163. पुण्य कर्म

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

पुण्य कर्मों का अर्थ केवल वे कर्म नहीं हैं, जिनसे हमें लाभ होता हो, अपितु वे कर्म हैं, जिनसे दूसरों का भला भी होता हो।
पुण्य कर्मों को करने का उद्देश्य मरने के पश्चात् स्वर्ग प्राप्त करना ही नहीं, अपितु जीते जी जीवन को स्वर्ग बनाना भी है।
स्वर्ग प्राप्त करने के लिए पुण्य कर्म करना बुरा नहीं, मगर परमार्थ के लिए पुण्य करना ज्यादा श्रेष्ठ है।

बगैर स्वार्थ किया गया प्रत्येक कर्म पुण्य कर्म है, लेकिन जिस कर्म में स्वार्थ की भावना निहित होती है, वह कर्म पाप कर्म कहलाता है।
जो कर्म भगवान को प्रिय होते हैं, वही कर्म पुण्य कर्मों की श्रेणी में गिने जाते हैं।
हमारे किसी आचरण से, व्यवहार से, वक्तव्य से या किसी अन्य प्रकार से कोई दुखी न हो। हमारा जीवन, दूसरों के जीवन में समाधान बने, समस्या नहीं, यही चिंतन पुण्य है और परमार्थ का मार्ग भी है।

सभी प्राणियों से प्रेम करना अर्थात् सभी जीवों के हितों की रक्षा करना, आवश्यकता होने पर उन्हें हर संभव सहायता प्रदान करना, उनके सुख- दुख के साथी बनना और ऐसा कोई कार्य न करना जिससे उनके मन को ठेस पहुंचे, दूसरों के कल्याण के लिए कर्म करते रहना, पुण्य कर्मों की श्रेणी में आते हैं।

अथर्ववेद में कहा गया है कि— जिस ईश्वर ने विश्व ब्रह्मांड की रचना की है, उसी ने, इस विश्व में हमारा छोटा- सा जीवन निर्धारित कर रखा है। ईश्वर ने हमें अपना जीवन चलाने के लिए कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की है। उनका मनुष्य जीवन के क्रियाकलापों में किंचित मात्र भी हस्तक्षेप नहीं है। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम अपने जीवन को, अपने श्रेष्ठ कर्मों की हवि से कितना सुगंधित बनाते हैं।

ईश्वर ने मनुष्य को विवेक रूपी हीरे से सुसज्जित करके इस जीवन को उत्तमता से संचालन करने के लिए इस धरा पर भेजा है। हमारा जीवन कर्मेंद्रियां, ज्ञानेंद्रियां, मन, बुद्धि व आत्मा द्वारा संचालित होता है। श्रवण शक्ति के माध्यम से हम अपने जीवन में श्रेष्ठ विचारों का श्रवण करें। वाणी रूपी शक्ति से मधुरता एवं शालीनता से परिपूर्ण वाणी का प्रयोग करें। मुख से शारीरिक पुष्टता देने वाले आहार का सेवन करें। समस्त ज्ञानेंद्रियों एवं कर्मेंद्रियों से इस जीवन को पावन बनाने का प्रयास निरंतर करना चाहिए। मन से श्रेष्ठ चिंतन- मनन, बुद्धि से आध्यात्मिक ज्ञान का संचय हमारे जीवन को आनंद के मार्ग की ओर अग्रसर करता है।

कल्पना कीजिए आपके पड़ोस में कोई भूख से या दवा के अभाव में बीमारी से तड़प रहा हो, कंपकंपाती ठंड में कोई बच्चा बिना गर्म कपड़ों के ठिठुर रहा हो या फिर धन के अभाव में किसी माता- पिता को अपने बच्चे को स्कूल से निकालने पर मजबूर होना पड़ रहा हो और यह सब कुछ देख कर आपका दिल पसीज जाए, दया के भाव आपके मन में आ जाएं तो समझ लेना कि ईश्वर ने आपको पुण्य कर्म करने के लिए चुना है। आपने ईश्वर की तरफ जाने वाला रास्ता पकड़ लिया है। यदि आपका हाथ उनकी सहायता के लिए उठ गया हो तो सच में आपने पुण्य कर्म की ओर कदम बढ़ा लिया है।

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