150. आदर्श नेतृत्व

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

नेतृत्व का वास्तविक अर्थ होता है—समाज और संगठन का सही मार्ग प्रशस्त करना न की उन पर शासन करना।
एक सभ्य एवं विकसित समाज की स्थापना में एक आदर्श नेतृत्व की महान भूमिका रहती है। एक कुशल नेतृत्वकर्ता हमेशा समाज, संगठन के हितों के कल्याण के लिए ही तत्पर रहता है। समाज के भविष्य की दिशा, उसकी गति, उसकी स्थिति और विकास का स्वरूप नेतृत्व ही तय करता है। नेतृत्वकर्ता समाज रूपी जहाज के नाविक के रूप में, समाज को उसके गंतव्य तक सुरक्षित पहुंचता है। एक आदर्श नेतृत्व वह नाव है, जिस पर सवार होकर हम जीवन में संघर्ष रूपी सागर को सहज ही पार कर सकते हैं और अपने जीवन को सही दिशा में ले जा सकते हैं।

ऐसे बहुत सारे लीडर हुए हैं जिन्होंने अपने कुशल नेतृत्व से लोगों के जीवन को ऐसी दिशा दी, जिससे उनकी कीर्ति युगों-युगों तक गुंजायमान रहे। भगवान श्री कृष्ण के कुशल नेतृत्व में पांडवों ने कौरवों पर विजय प्राप्त की। भगवान श्रीराम ने अपने कुशल नेतृत्व से ही सुग्रीव को न केवल अवसाद से निकाला बल्कि उन्हें उनका राज्य भी दिलवाया। ऐसा ही एक सशक्त उदाहरण आचार्य चाणक्य का है जिन्होंने चंद्रगुप्त जैसे एक साधारण से बालक को अपने नेतृत्व से दक्ष करके धनानंद जैसे अहंकारी राजा को परास्त कर चंद्रगुप्त को चक्रवर्ती सम्राट बनाया।

एक बार भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर अब्दुल कलाम जी से एक इंटरव्यू के दौरान पूछा गया था कि— आप अपने व्यक्तिगत जीवन में कोई ऐसा उदाहरण बता सकते हो कि— हमें हार को किस तरह स्वीकार करना चाहिए।
उस समय डॉक्टर अब्दुल कलाम ने बड़ी ही सहजता से उत्तर दिया कि— यह तो एक कुशल नेतृत्वकर्ता ही कर सकता है। मैं अपने जीवन का एक अनुभव सुनाता हूं। 1973 में मुझे भारत के सैटेलाईट लांच प्रोग्राम जिसे slv-3 भी कहा जाता है का हेड बनाया गया था। हमारा लक्ष्य था कि— 1980 तक किसी भी तरह हमारी सैटेलाईट रोहिणी को अंतरिक्ष में भेज दिया जाए। जिसके लिए मुझे बहुत बड़ा बजट दिया गया और मानव संसाधन भी उपलब्ध कराया गया और मुझे इस बात से भी अवगत कराया गया की निश्चित समय तक हमें इस लक्ष्य को पूरा करना है।
हजारों लोगों ने बहुत मेहनत की। 1979 का शायद अगस्त का महीना था, हमें लगा कि अब हम पूरी तरह से तैयार हैं। लॉन्च के दिन प्रोजेक्ट डायरेक्टर होने के नाते कंट्रोल रूम में लांच बटन दबाने के लिए गया। लांच से 4 मिनट पहले कंप्यूटर चीजों की लिस्ट जांचने लगा जो जरूरी थी ताकि कोई कमी न रह जाए और फिर कुछ देर बाद कंप्यूटर ने लांच रोक दिया। वह संकेत दे रहा था कि कुछ चीजें आवश्यकता के अनुसार सही स्थिति में नहीं है। मेरे साथ ही कुछ एक्सपर्ट भी थे। उन्होंने मुझे विश्वास दिलाया कि सब कुछ ठीक है। कोई गलती नहीं हुई है। मैंने कंप्यूटर के निर्देश को बाईपास कार लांच का बटन दबा दिया। पहली स्टेज तक तो सब कुछ ठीक रहा पर दूसरी स्टेज आते-आते गड़बड़ हो गई। रॉकेट अंतरिक्ष में जाने की वजाय बंगाल की खाड़ी में गिर गया।

उसी दिन इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के चेयरमैन प्रोफेसर सतीश धवन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई। असफलता की सारी जिम्मेवारी अपने ऊपर ले ली और कहा कि हमें कुछ और तकनीकी उपायों की जरूरत थी। उन्होंने कहा कि अगले साल तक यह कार्य संपन्न हो जाएगा। पूरी दुनिया का मीडिया वहां पर मौजूद था।

जुलाई 1980 में दोबारा कोशिश की। इस बार हम सफल हुए। पूरा देश गर्व महसूस कर रहा था। इस बार भी प्रेस कांफ्रेंस बुलाई गई।
प्रोफेसर धवन ने मुझे बुलाया, माइक मेरे हाथ में दिया और कहा— प्रेस कॉन्फ्रेंस कंडक्ट करो।
यह होती है एक कुशल नेतृत्वकर्ता की पहचान। एक ऐसा नेतृत्वकर्ता जो जानता हो कि— हार को कैसे फेस करना है?

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