्योतिर्मय करने के लिए आवश्यक है कि— आप जीवन के प्रत्येक पहलू और अवस्था पर प्रकाश डालें। दीपों की पंक्तियां आपको याद दिलाती हैं कि— जीवन के प्रत्येक पक्ष पर आपको ध्यान देने की आवश्यकता है। प्रत्येक व्यक्ति के अच्छे गुणों पर ध्यान केंद्रित करें।
प्रत्येक व्यक्ति में अच्छे गुण होते हैं। कुछ लोगों में सहनशीलता होती है, कुछ में प्रेम, शक्ति और उदारता होती है, जबकि कुछ लोगों में दूसरों को एक साथ लाने की योग्यता होती है। आप में अव्यक्त मूल्य एक दिये की भांति होते हैं। केवल एक दिया जलाकर ही संतुष्ट न हो जाएं, बल्कि हजारों दिये जलाएं। अज्ञान के अंधकार को मिटाने के लिए आपको बहुत सारे दिये जलाने की आवश्यकता है। स्वयं में ज्ञान का दिया जला कर आप अपने अस्तित्व के सभी पहलुओं को जागृत कर सकते हैं।
एक दिये को जलाने के लिए बाती को तेल में आंशिक रूप से डूबा रहना आवश्यक है। यदि बाती तेल में पूर्ण रुप से डूबी रहेगी, तो दिया नहीं जलेगा। जीवन दीये की बाती की तरह है। आपको संसार में रहते हुए भी, इसमें होने वाली घटनाओं से प्रभावित नहीं होना चाहिए। यदि आप संसार के भौतिकवाद में डूब जाते हैं, तो आपके जीवन में आनंद और ज्ञान का उद्भव नहीं होगा। संसार में रहते हुए भी यदि आप भौतिकवाद में नहीं डूबते हैं, तब आप आनंद और ज्ञान का प्रकाश बन जाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश हम व्यवहारिक जीवन में ऐसा नहीं कर पाते हैं और जीवन की अंतिम सांस तक दूसरों के मुकाबले आगे बढ़ने की कोशिश में मन को दुखी करते रह जाते हैं। दूसरों के प्रति छल- प्रपंच, ईर्ष्या और द्वेष के जहर से खुद के जीवन की शांति का गला घोट देते हैं। इतना ही नहीं गला- काट प्रतियोगिता के वर्तमान परिवेश में खुद को सफलता के शीर्ष पर देखने की अंधी चाह में हम पता नहीं कितनी भयानक योजनाएं बना बैठते हैं।
गहराई से आत्मावलोकन करने पर सच्चाई मुखर होकर सामने आ जाती है कि— इसकी मुख्य वजह एक व्यक्ति का खुद को पहचान नहीं पाने की असफलता और शीघ्र सफल होने की लालसा होती है। मानवता के प्रति सद्भाव, प्रेम, दया, करुणा, सहानुभूति और अन्य मानवीय गुणों के अभाव में ही हम मर्यादित आचरण की सीमा लांघ जाते हैं। खुद को निरंतर परिमार्जित करते रहनें, मानव मात्र के कल्याण के भाव के साथ धैर्य पूर्वक सात्विक और संयमित जीवन के जीने में ही सच्ची महानता का रहस्य छिपा होता है। हम अपने मन में मानवता की सेवा करने की भावना रखें। अपने हृदय में प्रेम और करुणा का दीप जलाएं और दूसरों की सेवा करें। अज्ञान को दूर करने के लिए ज्ञान का और ईश्वर ने जो हमें दिया है, उस समृद्धि के प्रति कृतज्ञता का दिया जलाएं।
जब आप अभाव महसूस करते हैं तो अभाव बढने लगता है। लेकिन जब आप अपना ध्यान समृद्धि पर केंद्रित करते हैं, तो समृद्धि आने लगती है। एक बुद्धिमान व्यक्ति के लिए प्रत्येक क्षण और प्रत्येक दिन समृद्धि लिए हुए होता है। ज्ञान की आवश्यकता हर जगह है। यदि परिवार का एक व्यक्ति अंधकार में डूबा हुआ है, तो हम खुश नहीं रह सकते। हमें परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के भीतर ज्ञान का प्रकाश जगाने की आवश्यकता है।
शंकराचार्य के अद्वैतवाद दर्शन के विद्वान स्वामी रामतीर्थ के जीवन से जुड़ा एक प्रसंग काफी प्रेरणादायी है। कहते हैं कि— एक बार स्वामी रामतीर्थ छोटे बच्चों को पढ़ा रहे थे। पढ़ाने के क्रम में उन्होंने ब्लैकबोर्ड पर एक लाइन खींची और अपने शिष्यों से पूछा— इस रेखा को बिना स्पर्श किए हुए कौन छात्र इसे छोटा कर सकता है। थोड़ी देर के लिए पूरी कक्षा शांत रही। प्रश्न गूढ था। इस कारण छात्र विस्मित थे। कुछ देर बाद एक छात्र आगे बढ़ा और ब्लैक बोर्ड पर खींची गई रेखा के समानांतर एक बड़ी-सी लाइन खींच दी। परिणाम स्वरूप पहले वाली रेखा छोटी हो गई। इस प्रकार के विचार रखने वाले व्यक्ति ही महानता की श्रेणी में आते हैं।