श्री गणेशाय नमः
श्री श्याम देवाय नमः
शिक्षा की दृष्टि से पाश्चात्य विद्वानों ने भारत को हेय दृष्टि से ही देखा है। उनका मानना था कि भारत मूर्ख, अनपढ़, गवार और मदारियों का देश है। यद्यपि कुछ वर्षों से हमारे युवाओं ने कंप्यूटर, इंजीनियर, बायोकैमिकल तथा औषधि विज्ञान आदि क्षेत्रों में अपने ज्ञान और कर्मठता से उनकी आंखें खोल दी है।
यदि हम प्राचीन भारत के बात करें तो सिंधु घाटी की खुदाई के परिणाम स्वरूप बहुत से ऐसे प्रमाण मिले हैं जो सिद्ध करते हैं कि उस समय के लोग बहुत ज्ञानी थे और उनके जीवन के निर्माण में उच्च व गुणवत्ता वाली शिक्षा का योगदान रहा था। ऐसे भी प्रमाण मिले हैं कि लगभग 5000 वर्ष पूर्व जब हिंदू धर्म की स्थापना हो चुकी थी, आर्यों ने शिक्षा के क्षेत्र में बहुत काम किया। यदि उस समय की शिक्षा सिर्फ सुनने और कहने के माध्यम पर आधारित थी। शिक्षा को लिपिबद्ध करने की व्यवस्था नहीं थी। हिंदुओं का प्रथम लिखित ग्रंथ ऋग्वेद जिसे विश्व का प्रथम लिखित ग्रंथ माना जाता है और जो धार्मिक सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था पर आधारित है। हालांकि इसकी रचना का भी कोई निश्चित प्रमाण नहीं है तो भी कुछ विद्वान इसे 4000 वर्ष पूर्व लिखा ही मानते हैं।
प्राचीन समय में शिक्षा ग्रहण करने के लिए पुरुष और स्त्री समान रूप से स्वतंत्र होते थे। माता सीता और उसकी तीनों बहनें— उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति ने विभिन्न विषयों में उच्च शिक्षा प्राप्त की हुई थी जो आज के समय के स्नातकोत्तर या उससे भी ऊंची डिग्री के समान थी।
उस समय आज के समान शिक्षण संस्थान नहीं थे बल्कि शिक्षणार्थियों को अपने घरों से दूर वनों में गुरुओं के आश्रम में रहकर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ती थी। वैसे देखा जाए तो गुरु के आश्रम कोई साधारण विद्यालय न होकर पूरे रिसर्च सेंटर होते थे।
रामायण काल में महर्षि अगस्त्य ने ऐसे विमान बनाने में सफलता हासिल की थी जो न केवल पृथ्वी पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते हो बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह पर भी जाते थे।
औपचारिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना का समय 3000 वर्ष पूर्व व उसके बाद का ही माना जाता है।
तक्षशिला विश्वविद्यालय—
आज के समय पाकिस्तान में रावलपिंडी से 18 किलोमीटर उत्तर की ओर स्थित है। जिस नगर में यह विश्वविद्यालय बनाया गया था, वह नगर श्री रामचंद्र जी के छोटे भाई भरत जी के पुत्र तक्ष ने बसाया था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना लगभग 2700 वर्ष पूर्व की बताई जाती है। यह इतना बड़ा था कि इसमें 10500 विद्यार्थी एक साथ पढ़ते थे। यहां 64 विभिन्न विषयों में शिक्षा दी जाती थी। वेद, दर्शन, आयुर्वेद, राजनीति, धनुर्विद्या, सर्जरी, खगोल विज्ञान, वाणिज्य, संगीत, नृत्य तथा व्याकरण आदि। विश्व के बहुत से देशों से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे। इसे संसार का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय माना जाता है। चाणक्य, पाणिनी, चरक इत्यादि ने यहीं से शिक्षा प्राप्त की थी।
नालंदा विश्वविद्यालय—
नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना बिहार में पांचवी शताब्दी में गुप्त काल में हुई थी। यह विश्वविद्यालय 12 वीं शताब्दी तक खूब फला-फूला। नालंदा यूनिवर्सिटी विश्व की ऐसी प्रथम यूनिवर्सिटी थी जो अध्यापक वर्ग व विद्यार्थियों को यूनिवर्सिटी परिसर में ही आवास प्रदान करवाती थी। इस विश्वविद्यालय का पुस्तकालय प्राचीन संसार का सबसे बड़ा पुस्तकालय था। इसमें व्याकरण, ज्योतिष विज्ञान, खगोल विज्ञान, औषधि विज्ञान आदि विभिन्न विषयों पर हस्तलिखित पांडुलिपियों के हजारों संस्करण उपलब्ध थे। विश्वविद्यालय में कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत, इंडोनेशिया आदि देशों से शिक्षार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे।
विक्रमशिला विश्वविद्यालय—
इस विश्वविद्यालय की स्थापना भी आज के बिहार राज्य के भागलपुर जिले में पाल वंश के राजा धर्मपाल द्वारा आठवीं शताब्दी में की गई थी। यह विश्वविद्यालय लगभग 400 वर्ष तक प्रसिद्धि के शिखर पर रहा। यहां के लगभग 100 प्राध्यापकों व 1000 विद्यार्थियों के साथ इस यूनिवर्सिटी का सीधा मुकाबला नालंदा विश्वविद्यालय के साथ माना जाता था।
वल्लभी विश्वविद्यालय—
इस विश्वविद्यालय की स्थापना गुजरात राष्ट्र के सौराष्ट्र क्षेत्र में छटी शताब्दी में हुई तथा इसने 12वीं शताब्दी तक शिक्षा का भरपूर प्रकाश फैलाया। 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री हवान स्वेंग ने यूनिवर्सिटी को शिक्षा का महान केंद्र बताया था। इस विश्वविद्यालय की उच्च गुणवत्ता के कारण यहां के स्नातकों को अन्य विश्वविद्यालय के स्नातकों की तुलना में वरिष्ठ पदों पर नियुक्ति मिलती थी।
पुष्पगिरी विश्वविद्यालय—
इस विश्वविद्यालय की स्थापना पुरातन कलिंग प्रदेश जिसे आधुनिक उड़ीसा राज्य के नाम से जाना जाता है, में हुई थी और इसने 800 वर्ष अर्थात 12 वीं सदी तक उच्च शिक्षा का प्रचार-प्रसार किया। इस यूनिवर्सिटी का परिसर इतना बड़ा था कि तीन साथ लगती पहाड़ियों— ललित गिरी, रत्नागिरी तथा उदयगिरी पर फैला हुआ था। शिक्षा के क्षेत्र में उस समय का प्रसिद्ध विश्वविद्यालय था, जिसे तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला विश्वविद्यालयों के समक्ष माना जाता था। इस विश्वविद्यालय की स्थापना सम्राट अशोक ने करवाई थी क्योंकि कुछ समय पहले यहां पर अशोक की कुछ प्रतिमाएं भी मिली हैं।
प्राचीन भारत में शिक्षा के अन्य विख्यात केन्द्र थे जैसे—मगध में ओदान्तपुरी विश्वविद्यालय, बंगाल में सोमपुर विश्वविद्यालय आदि।
अधिकांश विश्वविद्यालय 12वीं शताब्दी तक शिक्षा का प्रचार-प्रसार करते रहे। इसी काल में अर्थात् 12वीं शताब्दी के अंत में भारत पर खिलजी तथा मोहम्मद गोरी नामक मुसलमानों के आक्रमण हुए। खिलजी की फ़ौजों ने न केवल नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट किया बल्कि यहां के महान पुस्तकालय को भी आग के हवाले कर दिया। ऐसा कहा जाता है की पुस्तकालय इतना बड़ा था कि इसमें रखी हस्तलिपियां 3 महीने तक जलती रही।
इसी प्रकार बारी- बारी दूसरे विश्वविद्यालयों को भी तबाह कर दिया गया।
इस प्रकार हम देखते हैं कि— हमारी शिक्षा प्रणाली को विदेशी आक्रांताओं द्वारा ही नष्ट किया गया है। प्राचीन काल में हमारी शिक्षा व्यवस्था बहुत ही व्यापकता से फैली हुई थी।