166. चित्त की एकाग्रता

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

एक बार स्वामी विवेकानंद अपने गुुरु भाई के साथ देश भ्रमण पर गए हुए थे। स्वाध्याय, सत्संग एवं कठोर तप का सिलसिला अनवरत जारी था। जहां पर भी कहीं अच्छे ग्रंथ मिलते, वे उनको पढ़ना नहीं भुलते क्योंकि विवेकानंद पढ़ने के बहुत शौकीन थे। इसलिए पुस्तकालय से उन्हें बहुत प्रेम था। एक स्थान पर एक पुस्तकालय ने उन्हें बहुत आकर्षित किया।

स्वामी जी के गुरु भाई उस पुस्तकालय से संस्कृत और अंग्रेजी की नई- नई किताबें लाते और स्वामी जी उन्हें पढ़कर अगले दिन वापिस लौटा देते। यह देख कर उस पुस्तकालय का अधीक्षक बड़ा हैरान हुआ। उसने स्वामी जी के गुरु भाई से कहा— क्या आप इतनी सारी नई- नई किताबें सिर्फ देखने के लिए ले जाते हो? यदि इन्हें सिर्फ देखना ही है तो मैं, तुम्हें यहीं पर दिखा देता हूं। प्रतिदिन इतना वजन उठाकर ले जाने की भी क्या आवश्यकता है?

लाइब्रेरियन की इस बात पर स्वामी जी के गुरु भाई ने गंभीरतापूर्वक कहा— जैसा आप समझ रहे हो, वैसा बिल्कुल भी नहीं है। हमारे गुरु भाई इन सब पुस्तकों को पूरी गंभीरता से पढ़ते हैं और फिर वापिस कर देते हैं। यह सुनकर लाइब्रेरियन बहुत चकित हुआ और कहने लगा— यदि ऐसा है तो मैं उनसे अवश्य मिलना चाहूंगा।

अगले दिन स्वामी जी उससे मिले और कहा— महाशय, मैंने न केवल उन किताबों को पढ़ा है बल्कि उनको याद भी कर लिया है। इतना कहते हुए स्वामी जी ने कुछ किताबें उसे थमाई और उनके कई महत्वपूर्ण अंशों को सुना दिया।

लाइब्रेरियन स्वामी जी की याददाश्त के बारे में जानकार चकित रह गया। उसने स्वामी जी से इसका राज जानना चाहा।
स्वामी जी बोले अगर पूरी तरह से एकाग्र होकर पढ़ा जाए तो चीजें दिमाग में अंकित हो जाती हैं, पर इसके लिए आवश्यक है कि मन की धारण शक्ति अधिक से अधिक हो और वह शक्ति ध्यान अभ्यास से आती है। चित्त की एकाग्रता सबसे आवश्यक है।

चित्त की एकाग्रता का अर्थ है कि— चंचलता पर अंकुश। किसी भी कार्य में चित्त की एकाग्रता परम आवश्यक है। व्यवहारिक बातों में भी चित्त की एकाग्रता चाहिए। यह बिल्कुल भी आवश्यक नहीं है कि व्यवहारिक बातों में अलग गुणों की जरूरत हो और अध्ययन में अलग।

सफलता और असफलता आपके चित्त की एकाग्रता पर निर्भर करती है। चित्त की एकाग्रता के बिना किसी भी कार्य में सफलता पा लेना कठिन है। इसलिए किसी भी इंसान को अगर सफल होना है तो उसका एकाग्र रहना बहुत जरूरी है, चाहे वह विद्यार्थी हो या फिर नौकरी पेशे वाला हो। कहने का आशय यह है कि चाहे वह किसी भी फील्ड का हो, अगर एकाग्र होकर ध्यान किया जाए तो विषय याद रखा जा सकता है।

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