श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
आत्मनियंत्रण से अभिप्राय है— स्वयं पर नियंत्रण यानी अपने मन पर नियंत्रण। क्योंकि आत्मनियंत्रण का मार्ग हमारे मन से होकर गुजरता है। यदि हमारे अंदर मन को नियंत्रित करने की सामर्थ्य है तो हम निश्चित रूप से स्वयं पर नियंत्रण कर लेंगे। हम जब भी कोई कार्य आरंभ करते हैं तो उस समय आत्म नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है क्योंकि नए कार्य को आरंभ करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। उस समय यदि हमारा मन शांत होगा तो हमारे संकल्प भी मजबूत होंगे और हम कार्य को उसके अंजाम तक पहुंचा सकते हैं यानि अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
यह तो बिल्कुल सत्य है कि मनुष्य अपनी उन्नति का निर्धारक स्वयं है। उसके कर्म ही उसे महान बनाते हैं क्योंकि कर्म के आधार पर ही ईश्वर उसके भाग्य का निर्माण करता है। जिस व्यक्ति के भीतर आत्म नियंत्रण होता है वह आत्मशक्ति को उत्पन्न करने की सामर्थ्य रखता है और वही आत्म शक्ति हमें हमारे लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक बनती है। जब हम स्वयं के नियंत्रण में होते हैं तो वही करते हैं जो श्रेष्ठ होता है।
नियंत्रण सर्जन का कारक है। नियंत्रणहीन वस्तु या मनुष्य हमेशा विपदा को आमंत्रित करते हैं। आपने पतंग को उड़ते हुए देखा होगा। जब तक वह नियंत्रण में होती है, तब तक वह आकाश में नई ऊंचाइयों को छूती है। लेकिन जैसे ही पतंग उड़ाने वाले का उस से नियंत्रण हट जाता है या पतंग की डोर टूट जाती है तो पतंग गिरने लगती है। ठीक इसी तरह यदि हम स्वयं पर से नियंत्रण खो देते हैं तो हमारी अवनति निश्चित है। अगर हमारा खुद पर नियंत्रण है तो हम किसी भी कार्य को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं।
jai shyam j meri gindagi mera shyam ji jai jai shree shyam ji