281. अहंकार का त्याग

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मनुष्य अपने अहम् के कारण ही अहंकारी होता है। मैं और मेरे की भावना उसे और ज्यादा स्वार्थी बना देती है। अहंकार एक ऐसा अवगुण है जो किसी भी मनुष्य का पतन सुनिश्चित कर देता है। जहां अहंकार होता है, वहां पर सभी गुणों का लोप हो जाता …

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280. गुरु की गुरुत्ता

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः गुरु का वास्तविक अर्थ तो यही होता है कि— जो जीवन में गुरुता यानी वजन शक्ति बढ़ाए। यह गुरुता भौतिक पदार्थों से नहीं बल्कि सत- शास्त्रों के निरंतर अध्ययन और चिंतन मनन से ही संभव है। ईश्वरीय माया के वशीभूत मनुष्य को सांसारिक प्रपंच से निकालकर उसकी अंतरात्मा …

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279. क्रोध के दुष्परिणाम

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः गीता में भगवान श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं कि — क्रोध से अत्यंत मूढ़ भाव पैदा होता है क्योंकि इससे स्मृति भ्रमित हो जाती हैं और ज्ञान का नाश हो जाता है। ज्ञान का नाश होने से मनुष्य, मनुष्य नहीं रहता। वे काम, क्रोध और लोभ को नरक …

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278. जीवन और इच्छाएं

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मनुष्य अपने जीवन में अनेक चरित्र एक साथ निभाता हुआ अपने पथ पर अग्रसर होता है। घर में वह पारिवारिक संबंधों से जुड़ा होता है। घर के बाहर सामाजिक संबंध उसके सामने खड़े हो जाते हैं। इन संबंधों से जन्म लेती इच्छाएं उसकी मानसिक शांति को छिन्न -भिन्न …

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277. बढ़ाऐं कदम, कामयाबी की ओर

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः हम जीवन में तभी कामयाब हो सकते हैं, जब हम किसी भी कार्य को पूरी निष्ठा के साथ करते हैं। लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परिश्रम और पुरुषार्थ करते हैं। लेकिन हम तो प्रत्येक कार्य को आसानी से करने की चेष्टा करते हैं। हम यह भली- भांति …

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276. सुनें, आवाज मन की

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः वैसे देखा जाए तो मनुष्य को किसी भी कार्य के बारे में सोचने से पहले एक बार अपने अंतर्मन की आवाज को अवश्य सुनना चाहिए क्योंकि उसका अंतर्मन यह अच्छी तरह जानता है कि उसके लिए क्या ठीक रहेगा और क्या गलत। खासकर युवा जब अपने कैरियर की …

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275. परखें अपनी प्रतिभा

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः प्रत्येक व्यक्ति में कोई न कोई प्रतिभा अवश्य होती है, जो इसे पहचान लेता है, वह खुद को उसी मार्ग पर ले जाने का भरपूर प्रयत्न करता है। पर हमारे में से बहुत सारे लोग अपनी पसंद, अपने भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान ही नहीं पाते। जिसका परिणाम …

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274. दोहरा व्यक्तित्व

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः मनुष्य के अंतःकरण में और बाहरी व्यवहार में जब विचारों का सामंजस्य स्थापित होने में अवरोध उत्पन्न होता है, तो यह दोहरे व्यक्तित्व की स्थिति होती है। मनुष्य समाज में अपने आप को दूसरों से सर्वश्रेष्ठ दिखाने के लिए दोहरे व्यक्तित्व का सहारा लेता है। जिंदगी की रेस …

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273. क्रोध

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः “कामात् जायते क्रोध:” जब अपने मनोवांछित कार्य पूर्ति की इच्छाओं में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न होती है, तो उस समय क्रोध उत्पन्न होता है।जिसके मूल में लोभ होता है। कामादि विकारों को तो छिपाया जा सकता है, परंतु क्रोध को छिपाना सम्भव नहीं है। क्रोधाविष्ट व्यक्ति …

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272. स्वयं से संघर्ष

श्री गणेशाय नमः श्री श्याम देवाय नमः हम अपने जीवन में अक्सर छोटी-छोटी बातों या घटनाओं को प्रतिष्ठा का विषय बना लेते हैं और एक दूसरे के साथ लड़ते- झगड़ते रहते हैं। इस प्रकार बेवजह की लड़ाई कई बार बड़ा रूप ले लेती है। छोटी-छोटी बातें अक्सर विनाश का कारण बन जाती हैं। दूसरों से …

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