110. आनंद की अनुभूति

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

दलदल में फंसा मनुष्य उसमें से निकलने के लिए जितना भी परिवर्तन करता है, उतना ही वह और फंसता चला जाता है। यह स्थिति वर्तमान में हमारी भी है। जहां जीने की और सोच की मौलिक दिशाएं उद्घाटित नहीं होती वहां मनुष्य में जड़ता और निराशा छा जाती है। उनका आत्मविश्वास और मनोबल कमजोर पड़ने लगता है, क्योंकी हम सब जीवन की भूल- भुलैया में फंसे हुए हैं। वास्तव में देखा जाए तो संसार की सुविधावादी और भौतिकवादी जीवनशैली एक प्रकार की भूलभुलैया ही तो है।

धन, सत्ता, यश व भोग इन सब का जाल बिछा हुआ है और यह जाल इतना मजबूत है कि अगर एक बार मनुष्य उसमें फंस जाए तो फिर निकल ही नहीं पाता। ऐसे में जरूरी है कि मनुष्य के भीतर जो अमृत घट विद्यमान है, उस पर पड़े आवरण को हटाया जाए क्योंकि वही तो वास्तविक आनंद का स्रोत है। इस आनंद के स्रोत से रूबरू होने के लिए जरूरी है, व्यवहार और संबंधों का परिष्कार। अगर ऐसा हो जाता है तो मनुष्य बुराई में भी अच्छाई और दुख में भी सुख खोजने लगता है। प्रत्येक मनुष्य स्वयं को सही मानता है। वह तो सदैव यही सोचता है कि— जो मैं सोचता हूं, जो मेरे विचार हैं, वही सही हैं, दूसरों की बातों को अनसुना करते हुए उनका अनादर करता है। यही कारण है कि औरों के सुझाव, आज्ञा, प्रेरणा, उपदेश सभी अच्छे होते हुए भी हमारे लिए उनका कोई मूल्य नहीं होता।
इसलिए अपने जीवन में आनंद प्राप्त करने के लिए हमें अपने नजरिए को बदलना होगा। दूसरों को बदलने की बजाय स्वयं को बदलना होगा, तभी हमें आनंद की अनुभूति प्राप्त होगी।

मनुष्य जितना शांत चित्त और निर्दोष होगा, उतना ही सुखी होगा क्योंकि निर्दोष मनुष्य मासूम होता है। वह हमेशा सच्चाई से जिंदगी जीता है। कुटिलता उसके पास तक नहीं फटकती। वह किसी के दुख में दुखी होने का अभिनय नहीं करता बल्कि सच में वह दुखी होता है और दुखी व्यक्ति की हर संभव सहायता करता है। ऐसा करते समय यह नहीं सोचता कि कौन क्या कहेगा? यह जो कौन क्या कहेगा, वाली प्रवृत्ति है, यही मनुष्य को औपचारिक बनाती है, जबकि किसी के दुख में औपचारिकता दिखाना एक तरह का पाप ही है। यदि हम किसी की मदद करना चाहते हैं तो असली मदद करें, दिखावा नहीं। जो असली मदद करता है, वही आनंद प्राप्त करता है।

ऐसा व्यक्ति प्रकृति के निकट होता है, आकाश को देखकर मोहित होता है और सच्चे आनंद की अनुभूति प्राप्त करता है। चेतना के स्तर पर भी बेहद समृद्ध होता है, जब आनंदित होता है, तब दुनियादारी से दूर होता है। मासूमियत अनायास नहीं आती, यह स्वाभाविक होती है पर कई बार खुद को निखारने पर आ जाती है। अगर आप आनंद की अनुभूति करना चाहते हैं तो झूठ और पाखंड से हमेशा दूर रहें। नुकसान होने पर भी निराश न हों। आपके पास अपरिमित सहनशक्ति है। हमेशा सकारात्मक रहें। अच्छा सोचें और छोटी से छोटी विसंगति के लिए चिंतित न हों।जीवन में खुशियों और संपूर्णता के अवतरण के लिए जीवन के प्रति एक ऐसा नजरिया अपनाएं, जिसमें आनंद ही आनंद हो।

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