126. वाणी की उपयोगिता

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

वाणी ईश्वर के द्वारा मनुष्य को प्रदान किया गया एक अनुपम उपहार है। वाणी के द्वारा ही हमारा व्यक्तित्व झलकता है। वाणी के द्वारा हम अपने विचारों और भावों को अभिव्यक्त कर सकते हैं तथा अपने प्रसन्नता व पीड़ा को भी एक- दूसरे के साथ बांट कर सकते हैं।

वाणी में सरस्वती का वास होता है। वह जब भी विराजती है तब मुख से निकलने वाली बात सत्य सिद्ध हो जाती है। इसलिए हमें सभी से सकारात्मक बातें करनी और सुननी चाहिए। इससे हमारे विचारों में सकारात्मक बदलाव आता है और इसकी शुरुआत हमें अपने परिवार से करनी चाहिए। क्योंकि परिवार हमारी उर्जा का बड़ा केंद्र होता है। अगर हम इसे संभालना सीख लें और रिश्तों को अहमियत देने लगें तो अपनी उर्जा की खपत सकारात्मक चीजों में कर सकते हैं। परिवार के प्रत्येक सदस्य में अलग-अलग क्षमता होती है। अगर परिवार के सदस्यों से हमारे रिश्ते ठीक नहीं हैं तो भी तनाव स्वाभाविक है। प्रत्येक सदस्य में कुछ कमियां हो सकती हैं पर उनकी अच्छाइयों को देखकर हम उनके लिए भी अच्छे भविष्य की कल्पना कर सकते हैं और यह सब वाणी के माध्यम से ही हो सकता है। हम जैसा सोचते हैं, वैसा कोई नहीं बन सकता पर आपसी संबंधों में स्वीकार्यता और प्रशंसा करने की कला आ जाए तो सकारात्मक उर्जा का खुला आसमान मिल सकता है। इसलिए हमें मधुर वाणी का ही प्रयोग करना चाहिए।

वाणी मनुष्य के मन का दर्पण है। इससे मनुष्य की पहचान होती है। मनुष्य जीवन की प्रत्येक कठिनाई का समाधान वाणी के संयम और उसके सदुपयोग पर निर्भर करता है। समाज के मध्य अपना रुतबा रखने वाले मनुष्य भी यदि कोई कड़वी बात कह देते हैं तो दूसरे उनका अनुकरण करने की बजाय उनसे दूर भागने लगते हैं, फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या है? मधुर वाणी के द्वारा ही एक साधारण मनुष्य भी आम से खास बन जाता है। ऐसे मनुष्यों के मित्रों की संख्या बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे मनुष्यों की बात को सुनने और उसका अनुसरण करने वालों की संख्या अपने आप बढ़ने लगती है। यह वाणी की ही शक्ति है जिसके द्वारा मनुष्य किसी को अपना मित्र तो किसी को अपना शत्रु भी बना सकता है।

एक मधुर वाणी सबके लिए हितकारी होती है। हम में से प्रत्येक मनुष्य यह अच्छी तरह से समझता है कि यदि वाणी दूषित है तो इसका अभिप्राय यह है कि उस व्यक्ति का मन भी दूषित है। अक्सर हम देखते हैं कि जब कोई मनुष्य क्रोधित होता है तो उसकी वाणी का स्वर बदल जाता है। लेकिन वही मनुष्य जब शांत एवं प्रसन्न मुद्रा में होता है तो उस समय उसकी वाणी में मिठास होती है और वह आनंद बिखेरती है। मधुर वाणी सुनकर हर कोई मुस्कुरा उठता है।

हमें यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि जो कुछ हम बोल रहे हैं, वह एक ऊर्जा है, जिसे संवाद के जरिए हम दूसरे मनुष्य तक पहुंचा रहे होते हैं। इससे हम स्वयं भी प्रभावित होते हैं, क्योंकि यही हमारे व्यक्तित्व की पहचान होती है। इसलिए बोलने से पहले शब्द को परखना सीखना चाहिए, उसमें कितनी उर्जा है, उसका प्रभाव क्या होगा? यह सारी बातें हमारी समझ में आ जाएं तो हम देखेंगे कि मन का रुख बदल रहा है यानी हमारे विचार सकारात्मक हो रही हैं। वाणी एक ऐसा सेतु है, जिससे हम जीवन में आने वाली हर परेशानी से बाहर निकलने का रास्ता तलाश सकते हैं। हमें दूसरे की प्रतिभा को स्वीकार करना सीखना चाहिए और वाणी के माध्यम से उनकी प्रशंसा करते हुए उन्हें प्रेरित करना चाहिए, न की नकारात्मक शब्दों का प्रयोग करके अपनी वाणी को दूषित करें। वाणी के द्वारा उनका अपमान करें या अनदेखा करें। अगर हम वाणी का सदुपयोग करते हैं तो हमें किसी भी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा।

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