185. समय की गति

श्री गणेशाय नमः

श्री श्याम देवाय नमः

समय की गति को रोकना या शिथिल करना मनुष्य के हाथ में नहीं है। जब तक जीवन है, विघ्नकारी व्यक्तियों और परिस्थितियों से आमना- सामना भी होता रहेगा। जीवन के कटु क्षणों को यदि चित्त में धारण कर लेंगे तो समय बोझिल होकर वर्तमान के सुख- चैन को हर लेगा। जिन अप्रिय प्रसंगों पर हमारा नियंत्रण नहीं होता, उन में उलझ कर समय नष्ट करेंगे तो हम अपने जीवन को नकारात्मकता से भर लेंगे। ऐसे मनुष्य ना उम्मीदी एवं निराशा में ज्यादा रहते हैं। उनके जीवन में कोई न कोई समस्या हमेशा बनी रहती है।

दूसरी तरफ जो मनुष्य समय की कद्र करते हैं और प्रत्येक कार्य समय पर करते हैं, उनका जीवन हमेशा समस्यामुक्त रहता है। ऐसे मनुष्य दुनिया के लिए आदर्श एवं प्रेरणास्रोत बन जाते हैं। आपने अक्सर लोगों को कहते हुए सुना होगा कि— समय है, कटता ही नहीं‌। आपने देखा भी होगा कि किसी के पास समय है ही नहीं और किसी का समय कटता ही नहीं। जीवन में जो चाहा, जैसा चाहा, वह मिला या नहीं, इस बात पर निर्भर करता है कि— क्या खाना, सोना और दैनिक दिनचर्या के आवश्यक कार्य निपटाने के अलावा भी आपका कोई बड़ा लक्ष्य है और यदि है तो क्या उसको प्राप्त करने के लिए आपने उसे भरपूर समय दिया।

आप अक्सर देखते होंगे कि ज्यादातर मनुष्य हर समय बेचैन रहते हैं, फिक्रमंद रहते हैं लेकिन उनकी यह बेचैनी और यह फ़िक्र अपने बारे में नहीं, दूसरों के बारे में होती है। उन्हें जीवन में क्या करना चाहिए, क्या नहीं? कैसे रहना चाहिए आदि बहुत सारे सवाल हैं, जिनका उनके पास कोई जवाब नहीं होता, लेकिन दूसरों के जीवन के हर सवाल का जवाब उनके पास अवश्य होता है।
लेखक पाउलो कोएलो कहते हैं—प्रत्येक व्यक्ति यह साफ-साफ सोच पाता है कि दूसरे लोगों को अपनी जिंदगी में क्या करना चाहिए, बस उन्हें अपनी ही जिंदगी का पता नहीं होता। ऐसे लोग समय के साथ आगे नहीं बढ़ पाते।

राजनीति में एक कहावत है कि— पैर का कांटा निकालने तक ठहरने से ही व्यक्ति बिछड़ जाते हैं। प्रतिक्षण और प्रति अवसर का यह महत्व जिसने भी नजरअंदाज किया उसने उपलब्धि को दूर कर दिया क्योंकि नियति एक बार, एक ही क्षण देती है और दूसरा क्षण देने से पहले उसे वापस ले लेती है। जीवन यात्रा के दुष्कर पलों को अपरिहार्य मानते हुए जो भी वर्तमान में बेहतर उपलब्ध है, उसमें रस लेने, सहेजने में ही समय लगाएं क्योंकि समय का चक्र हमेशा एक स्थिति में नहीं रहता। वह निरंतर चलता रहता है। यही समय की गति है और यही नियति है।

आपने अक्सर कहते सुना होगा कि— वह समय न रहा तो यह भी नहीं रहेगा। हमें हमेशा यह स्मरण रखना चाहिए कि हमारा जीवन बहुत लंबा नहीं है। हमें अतीत की अरुचिकर परिस्थितियों की चिंता या उनके विश्लेषण में समय नहीं गंवाना चाहिए। हमें हमेशा खुश रहने का अभ्यास निरंतर करते रहना चाहिए। खिलखिलाता, मुस्कुराता चेहरा किसी को भी आपका मुरीद बना सकता है।

हमें हमेशा यह स्मरण रखना चाहिए की वर्तमान, भविष्य से नहीं, अपितु अतीत में किए गए पुरुषार्थ से बनता है। हम केवल घर को ही देखते रहेंगे तो बहुत बिछड़ जाएंगे और केवल बाहर को देखते रहेंगे तो टूट जाएंगे। मकान की नींव देखे बिना मंजिलें बना लेना खतरनाक है पर अगर नींव मजबूत है और फिर मंजिल नहीं बनाते तो यह बेवकूफी है।

कभी-कभी हम सोचते हैं कि हमारे पास पर्याप्त समय है। हम अमुक कार्य भविष्य में कभी भी कर लेंगे। लेकिन जिंदगी का कोई भरोसा नहीं, मृत्यु कब हमें अपने आगोश में ले ले, यह कोई नहीं कह सकता। लेकिन मनुष्य है कि—वह इस सच को स्वीकार ही नहीं कर पाता और इसी भ्रांति में जिंदगी गुजार देता है। जब उसे होंश आता है तो बुढ़ापा अपने पांव पसार चुका होता है।

जीवन वही सार्थक है, जिसने समय की तीव्र गति को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। विस्मयकारी ऊंचाइयों तक वहीं पहुंच पाए जिन्होंने समय का सदुपयोग अपना कौशल तराशने और परिमार्जित करने में किया। निर्णय आपका है, समय की आंधी में गुम हो जाना है या ऐसे कार्य करने हैं जिनका सुखद प्रतिपल स्वयं को और भावी पीढ़ी को मिले।

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