श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
संगति का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। हम अपने जीवन में कैसे लोगों के नक्शे कदम पर चलते हैं, यह हमारे ऊपर निर्भर करता है। अगर हम साधु संतों की संगति करते हैं तो हमारा जीवन सुधर जाता है और जीवन के झंझावतों से पार पाने में कामयाब होते हैं।
दूसरी तरफ यदि हम गलत आचरण वाले लोगों से संगति करते हैं तो हमारा जीवन बर्बाद हो जाता है और हम बुरे कार्यों में लिप्त हो जाते हैं।
हमें अपने जीवन में साधु संतों की संगति करनी चाहिए क्योंकि संत और महात्मा परमात्मा स्वरुप होते हैं। उनके आभामंडल में दिव्य शक्ति होती है, जिसके द्वारा वे अपनी उपस्थिति से मानव में ही नहीं बल्कि हिंसक पशुओं में भी मानसिक परिवर्तन कर देते हैं। इसमें रंच मात्र भी संदेह नहीं है।
महात्मा बुद्ध एक ऐसा ही संत हैं, जिनके दर्शन मात्र से ही अंगुलिमाल उनके शिष्य बन गए।
कहा जाता है कि— संत के रोम- रोम में तीर्थों का वास होता है। उनकी दृष्टि और वाणी का अभिषेक करोड़ों पापों को नष्ट कर देता है। संत समागम जैसा कोई पुण्य नहीं है। संत सच्चे अर्थों में समाज के पथ प्रदर्शक होते हैं। उनका जीवन सदैव कल्याण करने के लिए होता है।
तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में कहा है कि— मित्र और शत्रु में समभाव रखने वाले संतों का चित्त अंजलि में स्थित पुष्पों के समान होता है जो दोनों हथेलियों को समान रूप से सुगन्धित करते हैं, भले ही एक ने उन्हें तोड़ा है और दूसरे ने सहारा दिया है।
संत भोजपत्र के समान दूसरों के लिए सदा कष्ट सहन करते हैं। इस दृष्टि से पक्षी होने पर भी जटायु सबसे बड़े संत हैं जिन्होंने नारी मर्यादा की रक्षा के लिए अपने प्राण भी अर्पित कर दिए।
वृक्ष सबसे बड़े संत है जो पत्थर मारने पर भी फल और छाया दोनों देते हैं। सच्चा संत देश, काल, जाति और वेशभूषा से परे होता है। हां यह सच है कि— उसके व्यक्तित्व में सहजताऔर सरलता, हृदय में दया, करुणा और कोमलता, वाणी में माधुर्य और सरसता,आचरण में त्याग, परोपकार और सहृदयता अवश्य होनी चाहिए।
महान वैज्ञानिक अब्दुल कलाम भी किसी संत से कम नहीं थे जो अपने उपदेशों से देश के नौनिहालों के ब्रह्मचर्य को तेजस्वी बनाते हुए भारत मां को अलविदा कह गए।
हकीम लुकमान ने एक दिन अपने बेटे को अपने पास बुलाया और धूपदान की तरफ इशारा किया। इशारे को समझ कर बेटा धूपदान में से एक मुट्ठी चंदन का चूरा ले आया। तत्पश्चात् लुकमान ने दूसरा इशारा किया। इशारा समझ कर बेटा दूसरे हाथ में कोयला ले आया। लुकमान ने फिर दोनों को फेंक देने का इसारा किया।
बेटे ने दोनों को फेंक दिया।
लुकमान में अपने बेटे से पूछा कि— उसके हाथों में क्या है?
बेटे ने बताया कि— दोनों हाथ खाली हैं।
लुकमान ने कहा— ऐसा नहीं है, अपने हाथों को गौर से देखो।
बेटे ने अपने दोनों हाथ ध्यान से देखे। उसने अनुभव किया कि— जिस हाथ में चंदन का चूरा था, वह अब भी खुशबू बिखेर रहा है और जिस हाथ में कोयला रखा था उसमें अब भी कालिख नजर आ रही थी।
लुकमान ने कहा— बेटा चंदन का चूरा अब भी तुम्हारे हाथ में खुशबू दे रहा है, जबकि तुम्हारे हाथ में चंदन नहीं है। दूसरी तरफ कोयले का टुकड़ा तुमने हाथ में लिया तो तुम्हारा हाथ काला हो गया और उसे फेंक देने के बाद भी हाथ काला है। इसी प्रकार दुनिया में कुछ लोग चंदन की तरह होते हैं, जिनका साथ जब तक रहे तब तक हमारा जीवन महकता रहता है और उनका साथ छूट जाने पर भी वह महक हमारे जीवन से जुड़ी रहती है।
कुछ ऐसे होते हैं जिनके साथ रहने से भी और छूटने से भी जीवन कोयले की तरह कलुषित होता है।
यदि आप नेक और प्रतिष्ठित लोगों से जुड़े हैं तो आपको यह बताने में गर्व होगा कि मैं अमुक व्यक्ति के साथ काम कर रहा हूं। सामने वाले पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
दूसरी तरफ यदि आप खराब आचरण वाले लोगों के साथ संबंध रखते हैं या उनके साथ कार्य करते हैं तो आप की छवि भी वैसी ही बन जाती है। भले ही आप बहुत प्रतिभाशाली ही क्यों ना हो?
Jai shree shyam meri jaan meri gindagi mera shree shyam