श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
हमारे यहां चातुर्मास में हिंदू स्त्रियां स्वास्तिक का व्रत करती हैं। पदम पुराण में इस व्रत का विधान है। इसमें सुहागिनें मंदिर में स्वास्तिक बनाकर, अष्टदल से उसका पूजन करती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस पूजन से स्त्रियों को वैधव्य का भय नहीं रहता।
*हिंदू घरों में विवाह के बाद वर-वधू को स्वास्तिक के दर्शन कराए जाते हैं ताकि उनका दांपत्य जीवन सफलतापूर्वक और सुख पूर्वक चल सके।
*नवजात शिशु को छठी यानी जन्म के छठे दिन स्वास्तिक अंकित वस्त्र पहनाया जाता है या उसके ऊपर सुलाया जाता है। कई जगह स्वास्तिक का चिन्ह दीवार पर अंकित कर उसके जीवन की मंगल कामना करते हुए मंगलाचार किया जाता है।
*राजस्थान में नवविवाहिता की ओढ़नी पर स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाता है, ताकि उसके सौभाग्य सुख में वृद्धि का संचार हो।
*गुजरात में लगभग हर घर के दरवाजे पर सुंदर रंगों से स्वास्तिक बनाए जाने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इससे घर में अन्न, वस्त्र, वैभव की कमी नहीं होती और आगंतुक /अतिथि हमेशा शुभ समाचार लेकर आता है।
*विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ-लाभ और स्वास्तिक तथा बही- खाते की पूजा करने की परंपरा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है।
*कुंडली बनाते समय या कोई मंगल या शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है।
*हिंदू पौराणिक मान्यता के अनुसार—अभिमंत्रित स्वास्तिक रूप गणपति पूजन से घर में लक्ष्मी की कमी नहीं होती।
प्रकार –स्वास्तिक दो प्रकार का होता है।
1 स्वस्तिक स्वास्तिक
2 वामावर्त स्वास्तिक
1 स्वस्तिक –इसमें रेखाएं आगे की ओर इंगित करती हुई हमारी दाएं और मुड़ती हैं। इसे स्वस्तिक स्वास्तिक कहते हैं। यही शुभ चिन्ह है जो हमारी प्रगति की ओर संकेत करता है।
2वामावर्त –इसमें रेखाएं पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारी बाई और मुड़ती हैं। इसे वामावर्त स्वास्तिक कहते हैं। भारतीय संस्कृति में इसे अशुभ माना जाता है।
Jai shree shyam meri jaan meri gindagi mera shree shyam