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श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः
अमंगल अर्थात मनुष्य के जीवन की वह स्थिति जिसमें मनुष्य अपने जीवन के किसी विशेष समय में, किसी विशेष संकट में पड़ कर, अपने दुर्भाग्य को देख रहा होता है। जैसे कि वह किसी दुर्घटना का शिकार हो अथवा किसी अनचाही स्थिति में फंसकर अपयश का भागी बनना पड़ा हो। इसके विपरीत मनुष्य जीवन की मांगलिक स्थिति वह होती है, जब वह स्वस्थ, संपन्न और यशस्वी होकर जीवन को आनंद से जीता है, तथा उसके जीवन में ऐसी कोई भी घटना न घटी हो, जिससे उसे अपयश का भागी बनना पड़ा हो। इस तरह मनुष्य के जीवन की यह दोनों घटनाएं विपरीत ध्रुवों पर खड़ी होती हैं और प्राय: कभी भी एक दूसरे को उत्पन्न करने का कारण नहीं बनती।
परंतु विधि का विधान विचित्र और सामान्य बुद्धि से परे है। इसलिए हमारी सृष्टि में अनेक ऐसे उदाहरण हैं, जिनमें यह देखने को मिल जाता है की यद्यपि व्यक्ति के जीवन में घटित तो हुआ था अमंगल किंतु उसका जो परिणाम निकला वह मंगलदायक हुआ।
मैं महाभारत की एक घटना की ओर ध्यान दिलवाना चाहती हूं। जब पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास की सजा मिली, तब अर्जुन अपने अस्त्र-शस्त्रों को बढ़ाने के लिए तप कर रहा था। उसी दौरान उसे देवलोक में जाने का रास्ता मिला। वहां पर अप्सरा उस पर मोहित हो गई और उसे प्रेम निवेदन करने लगी। लेकिन अर्जुन ने मना कर दिया, जिससे क्रोधित होकर उसने अर्जुन को किन्नर होने का श्राप दे दिया। जब अर्जुन ने उसे अनुनय-विनय किया तो, उसने श्राप की अवधि 1 वर्ष कर दी। यह स्थिति अर्जुन के लिए बहुत ही कष्टकारी ओर अमंगलकारी थी। लेकिन जब अर्जुन को देवराज इंद्र ने समझाया कि तुम्हारा यह श्राप मंगलदायी होकर फलीभूत होगा, तब उसको इस कष्टकारी स्थिति से राहत मिली। जब उनका अज्ञातवास शुरू हुआ तो हर किसी को पहचान छुपाने की चिंता थी। ऐसे में अर्जुन को अपनी पहचान छुपाने के लिए उसका वह श्राप मंगलकारी सिद्ध हुआ था।
ऐसा ही एक वाक्या चक्रवर्ती सम्राट दशरथ के साथ भी हुआ। एक बार जब वे शिकार करने वन में गए थे तो उन्हें घडे़ में पानी भरने की आवाज को जानवर की आवाज समझ कर शब्दभेदी बाण चला दिया। जिससे शांतनु और ज्ञानवती के पुत्र श्रवण कुमार ने दम तोड़ दिया। श्रवर्ण के माता-पिता अंधे थे। उन्होंने जब अपने पुत्र की मृत्यु का समाचार सुना तो व्यथित होकर राजा दशरथ को श्राप दे दिया कि- राजन जिस प्रकार हम अपने पुत्र के वियोग में अपने प्राण त्याग रहे हैं, उसी तरह से तुम्हें भी अपने पुत्र के वियोग में प्राण त्यागने पड़ेंगे। उस समय तक राजा को कोई संतान नहीं थी। किंतु बाद में श्री राम उनको पुत्र रत्न के रूप में प्राप्त हुए और उनका श्रापमंगलकारी साबित हुआ।
जिसके पास उम्मीद है, वह हार कर भी नहीं हारता