156. विपत्तिकाल—आस्था

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

आस्था एक ऐसी औषधि है जो मनुष्य को किसी भी विपत्ति से बचा सकती है। आस्थावान व्यक्ति हमेशा खुश रहता है क्योंकि उसे अपने ईश्वर पर
अटूट विश्वास होता है। वह अच्छी तरह से जानता है कि मेरे ईश्वर, मेरे साथ कभी बुरा नहीं कर सकते। इसलिए वह हमेशा सकारात्मक रहता है, जिससे किसी भी विपत्ति का सामना वह खुशी-खुशी कर लेता है।

लेकिन आज के समय लोगों की आस्था भी डोलने लगी है। वे भूल गए हैं कि— कोई अदृश्य शक्ति है जो हर समय हमें सुरक्षा प्रदान करती है। क्योंकि आज सिर्फ उनको चारों तरफ कोरोनावायरस ही दिखाई दे रहा है। जिसके कारण वे दुखी और पीड़ित हैं और तनाव ग्रस्त होते हुए अपना जीवन जी रहे हैं। ऐसे में वह अपनी चिंताओं को विराम नहीं दे पा रहे। आज उनके जीवन में असंतुलन और आडंबर ने अपना स्थान बना लिया है। वे भूल गए हैं कि—ईश्वर तो हमारे अंदर विराजमान है। सिर्फ जरूरत है अपने अंदर गोता लगाने की।

जब हम कुछ समय के लिए कोरोनावायरस को भूल कर अपने अंदर विद्यमान उस ईश्वर से साक्षात्कार करेंगे तो हमारे अंदर छिपा हुआ डर खत्म हो जाएगा और हम इस पीड़ा से बाहर निकल आएंगे। हम स्वयं महसूस करेंगे कि जीवन तो बहुमूल्य है, श्रेष्ठ है और आनंदमय है। लेकिन आज हम अपने ईश्वर पर विश्वास नहीं कर पा रहे। इसलिए हम उनको अपने भीतर तलाशने की बजाय बाहर तलाशने की भूल कर रहे हैं। कभी हम उसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे में तलाशते हैं तो कभी सिद्धांतों, क्रियाकांडो रीति-रिवाजों और परंपराओं में खोजते हैं। जो जीवन के नैतिक मूल्यों को सम्मान देता है, अच्छाइयों के प्रति आस्था रखता है और बुराइयों के प्रति संघर्ष करने का साहस रखता है उसकी संवेदना दुखी और पीड़ित मानवता के लिए हर क्षण जीवंत रहती है। ऐसे मनुष्य सचमुच ईश्वर में आस्था रखते हैं।

हर कालखंड में मानव जाति की परीक्षा हुई है। उसके जीवन पर विपत्ति के बादल मंडराएं हैं। महामारी भी आई है। बहुत बड़ी संख्या में जनहानि भी हुई है परंतु उसके पश्चात् भी उर्जा और उल्लास का सूरज चमका है। आरोग्य की वर्षा हुई है।इतिहास गवाह है कि हर बार मानव जाति ने विपत्ति का सामना डटकर किया है और एक नई ऊर्जा और जोश के साथ पुनः जीवन को धरातल पर लाई है। मनुष्य ने खुशहाली के गीत भी गाए हैं। भले ही आसमान से महामारी के घनघोर बादल गर्जना कर रहे हैं। उनकी प्रबल ध्वनि हमारे कानों को विदीर्ण कर रही है लेकिन यदि हम आस्था के रथ पर सवार होकर चलेंगे तो निश्चित ही ये बादल छट जाएंगे। हमें स्वयं के अस्तित्व के लिए धैर्य पूर्वक लड़ना होगा। धैर्य और आस्था की नैया ही हमें इस विकट समय के चक्कर से बाहर निकाल लेगी। महामारी की विकराल लहरें जल्दी शांत हो जाएंगी। हम सब मिलकर पुनः जीवन के नव गीत गाएंगे।

लेकिन इस समय हमें सावधान रहने की परम आवश्यकता है। अगर इस समय कदम लड़खड़ा गए तो बहुत बड़ा विचलन पैदा होगा जो हमें इस युद्ध में कमजोर साबित करेगा। हमें स्वयं को ही इस विचलन से बचाना होगा और अपने ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को बनाए रखना होगा। हमारे ईष्ट अवश्य ही हमें इस महामारी से बाहर निकालेंगे।

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