119. ॐ का महत्व एवं उच्चारण विधि

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

  • उच्चारण की विधि— प्रातः उठकर पवित्र होकर ॐ का उच्चारण करने से पूरे शरीर में एक स्पंदन होता है। जो हमारे आलस्य और निराशा को दूर भगाता है और हम पूरे दिन तरोताजा महसूस करते हैं। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, बज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। आप अपने समय के अनुसार 5,7,10 जितनी बार चाहे कर सकते हैं। उच्चारण करते समय यह आप पर निर्भर करता है कि आप जोर-जोर से उच्चारण करेंगे या धीरे-धीरे। आप जैसे भी करें, इसका फल बराबर ही मिलता है। यह जरूरी नहीं जोर-जोर से करने से ज्यादा फायदा होगा और धीरे-धीरे करने से कम फायदा होगा। बस आप ध्यान और एकाग्रता से उच्चारण करने का अभ्यास करते रहिए। धीरे-धीरे आपको इसकी शक्ति का आभास स्वयं होने लगेगा।
  • वैज्ञानिकों और ज्योतिषियों का कहना है कि—ॐ तथा एकाक्षरी मंत्र का उच्चारण करने में दांत, नाक, जीभ सब का उपयोग होता है, जिससे हार्मोनल स्राव कम होता है तथा ग्रंथि स्राव को कम करके यह शब्द कई बीमारियों से रक्षा तथा शरीर के सात चक्कर (कुंडलिनी) को जागृत करता है। साथ ही पद्मासन में बैठकर इसका जप करने से मन को शांति तथा एकाग्रता की प्राप्ति होती है।
  • ॐ का महत्व— धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों का प्रदायक है।
  • ॐ का जाप कर साधक अपने उद्देश्य की प्राप्ति कर लेते हैं।
  • कोशातकी ऋषि निसंतान थे। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने सूर्य का ध्यान कर ॐ का जाप किया तो पुत्र की प्राप्ति हो गई।
  • गोपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के अनुसार—जो कुश के आसन पर पूर्व की ओर मुख कर एक हजार बार ॐ रुपी मंत्र का जाप करता है। उसके सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
  • “सिद्धयन्ति अस्य अर्था: सर्वकर्माणि च”
  • श्रीमद्भागवत् में आठवें अध्याय में उल्लेख मिलता है कि— जो ॐ अक्षर रूपी ब्रह्म का उच्चारण करता हुआ शरीर त्याग करता है, वह परम गति प्राप्त करता है।
  • “ध्यान बिन्दुपनिषद” के अनुसार ॐ मंत्र की विशेषता यह है कि—पवित्र या अपवित्र सभी स्थितियों में जो इस का जप करता है। उच्चारण करता है तो उसे लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। जिस तरह कमल-पत्र पर जल नहीं ठहरता है, ठीक उसी तरह जप कर्त्ता पर कोई कलुष नहीं लगता।
  • ” तैत्तिरीयोपनिषद् शिक्षावली अष्मोऽनुवाक:” के अनुसार ॐ ही ब्रह्म है, ॐ ही प्रत्यक्ष जगत् है, ॐ ही जगत् की अनुकृति है।
  • हे आचार्य ॐ के विषय में और भी सुनाएं।
  • आचार्य सुनाते हैं—ॐ से प्रारंभ करके साम गायक सामगान करते हैं।
  • ॐ-ॐ कहते हुए ही शस्त्र रूप मंत्र पढे जा़ते हैं।
  • ॐ से ही अध्वर्यु प्रतिगर मंत्रों का उच्चारण करता है।
  • ॐ कह कर ही अग्निहोत्र प्रारंभ किया जाता है। अध्ययन के समय ब्राह्मण ॐ कहकर ही ब्रह्म को प्राप्त करने की बात करते हैं।
  • ॐ के द्वारा ही वह ब्रह्म को प्राप्त करता है।
  • कठोपनिषद् (अध्याय।, वल्ली 2) के अनुसार— सारे वेद जिस पद का वर्णन करते हैं, समस्त तपों को जिसकी प्राप्ति के साधक कहते हैं। जिसकी इच्छा से ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। उस पद को मैं, तुम्हें संक्षेप में कहता हूं। वह पद ॐ है।
  • मांडूक्योपनिषद् (गौ०का०श्लोक।)— ॐ अक्षर ही सब कुछ है। यह जो कुछ भूत, भविष्यत् और वर्तमान है। उसी की व्याख्या है। इसलिए यह सब ओंकार ही है। इसके सिवा जो अन्य त्रिकालातीत वस्तु है, वह भी ओंकार ही है।
  • गुरु नानक जी का शब्द “एक ओंकार सतनाम” बहुत प्रचलित तथा शतप्रतिशत सत्य है। एक ओंकार ही सत्य नाम है। राम, कृष्ण सब फलदाई नाम ओंकार पर निहित हैं तथा ओंकार के कारण ही इनका महत्व है। बाकी नामों को तो हमने बनाया है, परंतु ओंकार ही है जो स्वयंभू है तथा हर शब्द इससे ही बना है। हर ध्वनि में ओउम् शब्द होता है।
  • यह सर्वविदित है कि ओउम् (ॐ) तीन अक्षरों से बना है। अ, उ् , म् ।
  • यहां पर अ का अर्थ है —आविर्भाव या उत्पन्न होना।
    उ का अर्थ है—उठता, उड़ना अर्थात् विकास।
    म् का अर्थ है —मौन हो जाना अर्थात ब्रह्मलीन हो जाना।
  • यह तो स्पष्ट है कि ॐ संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का घोतक है। ॐ में प्रयुक्त अ तो सृष्टि के जन्म की ओर इंगित करता है। वहीं उ उड़ने का अर्थ देता है, जिससे अभिप्राय ऊर्जा से है।
  • जब आप किसी मंदिर या तीर्थ स्थल पर जाते हो तो वहां ऊर्जा के सानिध्य में थोड़े से समय रहने के बाद भी काफी ऊर्जावान महसूस करते हो। वहां की अगाध ऊर्जा ग्रहण करने के बाद व्यक्ति स्वप्न में स्वयं को आकाश में उड़ता हुआ देखता है।
  • मौन का महत्व ज्ञानियों ने बताया ही है।
  • अंग्रेजी में एक उक्ति है—
  • silence is silver and absolute silence is gold.
  • गीता में स्वयं श्री कृष्ण ने मौन के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए स्वयं को मौन का ही पर्याय बताया है।
  • “मौनं चैवास्मि गुह्यानां”
  • सनातनधर्म ही नहीं, भारत के अन्य धर्म-दर्शनों में भी ॐ को महत्व प्राप्त है।
  • बौद्ध दर्शन में “मणिपद्मेहुम” का प्रयोग जप एवं उपासना के लिए प्रचुरता से होता है। इस मंत्र के अनुसार ॐ को मणिपुर चक्र में अवस्थित माना जाता है। यह चक्कर दस दल वाले कमल के समान है।
  • जैन दर्शन में भी ॐ के महत्त्व को दर्शाया गया है।
  • हिन्दू धर्म में महाविस्फोटक शब्द ॐ की ध्वनि का कलरव हमेशा बहता रहता है। ॐ सभी मंत्रों में मंत्रराज होने के कारण हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान रखता है जो प्रतिदिन ॐ का उच्चारण करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है। यह एक संपूर्ण मंत्र है, जो सभी प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त करने में सहायक होता है। किसी भी मंत्र के प्रारंभ में तथा अंत में ॐ का प्रयोग करने से हमारे शारीरिक तथा मानसिक दोष नष्ट हो जाते हैं। ॐ परम शांति व मोक्षदायक मंत्र है।

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