श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
आत्म-शक्ति में दो शक्तियों का मिश्रण होता है— भावनात्मक और आध्यात्मिक।
भावनाएं हमें व्यक्तिगत तौर पर तुरंत जाग्रत कर देतीे हैं और जब हम व्यक्तिगत प्रभावों से ऊपर उठ जाते हैं, उस समय हमारी उर्जा समाज से परे हटकर व्यापक कल्याण के लिए उन्मुख हो जाती है तब वह अध्यात्मिक शक्ति बन जाती है। इन दोनों शक्तियों का मेल ही आत्म-शक्ति है।
चंडीगढ़ की ट्रैफिक पुलिस की सिपाही प्रियंका अपने दूधमुहें बच्चे कोे लिए हुए ट्रैफिक नियंत्रित करती है, उसे देख कर कोई उनके जज्बे को सलाम करता है तो किसी को यह वायरल तस्वीर चिंता में डाल देती है। कुछ लोग बच्चे को इस तरह जोखिम में डालने वाली नौकरी पसंद करते हैं। कुछ उनके जज्बे को सलाम करते हैं।
मैराथन रनर सोफी पावर रेस के बीच में अपने 3 माह के बच्चे को दूध पिलाने के लिए रूकती है तो यह तस्वीर भी लोगों को द्रवित कर जाती है। इस वायरल तस्वीर को भी कुछ लोग सलाम करते हैं तो कोई मातृशक्ति कहता है, किसी को एक सशक्त महिला की छवि नजर आती है जो रास्ते में आने वाली समस्त कठिनाइयों को पार करते हुए आगे बढ़ना चाहती है।
सोफी कहती है— इसमें महानता जैसी कोई बात नहीं, यह तो एक मां के लिए सामान्य- सी बात है लेकिन यह दोनों तस्वीरें एक स्त्री की होने के कारण मन पर एक अलग छाप छोड़ती हैं।
इस संबंध में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली के मनोचिकित्सा विभाग के पूर्व अध्यक्ष रहे डॉक्टर सुधीर खंडेलवाल कहते हैं— दरअसल हमें स्त्री व पुरुष दोनों को एक खास भूमिका में देखने की आदत होती है। जब कभी भी वे एक निश्चित भूमिका से बाहर निकलते नजर आते हैं तो इस पर दूसरे लोग चौक जाते हैं। जब हम किसी को सामाजिक रुप से मिली भूमिका के दायरे में देखेंगे तो उसकी आत्म-शक्ति का अनुमान नहीं हो सकेगा। इंसान आत्मशक्ति की बदौलत हर बुलंदी को छू सकता है।
जीवन अपनी गति से चलता रहता है, इससे फर्क नहीं पड़ता कि हमारे अनुभव कितने बुरे रहे। अधिक से अधिक बेहतर करने की आकांक्षा कई बार हमारे से वह कार्य भी संपन्न करवा देती है, जिसे हम असंभव कहते हैं। यह आत्म- शक्ति होती है जो हमें असंभव से संभव की ओर ले जाती है। कई बार ऐसा देखने में आता है कि जब हम संघर्ष कर रहे होते हैं तो हमें महसूस होता है कि—हमारे अंदर एक अलग ही उर्जा और स्फूर्ति है जो हमें प्रत्येक बाधा से बाहर निकलने की प्रेरणा देती है और उन बाधाओं से बाहर निकलने के बाद हम देखते हैं कि— अरे! हम तो बाधाओं से बाहर निकल आए। कहां से आई वह शक्ति? यह बाहर नहीं हमारे भीतर ही है। यही हमारी आत्मशक्ति है।
कई बार देखने में आता है की परिस्थितियां हमारी क्षमता और शक्ति को सामने ला देती हैं फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। जब हम स्त्री और पुरुष की कार्य शक्ति के संबंध में बातें करते हैं तो यह सोचते हैं कि— पुरुष युद्ध और कठिन शारीरिक परिश्रम कर सकता है इसलिए वह अधिक श्रेष्ठ है। स्त्री के साथ जाति, शारीरिक दुर्बलता और युद्ध प्रमुखता की हम तुलना करने लगते हैं, पर यह अन्याय है। स्त्री भी उतनी ही सशक्त और साहसी होती है, जितने कि पुरुष।अपने- अपने ढंग से दोनों ही अच्छे हैं। संपूर्ण संसार पूर्णतया संतुलित है। विश्व की गति लहरों की गति के समान है, ऐसी कोई लहर नहीं जिसकी कोई ना हो।
स्त्री और पुरुष दोनों ही आत्म शक्ति से परिपूर्ण हैं। बस उसे जगाने की आवश्यकता है। फिर भी प्रकृति ने स्त्री को खास बनाया है। वह पहले से ही सशक्त है, पर अपने ही भीतर स्थित शक्ति को पाने के लिए खुद को जगाना ही पड़ता है।यदि स्त्री और पुरुष दोनों मिल कर चलते हैं तो जीवन संतुलन की ओर बढ़ जाता है। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारी आत्मशक्ति के ऊपर एक आवरण पड़ा हुआ है।उसे हटाने का कार्य हमें स्वयं को करना है। सिर्फ सोचने मात्र से कुछ नहीं होता, उन्हें वास्तविकता की जमीन पर लाने के लिए आत्म- शक्ति को जागृत करना ही होगा।