145. ग्रंथों में स्वास्तिक की प्रमाणिकता/ प्रयोग

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

बाल्मीकि रामायण में भी स्वास्तिक का उल्लेख मिलता है। रामायण के अनुसार—
सांप के फन के ऊपर उपस्थित नीली रेखा भी स्वास्तिक का पर्याय है।
नादब्रह्म से अक्षर तथा वर्णमाला बनी, मातृका की उत्पत्ति हुई। नाद से ही पश्यंती, मध्यमा तथा वैखरी वाणियां उत्पन्न हुई। तदुपरांत उनके भी स्थूल तथा सूक्ष्म दो भाग बनें। इस प्रकार नाद सृष्टि के छः रुप हो गए। इन्हीं छः रूपों में, पंक्तियों में, स्वास्तिक का रहस्य छिपा है। अतः स्वास्तिक को समूचे नादब्रह्रम तथा सृष्टि का प्रतीक एवं पर्याय माना जा सकता है।

एक इतिहासज्ञ का कथन है कि—

सातवीं शताब्दी में स्वास्तिक का चिन्ह मवेशियों पर दाग दिया जाता था। विक्रम से 200 वर्ष पहले के बने हुए एक स्वर्ण पात्र के ऊपर भी स्वर्ण पात्र बना हुआ पाया गया है। इस पात्र में ब्राह्मीभूत भगवान बुद्ध देव की अस्थि रखी हुई मिली हैं। 2600 वर्ष के प्राचीन यूनानी बर्तनों पर भी स्वास्तिक के चिन्ह पाए गए हैं।

अत्यन्त प्राचीन स्वास्तिक का चिन्ह एक चरेर्व पर बना हुआ मिला है जो ट्रोय के तीसरे नगर से प्राप्त हुआ है और जो प्रायः 3800 वर्ष पुराना बताया जाता है।

भारत सरकार की पुरातत्व विभाग की अन्य कई महत्वपूर्ण खोजें भी स्वास्तिक की प्राचीनता और पवित्रता के प्रमाणों पर अच्छा प्रकाश डालती हैं।

आई-आई-टी खड़गपुर—

वहां के वरिष्ठ प्रोफ़ेसरों द्वारा आयोजित एक सभा में प्राचीन भारतीय ज्ञान प्रणालियों को समकालीन विज्ञान के साथ मिश्रित करने का प्रयास किया गया। इन लोगों ने स्वास्तिक के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी जुटाई। इस प्रोग्राम को मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने प्रायोजित किया था।
शोधकर्ताओं ने बताया कि—
उन्होंने विश्व को 9 खण्डों में बांटने के बाद भारत से स्वास्तिक को कहां ले जाया गया, के निशानों का फिर से पता लगाया है और वे प्राचीन मोहरों, शिलालेखों, छापों आदि के माध्यम से अपने दावे को स्पष्ट रुप से सिद्ध करने में सक्षम हैं।

स्वास्तिक बनाते समय रखें ध्यान कुछ बातों का—

घर में कभी भी उल्टा स्वास्तिक नहीं बनाया जाता। इस बात का हमेशा ध्यान रखें। उल्टा स्वास्तिक मंदिरों में बनाने की प्रथा है। वह भी अपनी किसी मनोकामना की प्राप्ति के लिए। जब आपकी मनोकामना पूरी हो जाए तो मंदिर में जाकर सीधा स्वास्तिक बनाएं।

स्वास्तिक कभी भी आडा-टेढ़ा नहीं बनाना चाहिए। यह एकदम सीधा और सुंदर बनाना चाहिए।

घर में स्वास्तिक जहां बनाना हो, वहां बिल्कुल साफ- सफाई हो, इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।

पूजा में हल्दी से स्वास्तिक बनाने से वैवाहिक जीवन में आ रही परेशानियां दूर होती हैं।

अन्य मनोकामनाओं के लिए कुमकुम का स्वास्तिक बनाकर पूजा की जाती है।

स्वास्तिक का मुंह हमेशा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।क्योंकि उत्तर दिशा को धन के देवता, कुबेर की दिशा माना जाता है। इसलिए इस दिशा में स्वास्तिक बनाने से धन लाभ होता है।

स्वास्तिक सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है। जिससे दैविय शक्तियां आकर्षित होती हैं। इसलिए दरवाजे पर स्वास्तिक बनाने की परंपरा है।

स्वास्तिक का बॉर्डर बनाने के बाद उनके बीच चारों खाली जगह पर चार बिंदी अवश्य लगाएं।

स्वास्तिक चिंह केवल लाल रंग में ही क्यों बनाया जाता है?

भारतीय संस्कृति में लाल रंग को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग सिंदूर, रोली या कुमकुम के रूप में किया जाता है। लाल रंग शोर्य एवम् विजय का प्रतीक है। लाल रंग प्रेम, रोमांस एवं साहस को भी दर्शाता है। धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी लाल रंग को सही माना जाता है।

शारीरिक व मानसिक स्तर पर—
लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। हमारे सौर मंडल में मौजूद ग्रहों में से एक मंगल ग्रह का रंग भी लाल है। यह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता है। यही कुछ कारण हैं, जो स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह दी जाती है।

यही सभी तथ्य हमें बताते हैं कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने में स्वास्तिक ने अपनी जगह बनाई है। फिर चाहे वह सकारात्मक दृष्टिकोण से हो या नकारात्मक दृष्टि से। परंतु भारत में स्वास्तिक चिंह को हमेशा से ही सम्मान दिया गया है और इसको विभिन्न रुपों में इस्तेमाल किया गया है। अगर गौर किया जाए तो स्वास्तिक जैसा एक छोटा-सा धार्मिक चिन्ह ना केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में प्रचलित और समान रूप से पूज्य है। इसका प्रसार एवम् प्रभाव ही यह प्रमाणित करता है कि संपूर्ण विश्व ही उस परम- पिता परमात्मा की कर्मस्थली है।

विश्व-बंधुता की भावना के साथ, स्वास्तिक यह भी संकेत करता है कि—
विश्व का हर धर्म एक ही भावना जो विश्व कल्याण है—
के लिए जन्मा है और कहीं न कहीं एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। स्वास्तिक में व्यष्टि और समष्टि के कल्याण का भाव समाहित है। स्वास्तिक विश्व के प्राणियों को कल्याण की ओर ले जाने का अपूर्व और अमर संदेश देता है। स्वास्तिक अनादि है, अभेद्ध है, अनंत है।

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