श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
अन्य देशों में—
स्वास्तिक को भारत ही नहीं अपितु विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है। विभिन्न मान्यताओं और धर्मों में स्वास्तिक को महत्वपूर्ण माना गया है। इसके साथ-साथ विश्व भर में स्वास्तिक को एक अहम् स्थान हासिल है। हम यहां विश्व भर में मौजूद हिंदू मूल के उन लोगों की बात नहीं कर रहे जो भारत से दूर रहकर भी शुभ कार्यों में स्वास्तिक का इस्तेमाल कर, अपने संस्कारों की छवि विश्व भर में फैला रहे हैं बल्कि सच यही है कि स्वास्तिक का प्रयोग भारत के बाहर के देशों में भी होता है।
जर्मनी में स्वास्तिक—
एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी में स्वास्तिक का इस्तेमाल किया जाता है। वर्ष 1935 के दौरान जर्मनी के नाजियों द्वारा स्वास्तिक के निशान का इस्तेमाल किया गया था। लेकिन यह हिंदू मान्यताओं के बिल्कुल विपरीत था। यह निशान एक सफेद गोले में काले क्रास के रूप में उपयोग में लाया गया। जिसका अर्थ उग्रवाद या फिर स्वतंत्रता से संबंधित था।
द्वितीय विश्व युद्ध—
द्वितीय विश्व युद्ध के समय एडोल्फ हिटलर ने उल्टे स्वास्तिक का चिन्ह बना कर अपनी सेना के प्रतीक के रूप में शामिल किया था। सभी सैनिकों की वर्दी एवं टोपी पर उल्टा स्वास्तिक का चिन्ह अंकित था।
कहा जाता है कि यही उल्टा स्वास्तिक एडोल्फ हिटलर की बर्बादी का कारण बना।
संयुक्त राज्य अमेरिका की अधिकारिक सेना के नेटिव अमेरिकन की एक 45 वीं मिलिट्री इनवेंटेड डिवीजन का चिन्ह एक पीले रंग का स्वास्तिक था। नाजियों की घटना के बाद इसे हटा कर उन्होंने गरुड़ का चिन्ह अपनाया।
अन्य देश—
स्वास्तिक को भारत के अलावा जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमेरिका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वास्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है।
नेपाल में — हेरंब के नाम से
बर्मा में—प्रियेन्ने
मिस्र में — एकटन के नाम से स्वास्तिक की पूजा की जाती है।
प्राचीन यूरोप—
प्राचीन यूरोप में सेल्ट नामक एक सभ्यता थी जो जर्मनी से इंग्लैंड तक फैली थी। वह स्वास्तिक को सूर्य देव का प्रतीक मानती थी। उसके अनुसार स्वास्तिक यूरोप के चारों मौसमों का भी प्रतीक था।
मिश्र और अमेरिका— मिस्र और अमेरिका में भी स्वास्तिक का काफी प्रचलन रहा है। इन दोनों जगहों के लोग पिरामिड को पुनर्जन्म से जोड़कर देखा करते थे। प्राचीन मिस्र में ओसिरिस को पुनर्जन्म का देवता माना जाता था और हमेशा उसे चार हाथ वाले तारे के रूप में बताने के साथ ही पिरामिड को सूली लिखकर दर्शाते थे। इस तरह हम देखते हैं कि स्वास्तिक का प्रचलन प्राचीन काल से ही हर देश की सभ्यताओं में रहा है।
मध्य एशिया—
मध्य एशिया के देशों में स्वास्तिक का निशान मांगलिक एवं सौभाग्य का सूचक माना जाता है।
इराक— प्राचीन इराक में ( मेसोपोटेमिया ) अस्त्र-शस्त्र पर विजय प्राप्त करने हेतु स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग किया जाता था।
बुलगारी में स्वास्तिक—उत्तर-पश्चिमी बुल्गारिया के व्रात्स नगर के संग्रहालय में चल रही प्रदर्शनी में 7000 वर्ष प्राचीन कुछ मिट्टी की कलाकृतियां रखी हुई हैं, जिन पर स्वास्तिक का चिन्ह बना हुआ है। व्रास्ता शहर के निकट अल्तीमीर नामक गांव के एक धार्मिक कुंड की खुदाई के समय ये कलाकृतियां मिली थी।
पहला विश्वयुद्ध—अमेरिकी सेना ने पहले विश्वयुद्ध में इस प्रतीक चिन्ह का इस्तेमाल किया था। ब्रितानी वायु सेना के लड़ाकू विमानों पर इस चिन्ह का इस्तेमाल 1939 तक होता रहा।
जर्मन भाषा और संस्कृत में समानताएं —
करीब 1930 के आस-पास इसकी लोकप्रियता में कुछ ठहराव आ गया था। यह वह समय था जब जर्मनी की सत्ता में नाजियों का उदय हुआ था। उस समय किए गए शोध में एक दिलचस्प बात सामने निकलकर आई। शोधकर्ताओं ने यह स्वीकार किया कि जर्मन भाषा और संस्कृत में कई समानताएं हैं। इतना ही नहीं, भारतीय और जर्मन दोनों के पूर्वज भी एक ही रहे होंगे और उन्होंने देवताओं जैसे वीर आर्य नस्ल की परिकल्पना की।
स्वास्तिक का आर्य प्रतीक के रूप पर बल—
इसके बाद से ही स्वास्तिक चिन्ह का आर्य प्रतीक के तौर पर चलन शुरू हो गया। आर्य प्रजाति से अपना गौरवमय चिन्ह मानती थी। लेकिन उन्नीसवीं सदी के बाद बीसवीं सदी के अंत तक इसे नफरत की नजर से देखा जाने लगा।
नाजियों द्वारा कराए गए यहूदियों के नरसंहार में बचे 93 साल के फ्रेडी नालर कहते हैं— यहूदी लोगों के लिए इस चिन्ह को भय और दमन का प्रतीक माना जाता था। युद्ध खत्म होने के बाद जर्मनी में इस प्रतीक चिन्ह पर प्रतिबंध लगा दिया था और 2007 में जर्मनी ने यूरोप भर में इस पर प्रतिबंध लगवाने की नाकाम पहल की गई थी।
स्वास्तिक की जड़ें—
इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि स्वास्तिक की जड़ें यूरोप में कहीं गहरी हैं।
पुरातत्वविदों ने पाया कि— इसका संबंध केवल भारत से ही नहीं था बल्कि प्राचीन ग्रीस के लोग भी इसका इस्तेमाल करते थे। पश्चिमी यूरोप में बाल्टिक से बाल्कन तक इसका इस्तेमाल देखा गया है।
यूक्रेन—
यूक्रेन के नेशनल म्यूजियम में कई तरह के स्वास्तिक चिन्ह देखे जा सकते हैं जो 15000 साल तक पुराने हैं। उक्रेन की गुफाओं में भी इस तरह के चिन्ह देखे जा सकते हैं।
रोम की प्राचीन सुरंगों में भी स्वास्तिक चिन्ह—
रोम की प्राचीन सुरंगों में भी स्वास्तिक चिन्ह पाए गए हैं।स्वास्तिक के पास zotica-zotica लिखा गया है। जिसका अर्थ होता है—जीवन का जीवन।
इसके अलावा स्वास्तिक चिन्ह इथोपिया के रहस्यमयी प्राचीन चर्च में भी पाया गया है। ग्रीक गणितज्ञ और वैज्ञानिक पाइथागोरस ने भी स्वास्तिक चिन्ह का प्रयोग अलग-अलग जगह किया है।
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