149. कण-कण में भगवान

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

महर्षि दधीचि के पुत्र का नाम था— पिप्लाद।
वह बहुत ही तेजस्वी तथा तपस्वी था। जब पिप्लाद को यह ज्ञात हुआ कि— देवताओं को अस्थि दान देने के कारण उसके पिता की मृत्यु हो गई है तो उसे बहुत दुख हुआ। वह आग बबूला हो गया और देवताओं से बदला लेने का निश्चय किया। उसने शंकर भगवान की तपस्या की। तपस्या से शिवजी खुश हुए और पिप्लाद से वरदान मांगने को कहा।

पिप्लाद ने शिव जी से प्रार्थना करते हुए कहा— हे आशुतोष! मुझे ऐसी शक्ति दो, जिससे मैं देवताओं से अपने पिता की मृत्यु का बदला ले सकूं।
भगवान शंकर तथास्तु कहकर अंतर्ध्यान हो गए। उनके अंतर्ध्यान होने के पश्चात् वहां एक काली कलूटी लाल-लाल आंखों वाली राक्षसी प्रकट हुई। उसने पूछा—स्वामी! आज्ञा दीजिए। मुझे क्या करना है?
पिप्लाद ने गुस्से में कहा— सभी देवताओं को मार डालो।
आदेश मिलते ही राक्षसी पिप्लाद की तरफ झपटी।

पिप्लाद अचंभित हो गया और जोर-जोर से चीखने लगा। यह क्या कर रही हो? मैंने तो तुम्हें देवताओं को मारने के लिए कहा है।
राक्षसी ने कहा— स्वामी! आपने तो ही मुझे आदेश दिया है कि— सभी देवताओं को मार डालो। मुझे तो सृष्टि के हर कण में किसी न किसी देवता का वास नजर आता है। सच्चाई तो यह है कि आपके शरीर के हर अंग में मुझे कई देवता दिखाई दे रहे हैं। इसलिए मैंने सोचा कि क्यों मैं प्रारंभ मैं आपसे ही करूं?
पिप्लाद भयभीत हो गया और उन्होंने फिर शंकर भगवान की तपस्या शुरू की।
भगवान तपस्या से प्रसन्न होकर फिर प्रकट हुए।

पिप्लाद को भयभीत देखकर शिव जी ने उन्हें समझाया— गुस्से में आकर लिया गया हर निर्णय भविष्य में गलत साबित होता है। पिता की मृत्यु का बदला लेने की हौड़ में, तुम यह भी भूल गए कि दुनिया के कण-कण में भगवान का वास है। तुम उस दानी के पुत्र हो, जिसके आगे देवता भी भीख मांगने को मजबूर हो गए थे। इतने बड़े दानी के पुत्र होकर भी तुम भिक्षुकों पर क्रोध करते हो। यह सुनते ही पिप्लाद का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने भगवान से क्षमा मांगी।

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