143. रामनवमी

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

रामनवमी हिंदुओं का सामाजिक और सांस्कृतिक पर्व है। इस दिन जन-जन के मन में बसने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था। चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न के शुभ मुहूर्त बेला में भगवान श्रीराम ने एक शिशु के रूप में माता कौशल्या की गोद में अवतार लिया था।

श्री राम हम सब भारतीयों के रोम- रोम में बसते हैं। वे सिर्फ हमारे आराध्य देव ही नहीं है बल्कि हम में से प्रत्येक मनुष्य को मुश्किलों के बीच में जीवन जीने की राह दिखाते हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि— ऐसा उन्होंने कहा नहीं है बल्कि अपने जीवन में करके दिखाया। जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें क्यों ना आए, अशांत नहीं होते, अपने पथ से भटकते नहीं, कर्म से विचलित नहीं होते और न ही अपने को निराश होने देते हैं। धैर्य धारण करके स्वयं को संयमित रखते हुए, शांति के साथ जीवन में आगे बढ़ते जाते हैं और हर मुश्किल पर विजयश्री प्राप्त करते हैं।

श्री राम का जीवन संघर्ष को दर्शाता है। मनुष्य के जीवन में उतार- चढ़ाव आते ही रहते हैं। कभी वह दुखों रुपी भयंकर अग्नि में जलता है तो कभी चंद्रमा की शीतलता के समान सुख रूपी छाया भी प्राप्त होती है। दुख रुपी कांटो की डगर पर चलते हुए जब वह पराक्रम, साहस और धैर्य से हर कठिनाई को पार कर लेता है, तभी वह युग-दृष्टा या युगपुरुष कहलाता है और ऐसे ही ऐसे ही युगपुरुष हुए हैं— श्री राम।
जिनका पूरा जीवन कठिनाइयों और मुश्किलों से होकर गुजरता है। उन्होंने अपना पूरा जीवन पिता, पुत्र, पति, भाई, सखा व प्रजा के हित में समर्पित कर दिया। जीवन को साक्षी भाव से तटस्थ मुद्रा में देखते हुए सिर्फ कर्म पर जोर दिया। कभी भी वे क्रोध के वशीभूत होकर विचलित नहीं हुए।

श्री राम राजसी वैभव को त्याग कर पिता की आज्ञा पाकर वन चले जाते हैं। वनवास के दौरान उन्होंने प्रकृति को बहुत नजदीक से देखा, उसे निहारा और अनुभव किया। पशु- पक्षियों और जीव-जंतुओं से प्रेम किया। वृक्षों से संवाद किया। उन्होंने सभी जीवो को मिल- जुल कर रहना सिखाया और अपरिचित को भी अपना मित्र बनाया। संसारी जीवन के अनेक उतार-चढ़ाव, उथल-पुथल और झंझावातों के बीच से संतुलन बनाकर कैसे निकला जाए, यह हमें श्री राम के जीवन से सीखना चाहिए।

श्रीराम का संपूर्ण जीवन मानवीय मूल्यों का एक समुच्चय है। उनके जीवन में मानवोचित समस्त क्रियाकलाप देखे जा सकते हैं। उनके आचरण और व्यवहार ने ही उन्हें देवता के रूप में स्थापित किया है। उन्होंने अपने जीवन में कभी भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। हमेशा मर्यादा में रहकर समस्त दायित्वों को पूरा किया।

अयोध्या के राजा के रूप में श्री राम ने अपने राज्य और नागरिकों के प्रति अपने धर्म का पालन करने को प्रमुख स्थान दिया। एक कुशल राजा के रूप में अपने आप को स्थापित किया। श्री राम के राज्य में जानवर भी न्याय की गुहार लगाते थे।

हजारों वर्ष बीत जाने के बाद भी श्री राम का जीवन विश्व भर के लाखों लोगों के लिए प्रेरणा का एक बहुत बड़ा स्रोत है। आज जब पूरे विश्व में कोरोना जैसी महामारी फैली हुई है, तब हमें श्रीराम के जीवन को आत्मसात् करना चाहिए। उनके गुणों को धारण करते हुए विपरीत परिस्थितियों का साहस और धैर्य के साथ डटकर मुकाबला करना चाहिए।

आज रामनवमी के दिन हमें प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करते हुए यह संकल्प लेना चाहिए कि— संकट पर विजय प्राप्त करने का रास्ता आपने जो सदियों पहले हमें दिखाया था, उसी रास्ते पर चलने की हमें शक्ति प्रदान कीजिए। जिससे हम कोरोना जैसी महामारी पर विजय प्राप्त कर सकें।

1 thought on “143. रामनवमी”

Leave a Comment

Shopping Cart
%d bloggers like this: