श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
ऐसा कहा जाता है कि मनुष्य सुख में खुश होता है जबकि दुख में वह रोता है। यह बिल्कुल सच है लेकिन ऐसी स्थिति में जन्म के समय बच्चे के रोने को आप क्या कहेंगे? निश्चित रूप में उसे सुख नहीं कहा जाएगा क्योंकि सुख या प्रसन्नता में आंखों का नम होना तो स्वाभाविक है, मगर इस प्रकार का रुदन करना नहीं। जन्म के समय बच्चे के रोने का क्या कारण हो सकता है? विज्ञान के अनुसार जन्म के समय बच्चे का रोना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
बच्चे के रोने का दूसरा कारण यह भी माना जाता है कि माता के गर्भ से बाहर आने के बाद उसे लगता है, वह एक अनजानी दूनिया में आ गया है और उसे यह संसार सुरक्षित नहीं लगता। इसलिए वह रोता है और जब माता उसे सीने से लगा लेती है तो उसे विश्वास हो जाता है कि वह सुरक्षित है।
ऐसा नहीं है कि जीवन में केवल सुख ही सुख है, सुख के साथ दुख का भी अस्तित्व है। सुख और दुख जीवन के दो पहलू हैं। शायद ही कोई मनुष्य ऐसा हो जिसने जीवन में कभी दुख का अनुभव न किया हो। दूसरी तरफ कोई व्यक्ति ऐसा भी नहीं होगा, जिसे जीवन में एक बार भी सुख का भोग न किया हो। सुख- दुख जीवन की पूर्णता के लिए आवश्यक है।
यदि हम सनातन संस्कृति को देखें, परखें और शास्त्रों का आश्रय लेकर अथवा विद्वानों के भिन्न-भिन्न मत परखें तो यही पाते हैं कि— सुख के तीन स्तर हैं।
- देह का सुख।
- अंत:करण में मन- बुद्धि का सुख।
- आत्मा का सुख।
देह और मन- बुद्धि का सुख तो सभी को आकर्षित करता है लेकिन आत्म सुख के मार्ग पर तो कोई कोई ही चल पाता है।
आत्म अनुभव के बाद कुछ और नहीं करना पड़ता। अपने आप सुख का प्रकाश फैलता है और सारा भ्रम मिट जाता है लेकिन जब तक आत्म अनुभव न हो, तब तक आत्मा का सुख तो ज्ञानियों के लिए भी दुर्लभ है। देह का सुख और मन बुद्धि का सुख तो साधारण आदमी को भी प्रभावित करता है।
आत्मा का सुख अध्यात्म से जोड़ता है। भारतीय मनीषियों ने सदैव स्थूल और सुक्ष्म के महत्व को स्वीकार किया है तथा आत्मसुख को परम सुख मानते हुए देह और मन के सुख को भी सर्वोपरि माना है।
स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था कि— आत्मा के सुख को प्राप्त करने से पूर्व देह और मन बुद्धि का सुख भी आवश्यक है क्योंकि आत्मा के सुख को प्राप्त करने से पहले जमीन तैयार करनी होती है। भोग की इच्छा कुछ तृप्त हो जाने पर ही मनुष्य योग की बात सुनते हैं या समझते हैं। अन्न के अभाव में भूख और प्यास से पीड़ित मनुष्यों को भाषण देने से क्या लाभ। उन्होंने अरुंधति तारे के बारे में एक बहुत ही सुंदर बात कही कि— यह बहुत ही छोटा तारा होता है। उसे देखना हो तो दिखाने वाला, पहले उसके पास के किसी बड़े तारे को दिखाता है फिर उससे छोटे तारे को और अंत में दृष्टि अरुंधती तारे तक पहुंच पाती है। आत्मा का सुख विराट है लेकिन आत्मदर्शन तो सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म है। इसलिए दृष्टि को स्थूल और सूक्ष्म से होते हुए, अति सूक्ष्म तक जाना पड़ता है। आत्म सुख से पूर्व देह का सुख और मन का सुख पा लेने के पश्चात ही प्रत्येक मनुष्य उस परम सुख की और आकर्षित होगा जो जीवन का परम सुख है।
Jai radhe radhe shyam meri gindagi mera shyam