279. क्रोध के दुष्परिणाम

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

गीता में भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि — क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव पैदा होता है क्योंकि इससे स्मृति भ्रमित हो जाती हैं और ज्ञान का नाश हो जाता है। ज्ञान का नाश होने से मनुष्य, मनुष्य नहीं रहता। वे काम, क्रोध और लोभ को नरक का द्वार कहते हैं।

शास्त्रों में कहां गया है कि—क्रोध मानव की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा है।

ऋग्वेद में कहा गया है कि— यदि जीवन में धन-संपत्ति अर्जित करना चाहते हो तो क्रोध का त्याग करके नम्रता का व्यवहार सीखना होगा। जिससे अपना और समाज का हित कर सकते हो।

क्रोध मनुष्य का एक ऐसा अवगुण है जो हृदय की गति को बढ़ाने के साथ-साथ तनाव के स्तर में भी वृद्धि कर देता है। मनुष्य के क्रोधित होने के अनेक कारण हो सकते हैं। लेकिन कारण चाहे कोई भी हो क्रोध एक भयावह स्थिति ही उत्पन्न करता है। उसके हमेशा दुष्परिणाम ही होते हैं। अक्सर देखा जाता है कि क्रोध का प्रमुख कारण व्यक्तिगत या सामाजिक अवमानना है। आमतौर पर ऐसे लोग क्रोध करते हैं जो समाज द्वारा उपेक्षित या तिरस्कृत कर दिए जाते हैं और उनको समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है।

ऐसे और भी बहुत से कारण हो सकते हैं, जिसके कारण मनुष्य क्रोधित हो जाता है। कई बार अपमानित होने के कारण भी क्रोध आना स्वाभाविक है। इसके अलावा भी कोई ऐसी घटना जिसे हम स्वीकार नहीं कर पाते तो क्रोधित हो जाते हैं। लेकिन कारण चाहे कोई भी हो हम केवल यह कह सकते हैं कि जब कोई कार्य हमारे मन के अनुकूल नहीं होता है तो क्रोध आना एक स्वभाविक प्रक्रिया है। वैसे देखा जाए तो क्रोध मनुष्य के पतन का कारण बनता है।

क्रोध उस जहर के समान है, जिससे सदैव हानि ही होती है। जिस प्रकार स्वयं विष पीने वाला मनुष्य अपने अनिष्ट को आमंत्रित करता है वैसे ही क्रोध करने वाले मनुष्य सदैव अपना ही अहित करता है। यह हमारी निर्णय लेने की शक्ति को प्रभावित करता है। हमारे विवेक को क्षीण कर देता है। यह हमारी बुद्धि के प्रभाव को नष्ट कर देता है। ऐसे व्यक्ति को कोई भी अपना दोस्त नहीं बनाना चाहता। क्रोध करने वाला व्यक्ति सामने वाले से ज्यादा स्वयं का अहित करता है। यह अनेक मानसिक विकारों को जन्म देता है, जिससे व्यक्ति शारीरिक तौर पर भी दुर्बल हो जाता है। उसे अपने पारिवारिक जीवन में भी कष्टों का सामना करना पड़ता है। इसे संबंधों में दूरियां बढ़ जाती हैं।

क्रोध हमारे जीवन के प्रेम को खत्म कर देता है। पारिवारिक स्नेह एवं मर्म रसातल में पहुंच जाता है। हमारे स्वभाव में माधुर्य का अभाव हो जाता है। ऐसे मनुष्य अलोकप्रिय हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को देखकर लोगों में भय उत्पन्न होने लगता है। संयुक्त परिवारों का विघटन व्यक्ति के क्रोध का ही परिणाम है। हम विनम्रता छोड़कर चले आ रहे हैं। सामंजस्य का भाव मन से तिरोहित कर रहे हैं। इस भाव के न्यून होने से पारिवारिक एवं सामाजिक कलह उत्पन्न होते हैं।

क्रोध के हमेशा दुष्परिणाम ही होते हैं। क्रोध मनुष्य के पतन का कारण है। इसलिए क्रोधी स्वभाव वाले मनुष्य को चाहिए कि वह क्रोध को त्याग कर नम्रता का व्यवहार करे। उसे काम, क्रोध और लोभ को छोड़कर सात्विक रहने का संकल्प लेना चाहिए। तभी वह अपने व्यक्तित्व को नए आयाम प्रदान कर सकता है। अन्यथा क्रोध की अग्नि उसे सदैव झुलसाती रहेगी।

2 thoughts on “279. क्रोध के दुष्परिणाम”

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