श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर ने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा है। अस्पतालों में कोरोना मरीजों का तांता लगा हुआ है। डॉक्टर और नर्स उनका उपचार पूरी लग्न से कर रहे हैं लेकिन संक्रमण का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में हमें एक रक्षा कवच की आवश्यकता है और वह रक्षा कवच है— ईश्वर की शरण में जाना। ईश्वर का आश्रय ही इस दुर्लभ जीवन के लिए सबसे बड़ा रक्षा कवच है।
ईश्वर के आश्रय का अर्थ है कि —प्रभु की भक्ति से जुड़ना। इसके बिना आत्मिक उन्नति एवं जीवन का विकास और कल्याण नहीं हो सकता लेकिन आज सबसे जरूरी है स्वस्थ रहना। इस अमूल्य मानव जीवन की सुरक्षा एवं सार्थकता के लिए ईश्वर के आश्रय की आवश्यकता जन-जन के लिए महत्वपूर्ण ही नहीं बल्कि अनिवार्य है।
ईश्वर की भक्ति करके हम सुरक्षा कवच प्राप्त कर सकते हैं। भक्त को संसार में सिर्फ अपने आराध्य पर ही विश्वास होता है और ईश्वर भी उसकी श्रद्धा, विश्वास और समर्पण की प्रबल भावना को देखकर उसके सुरक्षा की जिम्मेदारी स्वयं संभालते हैं। भक्त सबका सहारा छोड़कर सिर्फ उन्हें ही अपना शुभचिंतक मानता है क्योंकि उसे पता होता है कि सांसारिक प्रेम अस्थाई है जबकि ईश्वर प्रेम, सत्य और शाश्वत है। प्रभु से जो जितना प्रेम करता है, उसे उनका उतना ही स्नेह और कृपा प्राप्त होती है।
जब एक भक्त का जीवन प्रभु के लिए समर्पित हो जाता है, तभी ईश्वर उसे सुरक्षा कवच प्रदान करते हुए अपनी शरण में लेते हैं। जिसने ईश्वर को चुन लिया, ईश्वर ने भी उसे अपने हृदय में स्थान दे दिया। उस समय हम ईश्वर की भक्ति के महासागर में डूबकर अपने जीवन की तकलीफों और दुखों से दूर हो जाते हैं। हमारी आत्मा खुशी से भर जाती है और हमारे चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट बनी रहती है।
दरअसल मुस्कुराहट का प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। हमारे चेहरे की मांसपेशियों को मुस्कुराने में कोई जोर नहीं लगाना पड़ता जबकि क्रोध के समय वे ज्यादा खिंचाव व तनाव में आ जाती हैं, जिससे हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मुस्कुराहट एक ऐसा गुण है जो तनाव और गुस्से को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मुस्कुराहट हमारे शरीर की रोग- प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाती है। इससे हम जल्दी स्वस्थ हो जाते हैं। इसी कारण कोरोना के समय डॉक्टर भी ध्यान अभ्यास के साथ-साथ हंसने के लिए भी प्रोत्साहित कर रहे हैं।
ध्यान अभ्यास करते समय हम खुशी और आनंद के स्रोत से जुड़ने लगते हैं क्योंकि हम अपने अंदर ईश्वर का अनुभव करने लगते हैं। जब ऊर्जा ध्यान के स्थान पर पहुंच जाती है तो हम अपने आप को चेतनता एवं आनंद से भरपूर पाते हैं। वास्तव में देखा जाए तो हमारी आत्मा प्रभु के महासागर की एक छोटी-सी बूंद है। जब हम ईश्वर का ध्यान करते हैं, तब अपनी आत्मा के साथ जुड़ने लगते हैं जो कि हमारा मूल स्रोत है और आनंद से भरपूर है। जहां पहुंचकर हम ईश्वर रूपी ज्योति से जुड़कर आनंद के मानसरोवर में डुबकी लगाते हैं जो हमें परम आनंद के महासागर में ले जाती है। उस समय हम अंदर की खुशी को महसूस करते हैं जो हमें अपने जीवन की समस्याओं से निपटने में मदद करती हैं और हम अंदर से शांत हो जाते हैं। जब हम आंतरिक खुशी का अनुभव करते हैं तो हमारे जीवन की सारी समस्याएं स्वत: ही खत्म हो जाती हैं। हमारे चेहरे पर खुशी और मुस्कुराहट आने लगती है। धीरे-धीरे यह मुस्कुराहट हमारे चारों ओर प्रवाहित होने लगती है। यह हमारे घर से बाहर निकल कर आस-पड़ोस और समाज में फैलती है, जिससे चारों तरफ खुशनुमा वातावरण बन जाता है, जो ईश्वर भक्ति से ही संभव है। भक्त और प्रभु के बीच के सारे भेद समाप्त हो जाते हैं। ईश्वर अपने भक्तों को अपनी शक्ति का दान रक्षा कवच के रूप में प्रदान करते हैं।