श्री गणेशाय नमः
प्रेम एक ऐसी अनुभूति है, जो इस नश्वर संसार में रहते हुए भी आनंद और खुशियों की बहार ला देती है। प्रेम के समक्ष लौकिक सभी मूल्यवान वस्तुएं मूल्यहीन हो जाती हैं। जिसके पास प्रेम की संपदा है, वह सौभाग्यशाली है। प्रेम के बिना तो हीरे, जवाहरात, मणि-माणिक्य से विभूषित शरीर भी आदर योग्य नहीं होता है। जिसके हृदय में प्रेम का संचार है, उसे सभी प्रेम करते हैं और उसको सभी चाहते हैं, सभी उसका आदर करते हैं, सम्मान करते हैं। लेकिन इस प्रेम को बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि— हम स्थाई प्रेम से भरपूर रहें। हमेशा रहने वाला प्रेम केवल प्रभु का प्रेम है, जो कि दिव्य एवं आध्यात्मिक है।
जब हम दूसरों से प्रेम करते हैं, तो हम उसके बाहरी रूप पर ही केंद्रित होते हैं और हमें जोड़ने वाले आंतरिक प्रेम को भूल जाते हैं। सच्चा प्रेम तो वह है, जिसका अनुभव हम दिल से दिल तक और आत्मा से आत्मा तक करते हैं। बाहरी रूप तो एक आवरण है जो इंसान के अंतर में मौजूद सच्चे प्रेम को ढक देता है। इसे, इस प्रकार से समझा जा सकता है कि— जैसे हम खाने के लिए कुछ सामान खरीदते हैं तो वह किसी थैले में या डिब्बे में पैक होता है। तब हम उस थैले या डिब्बे को नहीं खाते बल्कि उसके अंदर मौजूद खाने को ही खाते हैं। ठीक उसी तरह जब हम घर, परिवार, समाज, भाई-बहन, साथी, पशु- पक्षी, प्राणी से प्रेम करते हैं, तो हम उन सभी के सार- रूप से प्रेम प्रकट कर रहे होते हैं। बाहरी आवरण या हमारा शारीरिक रूप वह नहीं, जिससे हम वास्तव में प्रेम करते हैं। वास्तव में तो हम उस व्यक्ति के सार से प्रेम करते हैं जो कि उसके अंतर में मौजूद है।
जीवन का उद्देश्य यही है कि हम अपने सच्चे आध्यात्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाएं और फिर अपनी आत्मा का मिलाप उसके मूल स्रोत परमात्मा से करा दें। जब हमारी आत्मा अंतर में स्थित ईश्वर की दिव्य ज्योति एवं श्रुति के साथ जुड़ने के लायक बन जाती है, तब हम अपने सच्चे आध्यात्मिक स्वरूप का अनुभव कर पाते हैं। यह भी सच है कि मानव जीवन प्रेम के साथ आनंद पूर्वक जीने हेतु प्राप्त हुआ है। ऐसे में घर, परिवार, समाज, रिश्ते- नाते आदि के साथ प्रेम करना आवश्यक है। परंतु सांसारिक प्रेम में हम इतना आसक्त न हो जाएं कि जीवन का उद्देश्य भूलाकर जीवन ही निरर्थक कर लें। क्योंकि सांसारिक प्रेम हमें बंधन मुक्त नहीं करता है। लेकिन परमात्मा से किया गया प्रेम बंधन में बंधने नहीं देता है। ईश्वर का प्रेम हमें सत्कर्म, धर्म के लिए प्रेरित करता है। परमात्मा सत्य है। सनातन है। प्रेमी व्यक्ति की समीपता हमें सुख प्रदान करती है। परमात्मा की निकटता ही सच्चा आनन्द है।
Jai Jai shri Shyam sunder meri gindagi mera Shri Shyam Lal
Jai shree shyam
Jai shree shyam ji