155. आत्मिक शांति

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

एक बार थियोसोफिकल सोसाइटी से संबंध रखने वाला एक नवयुवक स्वामी विवेकानंद के पास गया। वह बहुत परेशान था। अशांत था। उसने दुखी होकर कहा— मैं शांति की खोज में बहुत दिनों से व्यस्त हूं। मैं मंदिर में जाकर मूर्ति के सामने घंटों आंख बंद करके बैठा रहता हूं। खूब पूजा-अर्चना, मंत्र-जाप करता हूं, किंतु मुझे मन की शांति नहीं मिलती। मैं हमेशा अशांत रहता हूं। मैं अपने मन को एकाग्र चित्त नहीं कर पाता। मैंने अकेला रह कर, अपने कमरे का द्वार बंद कर ध्यान लगाया। तब भी मुझे शांति प्राप्त नहीं हुई। मैं असफल रहा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि मुझे आत्मिक शांति कैसे प्राप्त होगी?

स्वामी जी बड़ी शांति और धैर्य से उस युवक की बातों को सुनते रहे।
जब वह अपनी बात खत्म कर चुका, तब बड़े स्नेह एवं सहानुभूति से भर कर उन्होंने कहा— वत्स! अगर तुम मेरे पास इसका समाधान पूछने आए हो तो तुम्हें जो मैं कहूंगा, वह करना पड़ेगा यानि मेरी बात माननी पड़ेगी।
उस युवक ने कहा— स्वामी जी! मैं आपके पास बहुत उम्मीद से आया हूं और मैं अवश्य आपकी बातों पर अमल करूंगा।
स्वामी जी ने कहा— सबसे पहले तुम्हें अपने कमरे का द्वार खोलना होगा। आंखें बंद करने की बजाय अपने चारों तरफ देखना होगा। तुम्हारे आसपास सैकड़ों असहाय द्ररिद्र लोग होंगे। अपनी समझ व शक्ति से तुम्हें उनकी सेवा करनी होगी। जो बीमार हैं, जिनकी देखरेख करने वाला कोई नहीं है, उनके लिए दवाई लानी होगी, खाने-पीने का प्रबंध करना होगा, उनकी सेवा करनी होगी। जो अज्ञानी हैं, उन्हें शिक्षित करना होगा। मेरा तो यही विचार है यदि तुम्हें मानसिक शांति चाहिए तो तुम्हें दूसरों की सेवा करनी होगी। दूसरों की सेवा करने के बाद जो आत्मिक शांति मिलती है, वह कहीं नहीं मिल सकती।

वर्तमान समय कोरोना वायरस की वजह से संकटों से भरा हुआ है। पूरा विश्व महामारी से लड़ रहा है। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। जीव मृत्यु के आगोश में समा रहा है। विपत्ति ने पूरे राष्ट्र को अपनी भुजाओं में जकड़ लिया है। ईश्वर ने हमें दूसरों की सेवा करने का अवसर प्रदान किया है। यह समय घुटने टेक कर बैठने का नहीं है बल्कि हमें धैर्य और साहस से दूसरों की सेवा करनी चाहिए। क्योंकि प्रकृति हमें कभी-कभी यह अवसर प्रदान करती है। आज संकट के सामने यदि हम झुक गए तो और अधिक कमजोर हो जाएंगे। यदि हमें महामारी से जीतना है और आत्मिक शांति प्राप्त करनी है तो धैर्य के साथ लोगों की सहायता करनी होगी। अपने अंदर सकारात्मक शक्ति को बढ़ाते हुए नकारात्मकता को भगाना होगा। अगर इस समय कदम लड़खड़ा गए तो हम कभी भी आत्मिक शांति को प्राप्त नहीं कर पाएंगे

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