ऊँ
श्री गणेशाय नम्ः
श्री श्याम देवाय नम्ः
समय के चक्र में नए – पुराने के मायने नहीं होते, यह अतीत, वर्तमान और भविष्य की त्रिपक्षीय किंतु एकल और अनवरत यात्रा है। समय की परिकल्पना एक चक्कर के रूप में की गई है, जो क्रमशःआगे की ओर घूमता रहता है और कभी पूर्ण अवस्था में नहीं लौटता। इस समय चक्कर की धुरी वर्तमान है, जिसके एक छोर पर अतीत है, तो दूसरे पर भविष्य। समय के बारे में जितना गहन, व्यापक एवं व्यावहारिक चिंतन भारतीय मनीषियों ने किया है, उतना किसी भी अन्य संस्कृति में नहीं है। जब हम बिना किसी क्रिया के कल कहते हैं, तो पता ही नहीं चलता कि यह कौन- सा कल है -आने वाले कल या वह कल जो बीत गया। अब प्रश्न यह उठता है कि हमारे पूर्वजों ने ऐसा क्यों किया? क्या उनके पास शब्दों का अभाव था? नहीं, ऐसा बिल्कुल भी नहीं था। ऐसा उन्होंने बहुत गहरे चिंतन – मनन के बाद किया होगा। इस शब्द में उनकी अवश्य कोई दूर दृष्टि छिपी हुई है। जो उन्होंने अतीत और भविष्य के लिए एक ही शब्द “कल” का उपयोग करके यह उद्घोषित किया है कि ये दोनों अलग-अलग नहीं ,बल्कि एक ही हैं। दोनों का मूल तत्व एक ही है। फर्क केवल समय का है। एक कल बीत चुका है और दूसरा आने वाला कल है। ये दोनों परस्पर एक-दूसरे के साथ घनिष्ठता से बंधे हुए हैं। इन तीनों में मुख्य है -वर्तमान। यह वर्तमान, इन दोनों की जननी है।
बीता हुआ कल भी कभी वर्तमान था और जो आने वाला कल है, वह भी वर्तमान को स्पर्श करने के बाद अतीत बन जाएगा, यानी कि यह वर्तमान ही इन दोनों की विभाजन रेखा है। इधर का हिस्सा अतीत और उधर का हिस्सा भविष्य। हम अतीत का कुछ नहीं कर सकते क्योंकि वह हमारे हाथों से छूट चुका है। हमारा अतीत, हमारे वर्तमान का ही संचित फल है। इसलिए अगर हम अपने अतीत को सुखद बनाना चाहते हैं, तो वर्तमान को सुखद बना कर ही कर सकते हैं। क्योंकि प्रत्येक गुजरता हुआ पल तत्काल अतीत में तब्दील होता रहता है। जिसे हम स्मृति कहते हैं, वह हमारा अतीत है,जो हमारे मस्तिष्क में दर्ज है। जिसे हम जब-तब याद करके फिर से जीने की कोशिश करते हैं। हम कोई भी कार्य करते हैं, तो बार-बार अतीत की स्मृतियों में गुम हो जाते हैं। अगर हमारी स्मृतियां सुखद हैं, तो हमें आनंद की अनुभूति होती है और यदि हमारी स्मृतियां दुखद हैं, तो उनको बार-बार सोचकर दुखी होते रहते हैं।इसलिए हमें अपने वर्तमान को बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए, जिससे हमारा अतीत सुखद रहे।
जिस प्रकार -“एक नदी में दो बार नहीं नहाया जा सकता” से आशय है कि गुजर चुकी परिस्थिति हूबहू उसी रूप में पुनः नहीं आएगी। उद्भव होते रहने, यानी जीवंतता की शर्त है परिवर्तनशीलता, जो सृष्टि को चलायमान रखती है। इस तथ्य को हृदयगंम न करते हुए जो अतीत में जकड़ा रहेगा, वह अपनी प्रगति अवरुद्ध करेगा तथा अपने परिवेश में नैराश्य पूर्ण, जीवन-विरोधी भाव संचारित-प्रसारित करेगा। इस चराचर जगत में स्थितियां-परिस्थितियां स्थाई नहीं रहती। इन्हें बदलना ही है। स्थाई है तो मनुष्य का दिव्य स्वरूप, जिसे अपने मूल स्थान यानी परमशक्ति में समा जाना है। अतीत तो हमारे अपने अनुभवों से बना हुआ है, इसलिए उसमें समाहित सब कुछ यथार्थ है। भविष्य के साथ ऐसा नहीं है वहां जो कुछ भी है वह केवल कल्पनाएं हैं। वह सब या तो मन की रंगीन तरंगें हैं या आशंकाओं के काले डरावने तूफानी बादल। इनके बारे में हम तब तक कुछ नहीं कह सकते जब तक कि भविष्य के वर्तमान में परिवर्तित नहीं हो जाते। यह सच है कि वर्तमान में हम जो कुछ भी कर रहे होते हैं, वह सब भविष्य के लिए ही कर रहे होते हैं। इसलिए वर्तमान पर हम लगातार हस्तक्षेप करके उसे अपनी इच्छा के अनुसार स्वरूप देने में लगे रहते हैं। भविष्य के लिए हम जो कुछ भी करेंगे, वह भी केवल वर्तमान में रहकर कर सकते हैं, क्योंकि वर्तमान में ही कर्म किया जा सकता है हमारे ही कर्म हमारा अतीत बनेंगे और यही हमारे भविष्य का निर्धारण करेंगे।
कर्म पर ही मनुष्य का अधिकार है। कर्म केवल वर्तमान में ही संभव है। वर्तमान को अतीत से हेय मानने वाले या सदा सुनहरे भविष्य के ख्यालों में मग्न रहने वाले वर्तमान सुखों से वंचित रहेंगे। समय की परिवर्तनशीलता को समझने वाले विश्वस्त रहते हैं कि जब वे दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे। जीवन के प्रत्येक क्षण का आस्वादन लेना उनका स्वभाव होता है कल कुछ नहीं होगा, वह आएगा ही नही। यह प्रवृत्ति जीवन में अनायास पसर जाने वाली नीरसता और नैराश्य को निरस्त करती है। उनके जीवन को बोझिल नहीं बनने देती। आशा और प्रफुल्लता से सरोबार वह सार्थक जीवन व्यतीत करने में विश्वास रखते हैं। वे जीवन में अनायास आने वाली उलझनों और समस्याओं के समक्ष घुटने नहीं टेकते। प्रकृति का विधान है -एक बार जीवन में ढाल लिए गए व्यवहार और सोच में निरंतर सवृंद्धि होती रहेगी। हृदय में प्रेम, सौहार्द, दया जिन भी भावों को संजोएगे और सिंचित करेंगें, वही भाव कालांतर में लहराते रहेंगे। समय के चक्कर को समझने वाले योगी और बुद्धिजन अपनाई गई अपनी जीवनशैली में त्रुटियां देख लेते हैं। वे अपनी त्रुटियों में संशोधन के लिए प्रतिबद्ध और सहर्ष तत्पर रहते हैं। वे अपने अथक प्रयास से जीवन को नई दिशा दे डालते हैं। समय के चक्कर को समझने वाले उसकी महत्ता को भलीभांति समझते हैं। वे वर्तमान में रहकर अपने अतीत की सुखद यादों के साथ भविष्य को सुनहरे रंग में रंगते चले जाते हैं। उन्हें एहसास रहता है कि इस जीवन रूपी यात्रा में मनुष्य की परख उसकी विफलताओं से नही, बल्कि उनके पुनः उठने और अदम्य साहस तथा उत्साह के साथ कर्मशील होने से होती है।