160. प्राण ऊर्जा

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

कोरोनावायरस की दूसरी लहर ने चारों तरफ हाहाकार मचा रखा है और अभी तीसरी लहर आनी शेष है। यह वायरस मानवता के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बना हुआ है। चारों तरफ मौत ने अपना आतंक फैला रखा है। आज हम जिस दौर से गुजर रहे हैं, ऐसा वक्त पिछली दो तीन पीढ़ियों से नहीं देखा गया। इस समय हमें धैर्य और सहनशक्ति की परम आवश्यकता है।

जीव में जीवन शक्ति की संवाहक प्राण ऊर्जा उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक सक्रिय रहती है। चिंतन करने से आंतरिक शक्ति बढ़ती है। मानसिक और शारीरिक क्षमताओं को प्राण ऊर्जा से जोड़कर दैवीय शक्तियों का पात्र बनाया जा सकता है। मनुष्य ने इस महाशक्ति से परमात्मा को भी प्राप्त किया है। फिर अन्य उपलब्धियां तो तुच्छ हैं क्योंकि परमात्मा को प्राप्त करना ही सबसे उच्च लक्ष्य है। संसार में कभी-कभी महासंकट आते रहते हैं जो संपूर्ण पृथ्वी को शोक और संताप में डुबो देते हैं। ऐसे समय में मनुष्य को अपनी प्राण ऊर्जा पर विश्वास रखना चाहिए। अगर विश्वास डगमगा जाता है तो प्राण ऊर्जा में कंपन उत्पन्न हो सकता है। यह स्थिति हमेशा अत्यंत असहज हो जाती है जो भौतिक संरचना का क्षरण कर सकती है।

कोरोना का संक्रमण कुछ मामलों में हमारी प्राण वायु यानि ऑक्सीजन के स्तर को कम कर देता है। ऐसे में हमें सावधान रहकर अपनी प्राण शक्ति को निरंतर संबल, शोधन व नवीन क्रियाओं से पुष्ट करते रहना चाहिए। किसी भी प्रकार के रोग, संकट के विरुद्ध संघर्ष करने की पूर्ण क्षमता स्वयं में निहित प्राणशक्ति को मिली हुई है। अगर कोई मनुष्य इसका उपयोग नहीं करना चाहे तो क्या कर सकते हैं। प्रकृति ने समस्त संभावनाओं को इस शरीर में प्रविष्ट कराया होता है। ईश्वर का अंश आत्मा के रूप में इस शरीर में विद्यमान है, तब हम क्यों संदेह का वातावरण बनाएं?

ध्यान, ज्ञान और जीवन की सच्चाई जानने के बाद आंतरिक शक्ति प्राप्त की जा सकती है। एक मजबूत दिमाग एक कमजोर शरीर को भी खींच सकता है, लेकिन कमजोर दिमाग मजबूत शरीर को नहीं संभाल सकता। प्राणायाम के माध्यम से सुषुम्ना नाड़ी से, ध्यान का अभ्यास प्राणशक्ति को असीमित बढ़ा सकता है। प्राणायाम और ध्यान से शरीर और मन दोनों का शुद्धिकरण हो जाता है। इससे मन कलुषित नहीं होता और शरीर अधर्म के मार्ग पर नहीं चलता।

प्रकृति का साहचर्य और आत्मविद्या का ज्ञान, प्राण शक्ति को बढ़ाने में सहायता करता है। प्राण शक्ति को जीवनी शक्ति में प्रवाहित करता है। ईश्वर के इस उपहार को बढ़ाना एक आदर्श विज्ञान भी है। इसमें धन, सत्ता या संसाधनों की आवश्यकता भी नहीं होती बल्कि विश्वास के साथ निरंतर करते रहना चाहिए। जब तक वायरस कमजोर नहीं पड़ता तब तक हमें मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। यदि हम उदास हैं और स्वयं को बीमार महसूस कर रहे हैं तो ऐसे में हम अवसाद ग्रस्त हो सकते हैं। ऐसे में हमें अपनी प्राण शक्ति को बढाने की आवश्यकता है। ध्यान के माध्यम से प्राण ऊर्जा को बढ़ाया जा सकता है। सांस लेने की तकनीक या व्यायाम भी प्राण को बढ़ाता है।

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