ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः
कुछ लोग बहुत ज्यादा बातें करते हैं, वे दूसरों को बोलने का अवसर ही नहीं देते। उनको लगता है कि वो सर्वश्रेष्ठ हैं। वे जो कुछ भी कहते हैं वो ही सर्वोपरि होता है। ऐसे मनुष्य अपनी मर्यादा भूल जाते हैं। उन्हे इस बात से बिल्कुल भी फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला उनके बारे में क्या सोच रहा है। वे सिर्फ अपनी बात कह कर खत्म कर देते हैं, बगैर यह जाने कि सामने वाला उनकी बातों में दिलचस्पी ले भी रहा है या सिर्फ इग्नोर कर रहा है। जब हम एक-दूसरे से संवाद करते हैं, तो उसमें दोनों का योगदान होना भी आवश्यक है। संवाद सिर्फ बातचीत नहीं बल्कि दो लोगों के बीच का संतुलन है। उनमें से एक वक्ता तथा दूसरा श्रोता होता है। अगर एक ही बोलता रहेगा तो संवाद अधूरा रहता है। यदि आप सिर्फ बात करने के आदी हैं, तो सुनने की कला भी सीखनी होगी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि- ज्यादा बोलने की बजाय, ज्यादा सुनना फायदेमंद होता है।
कई बार हम बिना सोचे-समझे और बिना सुने किसी नतीजे पर पहुंच जाते हैं। हम बिना सच्चाई जाने अपनी बात पर अड़ जाते हैं कि हम ही सही हैं। जबकि हम सिक्के का एक ही पहलू देख रहे होते हैं। इसलिए हमें अपने अंदर सुनने की कला पैदा करनी चाहिए। जिससे हम अपनी बात को तो रखें ही, लेकिन दूसरों की बातों को ध्यान से सुनकर, समझ कर, हम किसी नतीजे पर पहुंच कर अपना नजरिया पेश करें, न की बगैर सच्चाई जाने आनन-फानन में अपना पक्ष रखें, जिससे बाद में हमें पछताना पड़े। मैं एक कहानी के माध्यम से समझाना चाहती हूं।
एक गांव में 6 दृष्टिहीन व्यक्ति रहते थे। एक बार उनके गांव में हाथी आया। सभी लोग उसे देखने जा रहे थे। उन्होंने भी सोचा कि काश वे दृष्टिहीन न होते तो वे भी हाथी देख सकते थे। इस पर गांव वालों में से एक ने कहा कि – तुम हाथी को भले ही देख न सकते हो, लेकिन छू-कर महसूस तो कर ही सकते हो, कि हाथी कैसा होता है। सभी उसकी बात से सहमत हो गए और हाथी को छूने के लिए तैयार हो गए। हाथी वाली जगह पर पहुंच कर सभी ने हाथी को छूना शुरु कर दिया। उन सब ने हाथी के शरीर के अलग-अलग हिस्सों को स्पर्श किया था। इसलिए हाथी के बारे में सबकी अपनी-अपनी राय थी। जब उन्होंने आपस में चर्चा करते हुए हाथी का वर्णन शुरू किया तो, जिसने हाथी के अगले पांव को छुआ था, उसने कहा कि हाथी किसी खंभे की तरह होता है। जिसने हाथी की पूंछ को छुआ था ,उसने कहा कि वह रस्सी की तरह होता है। पिछले पैरों को छूने वाला बोला, वह पेड़ के तने की तरह होता है। जिसने कान का स्पर्श किया था, उसने कहा कि, वह तो बहुत बड़े सूप (छाज) की तरह होता है। हाथी के पेट को छूने वाले ने कहा कि वह तो एक दीवार की तरह विशाल होता है। सूंड को छूने वाले ने कहा कि वह मोटी नली की तरह होता है। सभी के अलग अलग मत होने के कारण उनमें बहस होने लगी। और प्रत्येक अपने आप को सही साबित करने में लग गया। क्योंकि सभी अपनी बात पर अडिग थे और कोई भी एक-दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं था। तभी वहां पर वही व्यक्ति आ गया जो उनको हाथी के स्थान पर ले गया था और हाथी को छूकर देखने के लिए कहा था। उसने उनसे पूछा कि वे बहस क्यों कर रहे हैं? उन्होंने कहा हम यह तय नहीं कर पा रहे कि हाथी दिखता कैसा है। फिर एक-एक करके उन्होंने अपनी बात उस व्यक्ति को समझाई। उस व्यक्ति ने सबकी बात ध्यान से सुनी और बोला कि, तुम सब सही हो तुम्हारे वर्णन में अंतर इसलिए है क्योंकि तुम सब ने हाथी के शरीर के अलग-अलग भागों को छुआ एवं महसूस किया है। अब सबको बात पूरी समझ आ गई। उस व्यक्ति ने कहा कि यदि आप सब ने जो महसूस किया इसके अलावा भी आगे कुछ महसूस करते तो आपको हाथी असल में कैसा होता है, समझ आ जाता।
वेद-पुराणों में भी कहा गया है कि – एक सत्य को कई तरीकों से बताया जा सकता है। इसलिए यदि जब अगली बार आप ऐसी किसी बहस में पड़े तो याद कर लीजिएगा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके हाथ में सिर्फ कान हों और बाकी हिस्से किसी और के पास हों। इसलिए कम बोलने और अधिक सुनने की कला को अपने अंदर विकसित करें। भले ही आप दूसरों के विचारों को सुनते हुए उनसे सहमत न हों, आपको दूसरों के विचार या बातें सही न लगें, फिर भी आपको अपनी सोच और विचारों को किनारे रखकर सामने वाले की बात को पूरी तन्मयता और गंभीरता से सुनना चाहिए। जब आप सुनने की कला उत्पन्न करने के बाद किसी की बात सुनते हैं तो आप उस पर अधिक ध्यान देते हुए उनकी बातों के दूसरे पहलुओं को अच्छी तरह समझ और देख पाते हैं। ऐसे में आप दूसरे की भावनाओं को समझने में देर नहीं लगाते। यदि आप इस आदत को अपनाना चाहते हैं, तो पहले आप को कम बोलना सीखना होगा और दूसरों को भी अहमियत देनी होगी। सुनने वाले को यहां दो बातों का फायदा होता है। पहला- इससे नई जानकारी मिलती है- क्योंकि ज्यादा बोलने वाले अपनी जानकारी से अधिक कह जाते हैऔर दूसरा- वह उस जानकारी का अच्छी तरह उपयोग कर सकता है। क्योंकि जो लोग सुनने में दिलचस्पी लेते हैं वे सभी की बातों को ध्यान से सुनते हैं। जब आप किसी की बात को ध्यान से सुनते हैं, तो बात करने वाले व्यक्ति को अच्छा महसूस होता है। इससे उसमें आत्मीयता का भाव उत्पन्न होता है और वह आपकी बात पर अधिक विश्वास और आप पर ज्यादा भरोसा करने लगता है। जब आप सुनने की आदत डाल लेते हैं तो दूसरों की बातों को अच्छी तरह समझ कर और उनकी भावनाओं को अच्छी तरह महसूस करके आप एक उचित प्रतिक्रिया देने योग्य बनते हैं। यदि आप सोच विचार कर बात करते हैं तो लोग आपकी बातों को दिलचस्पी से सुनते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि- उनके बीच में आपने अपना एक मुकाम बना रखा है। कि आप जो भी बोलेंगे वो सही होगा। वे जानते हैं कि आप जरूरत पड़ने पर ही बात करते हैं। इसलिए आप कुछ कह रहे हैं तो अवश्य ही जरूरी होगा। इससे आपके, उनके साथ रिश्ते मजबूत होते हैं और साथ ही समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है। जिससे आप जरूरत पड़ने पर अपनी राय रख सकते हैं और वह उन लोगों की भलाई के काम आएगी।
इसलिए जो लोग जरूरत के समय बोलते हैं, वह हर बात को गंभीरता से समझते हैं। इसलिए हमें बेवजह अपनी एनर्जी को खर्च नहीं करना चाहिए। हमें तभी बोलना चाहिए जब हमें किसी चीज की ठोस जानकारी हो। कम बोलने से आपकी बात में गंभीरता आती है। जिससे प्रत्येक आपकी बात को सुनने में दिलचस्पी लेता है। जो लोग ज्यादा बात करते हैं, उनकी बातों की कोई अहमियत नहीं होती। ऐसे लोग अक्सर अपने जीवन के सीक्रेट सभी के सामने खोल देते हैं क्योंकि वह उनकी निजी जिंदगी के अहम पहलू होते हैं। जिससे बाद में उन्हें पछताना पड़ता है। इसलिए अक्सर कहा जाता है कि- कम बोलें लेकिन सोच विचार कर बोलें। अक्सर आपने यह नोटिस किया होगा कि कम बोलने वालों की यह खासियत होती है कि वह कम शब्दों में बहुत कुछ कह जाते हैं। जिसके कारण उनकी बात हर किसी को याद रह जाती है। और किसी को भी उनकी बात सुनने में झिझक नहीं होती। इसलिए बातों को घुमा-फिरा कर करने की बजाय कम शब्दों में अपनी बात स्पष्ट करें और अपने अंदर सुनने की कला पैदा करें।