124. आशा और निराशा

श्री गणेशाय नमः

श्याम देवाय नमः

आशा और निराशा दोनों साथ-साथ चलती हैं। यह निर्णय हमें करना है कि हम आशा को ज्यादा महत्व देते हैं या निराशा को। हमारे मन की संरचना कैसी हो? उसे कैसा बनाना है? हमारी आदतें, विश्वास और वे कौन से तरीके हैं जिनकी सहायता से हम आशा की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। खुद को बुलंद कर सकते हैं। एक अच्छी बात यह भी है कि यह एक ऐसी कला है, जिसे कोई भी विकसित कर सकता है। मनुष्य अपने जीवन में केवल आशा का दामन ही थामे रखना चाहता है। निराशा को अपने पास फटकने भी नहीं देना चाहता, लेकिन वह केवल वही राह सही मानता है, जिस पर वह चल रहा है। वह अपने को हमेशा सर्वश्रेष्ठ मानता है और अपने द्वारा बनाई गई परिपाटी पर ही चलता रहता है लेकिन कभी-कभी वह रास्ता हमें निराशा की तरफ धकेलता है।

आमतौर पर हम अपना जीवन दूसरों की इच्छा के अनुसार ही व्यतीत कर देते हैं। हम स्वयं दूसरों की आलोचना भी करते रहते हैं। यह भूल जाते हैं कि जो आलोचना हम दूसरों के लिए कर रहे हैं, वहीं आलोचना दूसरे भी हमारे लिए कर रहे हैं। फिर आप आलोचना से आहत होते हैं और निराशा की अवस्था में चले जाते हैं। निराश होने की बजाय अगर एकाग्र होकर खुद को देखें और अपना रास्ता स्वयं निर्धारित करें तो आप एक आशापूर्ण जीवन जीते हुए अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं। सुबह आंखें मूंद कर बैठ जाएं मन की प्रत्येक गतिविधि को महसूस करें। गहरी सांस लें और भविष्य की सुंदर कल्पनाएं करें। जैसे आने वाले समय में आपको क्या चाहिए? आप कैसी नौकरी चाहते हैं? कैसा परिवार चाहते हैं? अपने सपने को किस तरह से पूरा करना चाहते हैं? इन सबके बीच में अतीत को प्रवेश न होने दें, अन्यथा आपकी चिंताएं फिर सक्रिय हो जाएंगी। भविष्योन्मुखी कल्पनाएं हमें एकाग्र होने में मदद करती हैं। जिससे हमें आशा की एक नई किरण नजर आने लगती है।

अगर हम निराशा को अपने जीवन में शामिल नहीं करना चाहते तो हमारा जीवन विश्वास से भरपूर होना चाहिए।हमारा जीवन ऐसा होना चाहिए जिसमें हमारी तरफ से दूसरों की ओर केवल अच्छा ही जाए। ईश्वर पर हमारा अटूट विश्वास होना चाहिए। हमारा विश्वास इतना दृढ होना चाहिए कि कोई भी बात उस विश्वास को हिला ना पाए। हमें पूरी तरह से निर्भय होकर अपना जीवन गुजारना चाहिए। इस विश्वास के साथ ईश्वर प्रत्येक क्षण हमारे साथ है। हमारी रक्षा और हमारी देखभाल कर रहा है। हमें प्रत्येक के साथ समानता का व्यवहार करना चाहिए। चाहे वह हमें सोने की तरह लगे या लोहे की तरह। क्योंकि हमें अहसास होना चाहिए कि एक ही ईश्वर का प्रकाश हम सबके अंदर प्रज्वलित है। ऐसा जीवन गुजारने से ही हम आशा से भरे रह सकते हैं और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

मनुष्य दूसरों से अपनी तुलना करता रहता है और अपने गुणों को, खूबियों को नहीं देख पाता। अपनी खूबियां भूलकर कमियों पर ध्यान देना हमें निराशा की तरफ अग्रसर करते हैं। अगर आप खुद को प्राथमिकता नहीं देते तो आप आशावादी नहीं हो सकते। दूसरों के लिए प्रेम, सहानुभूति,दया की भावना रखना ठीक है, पर वह खुद के लिए भी उतना ही जरूरी है। यदि खुद को कमतर समझेंगे तो दूसरे भी हमारे साथ ऐसा ही व्यवहार करेंगे। इसलिए खुद पर विश्वास रखें, भरोसा रखें, अपनी क्षमता को कम न समझे, दूसरों को खुश रखने के प्रयास में अपने को कभी भी कम नहीं आंकना चाहिए। हमेशा यह याद रखें कि दुनिया केवल अपने बूते चलती है, लोगों को खुश करने के दम पर नहीं। बस जरूरी है, एकाग्र होकर खुद को देखें क्योंकि अपने जीवन के निर्माता हम खुद हैं इसलिए अपने जीवन में आशा को अहमियत दें।

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