162. ईश्वर की मौजूदगी

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

कोविड महामारी की दूसरी लहर का प्रकोप धीरे-धीरे मंदा पड़ता जा रहा है, पर इसने देश के अंदर भय और पीड़ा का एक ऐसा मंजर छोड़ दिया है, जिसके निशान मिलना मुश्किल है। इस महामारी से बचने का अगर कोई कारगर तरीका है तो वह है, सिर्फ अपने ईश्वर पर विश्वास। कोरोना संकट के बीच हम सब दुख और भय से आक्रांत हैं। यह संकट भी दूर हो जाएगा क्योंकि ईश्वर का संबल हमारे साथ है। बस हमें इतना करना है, ईश्वर को पहचानना है और उसे स्मरण रखना है।

क्या आपने कभी सोचा है कि—दिन में हम कितनी बार ईश्वर को याद करते हैं, मुश्किल से एक या दो बार, शेष समय में हम ईश्वर को भूल जाते हैं और यही सोचते हैं कि जो कुछ है, वह हम ही हैं यानि हम ही कर्ता हैं और हमारे करने से ही सब कुछ होने वाला है। कोरोना के कारण आज परिस्थितियां विकट हैं। संकट एक अदृश्य वायरस की वजह से है। जब संकट अदृश्य शत्रु से है तो क्या अदृश्य ईश्वर हमें इस संकट से बाहर नहीं निकाल पाएंगे, क्या आपने कभी सोचा है? बहुत से मनुष्यों का तो यही कहना है कि ईश्वर को किसी ने देखा है तो मेरा उनसे कहना है कि— क्या इस वायरस को किसी ने देखा है? जिस प्रकार इस वायरस को कोई नहीं देख पा रहा, उसी प्रकार ईश्वर के दर्शन भी विरले ही कर पाते हैं। लेकिन मेरा यह विश्वास है कि जिस प्रकार वायरस अदृश्य है, वैसे ही अदृश्य ईश्वर ही हमें इस संकट से बाहर निकाल सकते हैं। बस हमें उन्हें हर समय याद करने की कोशिश करनी चाहिए। निश्चित रूप से ऐसा करने वाला मनुष्य सदा- सदा की खुशी को प्राप्त कर लेगा। वह इस संकट से ऊपर उठेगा और जीवन के उतार-चढ़ाव से प्रभावित नहीं होगा।

अक्सर हम संकट के समय या दुख में परमात्मा को याद करने की कोशिश करते हैं लेकिन जब सुख में होते हैं, हमें खुशी होती है तो हम परमात्मा को भूल जाते हैं। हमें निश्चित रूप से हर समय ईश्वर को याद रखना चाहिए। कुछ समय के पश्चात् हमें उनकी मौजूदगी का आभास होने लगेगा और हम परमानंद और परमसुख को प्राप्त कर लेंगे। वह जीवन में आने वाली प्रत्येक समस्या से ऊपर उठा देगा और जीवन के झंझावतों से प्रभावित भी नहीं होंगे।

कई बार हम बहुत- सी परेशानियों में घिरे होते हैं, लेकिन उनसे भी हम बाहर निकल आते हैं, फिर हम सोचते हैं कि— यह कैसे हो गया? यह हमारे भीतर की ईश्वरीय शक्ति है जो हमें चुनौतियों का सामना करने के लिए शक्ति और साहस देती है। प्रत्येक मनुष्य को कभी न कभी किसी न किसी समय शारीरिक चुनौतियों का सामना अवश्य करना पड़ता है। उस समय हम यही सोचते हैं कि— क्या हम कभी इन परेशानियों से बाहर निकल पाएंगे? जब हम उन चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना कर लेते हैं तो हमें आश्चर्य होता है कि हमने यह सब कैसे कर लिया? प्रत्येक अनुभव उस शक्ति का प्रमाण है जो हमेशा हमारे साथ रहती है। हमें कभी अकेला नहीं होने देती। ईश्वर हमेशा हमारे साथ मौजूद रहते हैं।

अक्सर आपने देखा होगा कि जब भी हमें किसी चुनौती का सामना करना पड़ता है तो हमें लगता है कि बहुत मुश्किल है। तब हमें यह ध्यान रखने की आवश्यकता है कि— हम अकेले नहीं हैं। ईश्वर का अदृश्य हाथ हमारे साथ है। हम उनको देख नहीं सकते, लेकिन उनकी शक्ति को अनुभव अवश्य कर सकते हैं। कई बार आपने स्वयं भी अपने भीतर परमात्मा की उस अदृश्य शक्ति को महसूस किया होगा। जो ईश्वर में जितना विश्वास करता है, उसी के अनुसार उसे, उस शक्ति का आभास होने लगता है। दरअसल जो ईश्वर में विश्वास रखता है, वह अधिक ग्रहणशील होता है और उस शक्ति को अधिक महसूस करता है।

एक बच्चा ईश्वर से मिलना चाहता था। उसने प्रार्थना कि— ईश्वर मुझसे बात कीजिए। मुझे दर्शन दीजिए।

तभी एक चिड़िया की चहचहाने की आवाज सुनाई दी। लेकिन बच्चे ने नहीं सुना।
उसने फिर ईश्वर से कहा कि— आप मेरे सामने आइये और मुझसे बात कीजिए।
तब आकाश से बादलों की गर्जना हुई, लेकिन बच्चे ने ध्यान नहीं दिया।
उसने फिर ईश्वर से कहा कि— मैं आपको देखना चाहता हूं।
तभी आकाश में एक सितारा चमका। बच्चे ने उसे भी नहीं देखा।
बच्चा चिल्लाया, कोई चमत्कार दिखाइए, प्रभु!

अचानक उसके सामने एक गिलहरी आई, लेकिन बच्चा प्रभु को पहचान नहीं सका।

बच्चे ने कहा— प्रभु! मुझे स्पर्श कीजिए।

तब ईश्वर तितली के रूप में बच्चे के हाथ पर बैठे, लेकिन बच्चे ने हाथ पर बैठी सुंदर तितली को हटा दिया।
प्रकृति में जो कुछ भी है, ईश्वरीय रूप है। वही हमारे समक्ष विभिन्न रूपों में आते हैं। कभी दुख तो कभी सुख के रूप में। कभी धनी तो कभी निर्धन के रूप में। पर हम उन्हें पहचान नहीं पाते। क्योंकि हम उस अदृश्य शक्ति पर विश्वास नहीं कर पाते। हमारे लिए वही ठीक है और विश्वास करने के योग्य है, जिसको हम देख सकते हैं। इसके अतिरिक्त हमारा विश्वास किसी भी वस्तु पर नहीं होता। यहां तक की ईश्वर से हम बहुत कुछ प्राप्त करने के बाद भी, जब भी कोई संकट आता है तो डोलने लगते हैं। उस पर पूर्ण रुप से विश्वास नहीं कर पाते।

मनुष्य, वृक्ष, जानवर, चांद- तारे, नदियां, पहाड़ आदि सब उनके ही चिन्ह हैं। हम उनके निकट से, बिना किसी स्पर्श और संबंध के यूं ही गुजर जाते हैं। जब तक हम ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार नहीं कर लेते हैं अर्थातु यह नहीं मान लेते की कण-कण में ईश्वर का वास है, जब तक हम उनसे संपर्क कैसे कर सकते हैं? जब भी हमें चुनौतियों का सामना करना पड़े तो एक बार, उन लोगों के बारे में अवश्य सोचना चाहिए, जिन्होंने बहुत बड़े-बड़े संघर्षों को पार करते हुए सफलता प्राप्त की। उनके पीछे अवश्य ही कोई अदृश्य शक्ति थी। इसलिए जीवन की चुनौतियों का सामना हमें निडर होकर करना चाहिए। हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश करें लेकिन अंतिम निर्णय ईश्वर की इच्छा पर छोड़ देना चाहिए। तभी हमें ईश्वर की मौजूदगी का आभास होगा।

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