11. जैसा कर्म वैसा फल

ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः

कुछ लोग आस्तिक होते हैं और कुछ नास्तिक होते हैं। एक तीसरी टाइप के लोग भी होते हैं, जो ना आस्तिक होते हैं और ना नास्तिक होते हैं। ऐसे लोग मौकापरस्त होते हैं। वे सिर्फ अपना काम सिद्ध करते हैं। आस्तिक वह होते हैं जो भगवान में विश्वास करते हैं और नास्तिक जो भगवान में विश्वास नहीं करते। कुछ लोग सिर्फ इतना मानते हैं कि ईश्वर नहीं है, लेकिन कोई शक्ति है, जो इस संसार को चला रही है। कुछ लोग ईश्वर पर सिर्फ इसलिए यकीन नहीं करना चाहते क्योंकि बहुत सारे पूजा-पाठ, दान -धर्म, परोपकार आदि करने के बाद भी उन्हें कोई लाभ नहीं मिलता। ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्हें अच्छे कर्मों के बदले अच्छा फल मिलने और बुरे कर्मों के बदले बुरा फल मिलने वाली बात पर संदेह है। यकीनन जो लोग ऐसा सोचते हैं, उनके पास अपने अनुभव भी  होंगे। आप में से तमाम लोगों ने कभी अच्छे काम किए होंगे, फिर भी आपको उसके बदले में बुराई मिली होगी। आपके पास तमाम वे उदाहरण भी होंगे, जिनमें आपके जानने वाले ने कोई गलत काम किया, पर उसकी जिंदगी में अच्छा-अच्छा होता चला गया। ऐसे उदाहरण हमें यह मानने को मजबूर करते हैं, कि इस बात की गारंटी नहीं है कि पाप करने का अंजाम बुरा होगा और पुण्य करने के बदले में भला होगा। यह सोचने का एक तरीका है। इसे हम एक दूसरे सकारात्मक तरीके से भी सोच सकते हैं, फिर शायद हम यकीन कर सके कि -हम जैसा कर्म करेंगे वैसा फल हमें मिलेगा।

मान लीजिए हमारा जीवन एक  U आकार की ट्यूब की तरह है ।जन्म लेते समय इसके हिस्से में आधी अच्छाई भरी है और आधी बुराई। अध्यात्म में हम इसे आधा पुण्य और आधा पाप कहेंगे। अगर आप पाप -पुण्य के चक्कर में नहीं पड़ना चाहते तो इसे आधा पॉजिटिव और आधा नेगेटिव कह लीजिए। यानी मान लीजिए कि अच्छा और बुरा जन्म के साथ जुड़कर आपके साथ आया है। अब आप जब कोई अच्छा काम करते हैं, तो इस यूट्यूब के आधे हिस्से में अच्छाई भरी होने वाले छोर से इसके भीतर अच्छाई चली जाती है। जाहिर है, जब उसमे थोड़ी अच्छाई अंदर जाती है, तो दूसरी तरफ से उतनी ही बुराई बाहर निकलती है। क्योंकि ट्यूब पूरी तरह भरी हुई है, इसलिए उसके एक छोर से उसमें अच्छाई भीतर जाने पर दूसरी तरफ से बुराई बाहर निकल गई। तब आप सोचते हैं -हे भगवान हमने तो भला किया, लेकिन हमारे साथ बुरा क्यों हो गया। अब मान लीजिए कि आपने किसी का बुरा कर दिया ।आपके यूट्यूब के दूसरे छोर से उसमें बुराई घुसी और दूसरी ओर से लबालब भरी अच्छाई में से थोड़ी सी अच्छाई बाहर निकल गई। आपको लगा मैंने तो पाप किया था, लेकिन मेरा भला हुआ। यानी ईश्वर नहीं है। फिर आप लगातार बुराई करते रहते हैं,और अधिक बुराई उस टयूब में अंदर जाती रहती है और अच्छाई बाहर आती रहती है। आप रिश्वत लेते हैं, चोरी करते रहते हैं, किसी का हक मारते हैं, अपमान करते हैं, फिर भी आपका जीवन लगातार रोशनी से चमकता रहता है। एक दिन सारी अच्छाई उस ट्यूब से बाहर निकल जाती है। उसके बाद उस टयूब से जो कुछ भी बाहर निकलता है, वह सिर्फ और सिर्फ बुरा निकलता है और हमारा बुरा होना शुरू हो जाता है और हम यह सोचने को मजबूर हो जाते हैं कि- जब हम बुरा करते थे, तब भी हमारा अच्छा होता था, तो अब हमारा बुरा क्यों हो रहा है? और ईश्वर को कोसना शुरू कर देते हैं -कि ईश्वर है ही नहीं। अगर भगवान है तो यह कौन सा न्याय है।जब हम अच्छा कर्म कर रहे थे, तब उसका फल हमें बुराई के रूप में मिल रहा था। और जब हम बुरा कर रहे थे तो हमें उसका फल अच्छा मिल रहा था। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि हमने कितने पाप किए हैं। जिसकी वजह से हमारे सारे पुण्य कर्म फल खत्म हो गए ।तभी तो अपने बड़े बुजुर्ग इसी को तो कहते थे कि पाप का घड़ा भर गया।

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